• निर्गुण भक्ति परंपरा में कबीर और गुरु नानक के साथ दादू दयाल का स्थान प्रमुख है। 
  • दादू की रचनाओं का संग्रह उनके दो शिष्यों- संतदास एवं जगन दास ने ‘हरडेवाणी‘ नाम से किया था। 
  • कालांतर में रज्जब ने इसका संपादन  ‘अंगवधू’ नाम से किया। 
  • कबीर की भाँति दादू ने भी निर्गुण निराकार ब्रह्म को अपनी भक्तिपरक भावनाओं का विषय बनाया। 
  • उनकी काव्य-भाषा ब्रजभाषा है जिसमें राजस्थानी और खड़ी बोली के शब्दों का मिश्रण है।
  • नोट : इनका जन्म संभवतः अहमदाबाद में हुआ था। इस पर विवाद है कि वे गुजरात के थे या राजस्थान के; किंतु उनकी प्रसिद्धि राजस्थान के क्षेत्र में ज्यादा है। कहा जाता है कि सम्राट अकबर दादू से धार्मिक वार्ताएँ किया करते थे। के शिष्य थे।