‘चार्टर अधिनियम, 1833( Charter Act, 1833)
इस अधिनियम की प्रमुख विशेषताएँ अधोलिखित थीं
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कंपनी का अधिकार 20 वर्षों के लिये पुनः बढ़ा दिया गया।
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कंपनी के व्यापारिक अधिकार पूर्णतया समाप्त कर दिये गए और उसे भविष्य में केवल राजनीतिक कार्य ही करने थे।
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बंगाल का गवर्नर जनरल,भारत का गवर्नर जनरल बना दिया गया ,लॉर्ड विलियम बैंटिक भारत के प्रथम गवर्नर जनरल थे। और सपरिषद् गवर्नर जनरल को कंपनी के सैनिक तथा असैनिक कार्य का नियंत्रण, निरीक्षण तथा निर्देशन का कार्य सौंप दिया गया। बंबई, मद्रास, बंगाल तथा अन्य प्रदेश गवर्नर जनरल के नियंत्रण में आ गए। इस तरह, प्रशासन का केंद्रीकरण कर दिया गया।
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कानून बनाने की शक्ति का भी केंद्रीकरण कर दिया गया। अब केवल सपरिषद् गवर्नर जनरल को ही कानून बनाने का अधिकार दिया गया और बंबई तथा मद्रास की संविधान सभाओं की कानून बनाने की शक्ति समाप्त कर दी गई। इसके अंतर्गत पहले बनाए गए कानूनों को नियामक कानून कहा गया और नए कानून के तहत बने कानूनों को एक्ट या अधिनियम कहा गया
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इस अधिनियम द्वारा विधान बनाने के लिये गवर्नर जनरल की तीन सदस्यीय कार्यकारिणी में एक अतिरिक्त कानूनी सदस्य (मैकाले) को चौथे सदस्य के रूप में सम्मिलित कर लिया गया।
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भारतीय कानूनों को संचित, संहिताबद्ध एवं सुधारने की भावना से एक विधि आयोग की स्थापना की गई।
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चार्टर एक्ट 1833 ने सिविल सेवकों के चयन के लिए खुली प्रतियोगिता का आयोजन शुरू करने का प्रयास किया। सरकारी सेवाओं में जातीय व नस्लीय भेदभाव पर रोक लगाई गई।इसमें मा कहा गया कि कंपनी में भारतीयों को किसी पद, कार्यालय और रोजगार को हासिल करने से वंचित नहीं किया जायेगा। हालांकि कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स के विरोध के कारण इस प्रावधान को समाप्त कर दिया गया।
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इस एक्ट के द्वारा दास प्रथा समाप्त करने की भी आज्ञा दी गई। 1843 में एलनबरो द्वारा इसे प्रतिबंधित किया गया।
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चार्टर एक्ट 1833 के द्वारा ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने चाय के व्यापारिक एकाधिकार को खो दिया