कन्यादान – ऋतुराज

  • ऋतुराज का जन्म सन् 1940 में भरतपुर में हुआ।
  • राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर से उन्होंने अंग्रेज़ी में एम.ए. किया।
  • चालीस वर्षों तक अंग्रेज़ी साहित्य के अध्यापन के बाद अब सेवानिवृत्ति लेकर वे जयपुर में रहते हैं।
  • उनके अब तक आठ कविता-संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं जिनमें प्रमुख हैं।
    • एक मरणधर्मा और अन्य,
    • पुल पर पानी,
    • सुरत निरत
    • लीला मुखारविंद 
  • उन्हें सोमदत्त, परिमल सम्मान, मीरा पुरस्कार, पहल सम्मान तथा बिहारी पुरस्कार मिल चुके हैं।
  • मुख्यधारा से अलग समाज के हाशिए के लोगों की चिंताओं को ऋतुराज ने अपने लेखन का विषय बनाया है
  • उनकी कविताओं में दैनिक जीवन के अनुभव का यथार्थ है और वे अपने आसपास रोज़मर्रा में घटित होने वाले सामाजिक शोषण और विडंबनाओं पर निगाह डालते हैं। यही कारण है कि उनकी भाषा अपने परिवेश और लोक जीवन से जुड़ी हुई है।

कन्यादान कविता – ऋतुराज

  • कन्यादान कविता में माँ बेटी को स्त्री के परंपरागत ‘आदर्श’ रूप से हटकर सीख दे रही है। कवि का मानना है कि समाज – व्यवस्था द्वारा स्त्रियों के लिए आचरण संबंधी जो प्रतिमान गढ़ लिए जाते हैं वे आदर्श के मुलम्मे में बंधन होते हैं। ‘कोमलता’ के गौरव में ‘कमज़ोरी’ का उपहास छिपा रहता है। लड़की जैसा न दिखाई देने में इसी आदर्शीकरण का प्रतिकार है। बेटी माँ के सबसे निकट और उसके सुख-दुख की साथी होती है। इसी कारण उसे अंतिम पूँजी कहा गया है। कविता में कोरी भावुकता नहीं बल्कि माँ के संचित अनुभवों की पीड़ा की प्रामाणिक अभिव्यक्ति है। इस छोटी-सी कविता में स्त्री जीवन के प्रति ऋतुराज जी की गहरी संवेदनशीलता अभिव्यक्त हुई है। 

कन्यादान 

कन्यादान - ऋतुराज
कन्यादान – ऋतुराज

 

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