- गिरिजाकुमार माथुर का जन्म सन् 1918 में गुना, मध्य प्रदेश में हुआ।
- प्रारंभिक शिक्षा झाँसी, उत्तर प्रदेश में ग्रहण करने के बाद उन्होंने एम. ए. अंग्रेज़ी व एल. एल. बी. की उपाधि लखनऊ से अर्जित की।
- शुरू में कुछ समय तक वकालत की। बाद में आकाशवाणी और दूरदर्शन में कार्यरत हुए।
- उनका निधन सन् 1994 में हुआ।
- गिरिजाकुमार माथुर की प्रमुख रचनाएँ हैं –
- नाश और निर्माण,
- धूप के धान,
- शिलापंख चमकीले,
- भीतरी नदी की यात्रा ( काव्य-संग्रह);
- जन्म कैद (नाटक);
- नयी कविता : सीमाएँ और संभावनाएँ (आलोचना ) ।
- नयी कविता के कवि गिरिजाकुमार माथुर रोमानी मिज़ाज के कवि माने जाते हैं।
- वे विषय की मौलिकता के पक्षधर तो हैं परंतु शिल्प की विलक्षणता को नज़रअंदाज़ करके नहीं । चित्र को अधिक स्पष्ट करने के लिए वे वातावरण के रंग को भरते हैं। वे मुक्त छंद में ध्वनि साम्य के प्रयोग के कारण तुक के बिना भी कविता में संगीतात्मकता संभव कर सके हैं। भाषा के दो रंग उनकी कविताओं में मौजूद हैं। वे जहाँ रोमानी कविताओं में छोटी-छोटी ध्वनि वाले बोलचाल के शब्दों का प्रयोग करते हैं, वहीं क्लासिक मिज़ाज की कविताओं में लंबी और गंभीर ध्वनि वाले शब्दों को तरजीह देते हैं।
छाया मत छूना कविता – गिरिजाकुमार माथुर
छाया मत छूना कविता के माध्यम से कवि यह कहना चाहता है कि जीवन में सुख और दुख दोनों की उपस्थिति है। विगत के सुख को यादकर वर्तमान के दुख को और गहरा करना तर्कसंगत नहीं है । कवि के शब्दों में इससे दुख दूना होता है। विगत की सुखद काल्पनिकता से चिपके रहकर वर्तमान से पलायन की अपेक्षा, कठिन यथार्थ से रू-ब-रू होना ही जीवन की प्राथमिकता होनी चाहिए।
कविता अतीत की स्मृतियों को भूल वर्तमान का सामना कर भविष्य का वरण करने का संदेश देती है। वह यह बताती है कि जीवन के सत्य को छोड़कर उसकी छायाओं से भ्रमित रहना जीवन की कठोर वास्तविकता से दूर रहना है। कविता में रोमानी भावबोध की अभिव्यक्ति देखी जा सकती है।
शब्द-संपदा
- छाया – भ्रम, दुविधा
- सुरंग – रंग-बिरंगी
- छवियों की चित्रगंध – चित्र की स्मृति के साथ उसके आसपास की गंध का अनुभव
- यामिनी – तारों भरी चाँदनी रात
- कुंतल – लंबे केश
- सरमाया – पूँजी
- प्रभुता का शरण – बिंब – बड़प्पन का अहसास
- दुविधाहत साहस – साहस होते हुए भी दुविधाग्रस्त रहना
यह भी जानें
- प्रसिद्ध गीत ‘We shall overcome‘ का हिंदी अनुवाद ‘हम होंगे कामयाब‘ शीर्षक से कवि गिरिजाकुमार माथुर ने किया है।