• लैटेराइट मृदा (Laterite Soil) लेटराइट मिट्टी का सर्वप्रथम अध्ययन 1905 में बुकानन द्वारा किया गया
  • इस मृदा उच्च तापमान एवं भारी वर्षा क्षेत्रों में पाई जाती है। 
    • केरल (मालाबार प्रदेश)
    • महाराष्ट्र,
    • कर्नाटक
    • ओडिशा के पठारी क्षेत्रों
    • राजमहल पहाड़ी क्षेत्रों
    • छोटानागपुर के पठार
    • असम के पहाड़ी क्षेत्रों
    • मेघालय के पठार में
  • अधिक वर्षा के कारण जल के साथ चूना और सिलिका का निक्षालन हो जाता है तथा लोहे के ऑक्साइड और एल्युमीनियम के यौगिक मृदा में शेष बचे रहते हैं। 
    • प्रारूप लोहे का अतिरेक होने के कारण अनुर्वर हो रहा है।
  • यह साधारणतः लाल रंग की होती है
  • इसमें चूना ,जैव पदार्थ, नाइट्रोजन, फॉस्फेट और कैल्शियम की कमी होती है। 
  • कम उपजाऊ मृदा मानी जाती है।
    • रबड़ और कॉफी की फसल के लिये सबसे अच्छी मानी जाती है।
    • चाय, कहवा, रबड़, सिनकोना, काजू,टैपियोका मोटे अनाजों एवं मसालों की कृषि की जाती है
  • आद्र अपछालित प्रदेश की मिटटी है।
  • यह मृदा सूखने के बाद बहुत कड़ी हो जाती है
    • लैटेराइट मृदा का प्रयोग ‘ईटों’ के निर्माण में भी किया जाता है।