- कोल विद्रोह (1831-1832)
- झारखण्ड का प्रथम सुसंगठित तथा व्यापक जनजातीय आंदोलन था।
- विद्रोह को समर्थन – मुण्डा, हो, चेरो, खरवार आदि जनजातियों का
- विद्रोह से सम्बंधित व्यक्ति
- विद्रोह की योजना बनाने हेतु सभा का आयोजन
- तमाड़ के लंका गाँव में
- व्यवस्था – बंदगाँव के बिंदराय मानकी ने की थी।
- विद्रोहियों ने जफर अली व उसके दस आदमियों को मार डाला।
- विद्रोह प्रारंभ – 1831 ई. में
- प्रसार – छोटानागपुर खास, पलामू, सिंहभूम एवं मानभूम क्षेत्र
- हजारीबाग में बड़ी संख्या में अंग्रेज सेना की मौजूदगी के कारण यह क्षेत्र इस विद्रोह से पूर्णतः अछूता रहा।
- प्रतीक चिह्न – तीर
- बुद्ध भगत (सिल्ली निवासी) को कैप्टन इम्पे ने मारा था।
- पिठोरिया के राजा जगतपाल सिंह ने अंग्रेजों की मदद की थी
- बदले में गवर्नर जनरल विलियम बेंटिक ने जगतपाल सिंह को 313 रूपये प्रतिमाह आजीवन पेंशन देने की घोषणा की।
- सिंदराय मानकी तथा सुर्गा मुण्डा ने आत्मसमर्पण कर दिया – 1832 ई. में
विद्रोह का परिणाम
- छोटानागपुर क्षेत्र में 1833 ई. का रेगुलेशन-III लागू
- जंगलमहल जिला को समाप्त कर नन-रेगुलेशन प्रांत के रूप में गठन
- इसे बाद में दक्षिण-पश्चिम सीमा एजेंसी का नाम दिया गया।
- प्रशासन संचालन की जिम्मेदारी – गवर्नर जनरल के एजेंट का
- पहला एजेंट – थॉमस विल्किंसन
विद्रोह के प्रमुख कारण
- लगान की ऊँची दरें
- लगान नहीं चुका पाने पर भूमि से मालिकाना हक की समाप्ति।
- अफीम की खेती हेतु आदिवासियों का शोषण
- जमींदारों व जागीरदारों द्वारा कोलों का शोषण
- दिकुओं ,ठेकेदारों व व्यापारियों द्वारा आदिवासियों का आर्थिक शोषण
- अंग्रेजों द्वारा लगाए विभिन्न प्रकार के कर
- ‘पतचुई” कर – 1824 में , हड़िया पर
- आदिवासियों के परंपरागत ‘पड़हा पंचायत व्यवस्था’ के स्थान पर अंग्रेजी कानून को लागू किया जाना।