11.खोरठा लेखन परंपरावादी ना जनवादी खोरठा निबन्ध डॉ बी एन ओहदार
निबंध -संख्या – 11: खोरठा लेखन परंपरावादी या जनवादी
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यह एक समीक्षात्मक वैचारिक निबंध है।
भावार्थ–
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यह लेख गारगा नदी के किनारे, बोकारो खोरठा कमिटि द्वारा आयोजित वन भोज (पुसालो) सह साहित्य गोठी कार्यक्रम में पढ़ा गया है।
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यहां प्रश्न खड़ा किया गया है कि खोरठा में वर्तमान में किस तरह लिखा जा रहा है और किस तरह लिखा जाना चाहिए पारंपरिक या जनवादी तरीके से।
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परंपरावादी से अर्थ है सिर्फ मनोरंजन के लिए, या प्रगतिशील विचारों की स्थापना के लिए।
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ज्यादातर साहित्य में परंपरा वादी लेखन शामिल है परंपरावादी साहित्य में आदर्श व्यक्ति, आदर्श जीवन दर्शन, आदर्श समाज, आदर्श राज्य, आदर्श देश, आदर्श दुनिया का वर्णन देखने को मिलता है जो कि बिल्कुल ही काल्पनिक है, इसका वास्तविक दुनिया से कोई महत्व नहीं है, यह मात्र एक कल्पना मात्र है जिसके होने की संभावनाएं बहुत ही कम है
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प्रस्तुत निबंध में वर्तमान में हमारे लेखन की प्रवृति क्या होगी इस पर भी विचार किया गया
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सांराशत इस लेख में जनवादी प्रवृति की सिफारिश की गई है और परंपरावादी प्रवृति को त्यागने की बात कही गई है।
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निबंध में यह भी कहा गया है कि अबतक खोरठा में बहुत कम लिखा गया है। साहित्य लेखन की आरंभिक अवस्था है। खेत भी नया है और हलवाहों भी नये हैं। अभी कम से कम लिखें तो सही फिर बाद में धीरे-धीरे जनवाद की घुटी पिलायी जायेगी।
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हिंदी भाषा में सिर्फ आदर्शवादी व्यक्तियों का चित्रण किया गया है जो कि ख्याली या काल्पनिक विचार मात्र है,मरीचिका के समान है.
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राम और कृष्ण आदर्श व्यक्ति नहीं है
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भगवान राम ने संबुक की हत्या की
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आज के समय मार्क्सवाद विचारधारा का बोलबाला है
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“गा कोकिल, बरसा पावक कण, नष्ट भ्रष्ट हो जीर्ण पुरातन।” – सुमित्रानंदन पंत का कविता
प्रोग्रेसिव राइटर्स एसोसिएशन का जिक्र है निबंध में
प्रोग्रेसिव राइटर्स एसोसिएशन की स्थापना 1935 मेंलंदन में भारतीय लेखकों और बुद्धिजीवियों द्वारा कुछ ब्रिटिश साहित्यकारों के प्रोत्साहन और समर्थन से की गई थी।
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यह मध्य लंदन के नानकिंग रेस्तरां में था कि मुल्क राज आनंद, सज्जाद ज़हीर और ज्योतिर्मय घोष सहित लेखकों के एक समूह ने एक घोषणापत्र का मसौदा तैयार किया
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अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ की आधिकारिक उद्घाटन बैठक 9-10 अप्रैल 1936 को लखनऊ में हुई थी, जिसकी अध्यक्षता लेखक प्रेमचंद ने की थी। संगठन ने स्वतंत्रता के लिए अभियान जारी रखा और अपने लेखन के माध्यम से सामाजिक समानता की वकालत की।
उद्देश्य
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नया भारत के साहित्य को आज हमारे अस्तित्व की बुनियादी समस्याओं – भूख और गरीबी, सामाजिक पिछड़ेपन और राजनीतिक अधीनता की समस्याओं से निपटना चाहिए।
विशाल भारत का जिक्र है निबंध में
विशाल भारतएक प्रसिद्ध हिन्दी पत्र था जिसका प्रकाशन सन 1928 ई. में कोलकाता से आरम्भ हुआ।
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इसके संस्थापक रामानन्द चट्टोपाध्याय थे।
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बनारसीदास चतुर्वेदी इसके प्रथम सम्पादक बने
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इस पत्रिका से शिवदान सिंह चौहान की एक लेख प्रकाशित हुआ था जिसमें उन्होन कहा था “हमारा साहित्य नायक कला के लिए नहीं वरण कला संसार को बदलने के लिए है”
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इस नारे को बुलंद करना प्रत्येक प्रगतिशील साहित्य का कर्तव्य है
Q. खोरठा लेखन परंपरावादी ना जनवादी लेख किसके द्वारा लिखा गया है ? खोरठा कमेटी के द्वारा
Q. ‘खोरठा लेखन परम्परावादी ना जनवादी’ निबंध केकर लिखल लागे ? डॉ. बीएन आहदार
Q. ‘खोरठा लेखन परम्परावादी ना जनवादी’ पाठ कोन किताबें सामिल है ? खोरठा निबंध
Q. “खोरठा लेखन परम्परावादी ना जनवादी’ कइसन रचना (निबंध) लागे ? बिचार प्रधान
Q. ‘खोरठा लेखन परम्परावादी ना जनवादी’ विषय पर एगो लेख लिखेक बात कहल
रहे ? बोकारो खोरठा कमिटी
Q.”खोरठा लेखन परम्परावादी ना जनवादी’ शीर्षक टा लेखक के ओरगुझाइल नीयर बुझाइल आर एकरा पुरछावे खातिर एकरा खेंचा-खेंचा करला ?खोरठा लेखन,परम्परावादी ,जनवादी
Q .’आदर्श’ सबद के लेखक की मानल हथ ? मरीचिका
Q . राम-कृष्ण कर चरित्र पर लेखक कइसन बिचार राखल हथ ?आर्दशहीन चरित्र बतवल हथ
Q . संबुक के कोन मारल रहे ? राम
Q .ई पाठे केकर केकर लेखके गुन गावल हथ ?संबुक, करन, एकलव्य, दुर्योधन
Q .खोरठा लेखन खातिर परम्परावादी हेवेक टा कइसन हेवत? अनुचित (गलत)
Q . खोरठा लेखन खातिर ‘जनवादी’ हेवेक टा कइसन रहतइ ? उचित
Q . “खोरठा लेखन परम्परावादी ना जनवादी’ पाठ में एगो साहित्यकार कर कथन-“युग
के तुफान को बाँधने के लिए युगान्त के छंद छोटे पड़ते हैं।” कर हिन्दी माने लेखकें की लिखल हथ? कोन्हो नावाँ जुगेक तुफान के सम्हरावे टिकावे ले पुरना जुगेक आइर-मोवाइर काम नाय हे
Q .खोरठा लेखन परम्परावादी ना जनवादी कर लेखक निष्कर्ष रूपे की कहल हथ?
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खोरठा लेखन के पहाड़ी झरना के जइसे तइसे फूटे दाए, जने तने बोहे दाय
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फिन एगो बेस ठाँवे ओकरा बाँइध देल जाए।
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ऊ पानीक घार के जमोट कइर के ओकर में टदबाइन घुरावल जाए तो बिजली चाँडे पइदा हेवत । गोटे दुनियाय आलो हेलक
Q . “गा कोकिल, बरसा पावक कण, नष्ट भ्रष्ट हो जीर्ण पुरातन।”सुमित्रानंदन पंत (1837 )कर ई कविता कोन निबंधे देल गेल हे ? खोरठा लेखन परम्परावादी ना जनवादी
Q . खोरठा लेखक परम्परा वादी ना जनवादी निबंध लेखके कोन कोन किताब खोरठा
किताबेक नाम लिखवइयाक (संगे) देल हथ?
नाटक
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उदवासलकर्ण – श्री निवाम पानुरी
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मेकामेकी ना मेट माट-ए. के झा,
एकांकी
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चाभी -काठी-श्री निवाम पानुरी,
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समाज आर सइभ सासतर – ए के झा
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कुरइ-कलवा-बीरबल महतो,
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बेटवा पुतइहिया-राम लोचन ओहदार
उपन्यास
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जिनगीक टोह-चितरंजन महतो चित्रा,
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सइर सगरठ-ए. के. झा
प्रबन्धकाव्य
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दामोदरेक कोराय -शिवनाथ प्रमाणिक,
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राम कथामृत– पानुरी,
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समाजेक सरजुइत निसइन– ए. के झा