बिहार के प्रमुख धार्मिक पर्यटन स्थल
राजधानी पटना में स्थित प्रमुख मंदिर / देवालय
- बड़ी पटन देवी मंदिर (पटना) : इक्यावन शक्ति पीठों में से एक माना जाने वाला यह प्राचीन मंदिर पटना सिटी के पश्चिम दरवाजा के निकट महाराजगंज क्षेत्र में है । यहाँ भगवती दुर्गा की उपासना की जाती है ।
- छोटी पटन देवी मंदिर (पटना) : पटना सिटी के चौक क्षेत्र में अवस्थित यह पुरातन मंदिर भी भगवती दुर्गा को समर्पित है ।
- कालीस्थान (पटना सिटी ) : चौक क्षेत्र के मंगल तालाब के निकट स्थित देवी काली का यह प्राचीन मंदिर एक विख्यात पूजा-स्थल है ।
- शीतला माता मंदिर (पटना) : गुलजारबाग रेलवे स्टेशन से दक्षिण-पश्चिम में अवस्थित ऐतिहासिक अगमकुआँ परिसर में शीतला माता का यह प्राचीन मंदिर स्थानीय लोगों की श्रद्धा का केंद्र है। खसरे की बीमारी से देवी उनकी और उनके परिवार की रक्षा करेंगी, इस विश्वास से लोग यहाँ पूजा-अर्चना करते हैं ।
- कालीस्थान, दरभंगा हाउस : पटना में गंगा नदी के तट पर पटना विश्वविद्यालय के दरभंगा हाउस के निकट स्थित यह काली मंदिर श्रद्धालुओं की उपासना का अनन्य स्थान है ।
- चैतन्य महाप्रभु मंदिर (पटना) : पटना सिटी में महात्मा गाँधी सेतु से सटे गाय घाट क्षेत्र में अवस्थित लगभग 400 वर्ष पुराना यह चैतन्य मंदिर देश के ऐसे गिने-चुने मंदिरों में से एक है जहाँ ईश्वर की प्रतिमाओं के अलावा दुर्लभ साहित्यिक कृतियाँ, पांडुलिपियाँ, ऐतिहासिक महत्व की अंसख्य वस्तुएँ, चित्र एवं पुस्तकादि के भी अमूल्य संग्रह हैं ।
- हनुमान मंदिर (पटना) : पटना जंक्शन के बिल्कुल सामने स्थित हनुमान जी की युगल प्रतिमा
- वाला यह विशाल महावीर मंदिर श्रद्धालुओं की श्रद्धा का एक महत्वपूर्ण केंद्र है ।
- महावीर मंदिर (पटना) : पटना साहिब रेलवे स्टेशन के निकट बेगमपुर के जल्ला क्षेत्र में प्रायः 400 वर्ष पुराना एक महावीर मंदिर है जो ‘जल्ले का महावीर मंदिर’ नाम से जाना जाता है ।
- अन्नपूर्णा मंदिर (पटना) : पटना सिटी में अशोक राजपथ से सटे संकटमोचन मार्ग ( मच्छरहट्टा गली) में स्थित पटना का यह एकमात्र अन्नपूर्णा देवी का प्राचीन मंदिर है ।
- बिड़ला मंदिर (पटना) : भारत के प्रतिष्ठित उद्योगपति राजा बलदेव दास जी बिड़ला द्वारा सन् 1942 विक्रम संवत् में निर्मित पटना के सब्जीबाग क्षेत्र में अवस्थित यह मंदिर हिन्दू धर्मावलम्बियों की अटूट आस्था का केंद्र है ।
पटना से बाहर राज्य के अन्य प्रमुख देवस्थल
- अजगैबीनाथ मंदिर : भागलपुर से 26 किमी पश्चिम सुल्तानगंज में उत्तर – वाहिनी गंगा के तट पर स्थित भगवान शिव का यह प्राचीन मंदिर श्रद्धालुओं का एक महत्वपूर्ण तीर्थ-स्थान है । प्रत्येक वर्ष श्रावण महीने में लोग इस मंदिर में पूजा-अर्चना करते हैं और यहीं से गंगाजल का कांवर लेकर देवघर तक की पैदल यात्रा आरंभ करते हैं तथा वहाँ बाबा बैद्यनाथ का इस जल से अभिषेक करते हैं ।
- अरेराज का शिव मंदिर : पूर्वी चंपारण जिले के जिला मुख्यालय मोतिहारी से प्रायः 30 किमी दक्षिण-पश्चिम में अवस्थित भगवान शिव के इस प्राचीन मंदिर का बहुत महत्व है ।
- अहिरौली (बक्सर) : बक्सर शहरी क्षेत्र से प्रायः 5 किमी उत्तर-पूर्व में माता अहिल्या का मंदिर है । ऐसा विश्वास किया जाता है कि ऋषि गौतम की पत्नी अहिल्या का उद्धार भगवान राम ने यहीं पर किया था । यहाँ प्रतिवर्ष ‘खिचड़ी – उत्सव’ (मकर संक्रान्ति) के अवसर पर बड़ा मेला लगा करता है ।
- उच्चैठ स्थान (मधुबनी) : यहाँ माता काली का एक प्राचीन मंदिर है। इसके संबंध में किंवदन्ति है कि महाकवि कालिदास द्वारा यहाँ देवी की आराधना की जाती थी ।
- उग्रतारा मंदिर (महिषी, सहरसा) : सहरसा शहर से 17 किमी पश्चिम में स्थित महिषी ग्राम में एक प्राचीन उग्रतारा मंदिर है, जिसमें नील सरस्वती की प्रतिमा भी मूल प्रतिमा के साथ अवस्थित है। मधुबनी के नरेन्द्र सिंह देव की पत्नी रानी पद्मावती द्वारा लगभग 500 वर्ष पूर्व स्थापित इस मुख्य मंदिर सहित परिसर में स्थित अन्य मंदिरों की प्रतिमाएँ पाल काल की हैं। प्रचलित मान्यता है कि 8वीं शताब्दी के दार्शनिक पंडित मंडन मिश्र का जन्म महिषी ग्राम हुआ था। आदिगुरु शंकराचार्य ने मंडन मिश्र तथा उनकी पत्नी भारती से यहीं शास्त्रार्थ में किया था ।
- कुशेश्वर स्थान (दरभंगा) : यह स्थान भगवान शिव के एक प्राचीन मंदिर के लिए विख्यात है । शिवरात्रि के अवसर पर प्रतिवर्ष यहाँ बहुत बड़ा मेला लगा करता है ।
- गिरिजा स्थान (मधुबनी) : हरलाखी से प्रायः 6 किमी की दूरी पर फुलहर में एक प्राचीन गिरिजा (पार्वती) मंदिर है। मान्यता है कि विवाह के पहले सीता (जानकी) नियमित रूप से यहाँ स्नान करने एवं फूल तोड़ने आती थीं तथा मंदिर में पार्वती का पूजन करती थीं । > गुप्त धाम (रोहतास) : कैमूर की पहाड़ियों पर एक प्राकृतिक गुफा में प्राकृतिक रूप से ही बना एक शिवलिंग अवस्थित है जिसे गुप्तेश्वर नाथ के रूप में पूजा जाता है। वसंत पंचमी और शिवरात्रि के अवसर पर यहाँ बड़े मेले लगा करते हैं ।
- चौमुखी महादेव (वैशाली) : प्राचीन वैशाली नगर ( आधुनिक बसाढ़) में एक चौमुखी महादेव सहित अन्य अति प्राचीन शिवलिंग हैं जिनकी पूजा- अर्चना पूरी श्रद्धा से की जाती है ।
- चंडी स्थान (विराटपुर, सहरसा) : सोनबरसा से लगभग 9 किमी की दूरी पर विराटपुर ग्राम में माँ चंडिका देवी का एक प्राचीन मंदिर अवस्थित है । लोकआस्था के अनुसार यह मंदिर महाभारत काल से संबंध रखता है । प्राप्त शिलालेख के अनुसार यह मंदिर 11वीं सदी का है ।
- देवकुली का शिव मंदिर (शिवहर) : शिवहर से प्रायः 6 किमी पूरब दिशा में महाभारतकालीन राजा द्रुपद का किला (गढ़) माने जाने वाले स्थान पर भगवान भुवनेश्वर (शिव) का एक अति प्राचीन मंदिर है जिसके प्रति लोगों में अपार श्रद्धा है ।
- थावे (गोपालगंज) : गोपालगंज से प्रायः 6 किमी दक्षिण में थावे नामक ग्राम के समीप भगवती दुर्गा का एक प्राचीन मंदिर है । इसे सिद्ध पीठ माना जाता है, जहाँ बड़ी संख्या में श्रद्धालु पूजा-अर्चना करने आते हैं । यहाँ निकटस्थ जंगल में सियारों को भोजन कराने की परंपरा है। प्रत्येक वर्ष मार्च-अप्रैल (चैत) महीने में यहाँ बहुत बड़ा मेला लगा करता है ।
- नेपाली मंदिर (हाजीपुर) : पटना से उत्तर हाजीपुर में गंगा और गंडक नदियों के पवित्र संगम- स्थल पर अवस्थित यह प्राचीन नेपाली – मंदिर अपनी लघु आकृति में काष्ठ शिल्प का अद्भुत नमूना है । इसके प्रत्येक काष्ठ- स्तंभ में भिन्न-भिन्न देवताओं की आकृतियाँ उत्कीर्ण हैं । यहाँ कुछ अन्य आकर्षक, आकृतियाँ भी खजुराहो मंदिर की शैली में उत्कीर्ण हैं। भलुनी धाम (रोहतास) : विक्रमगंज के निकट भलुनी ग्राम में अवस्थित पार्वती के प्राचीन मंदिर के समीप प्रति वर्ष अक्टूबर और अप्रैल माह में मेला लगा करता है ।
- मंदारगिरि (भागलपुर) : भागलपुर शहर से प्रायः 50 किमी दक्षिण में बौंसी से 5 किमी की दूरी पर ग्रेनाइट चट्टानों से बना 700-800 फीट ऊँचा मंदार पर्वत पौराणिक महत्व का स्थान है । ऐसी मान्यता है कि देवताओं और असुरों द्वारा ‘समुद्र मंथन’ कार्य में इस पर्वत का ‘मथानी’ के रूप में प्रयोग किया गया था । यहाँ पर मकर संक्रान्ति के अवसर पर ‘बौंसी’ का विख्यात मेला लगता है । इस पर्वत शिखर पर भगवान मधुसूदन (विष्णु) का एक प्राचीन मंदिर है ।
- राजगीर (नालंदा): पटना शहर से प्रायः 102 किमी कि दूरी पर राजगीर एक प्रख्यात तीर्थस्थान है। ऐसा विश्वास है कि ‘ मलमास’ की अवधि में सभी हिंदू देवी-देवता यहाँ एकत्र होते हैं । ‘मलमास’ के अवसर पर यहाँ लगभग एक माह चलने वाला बहुत बड़ा मेला लगता है। यहाँ बौद्ध, जैन, मुस्लिम धर्म-संप्रदायों के भी अनेक पूजा-स्थल हैं ।
- राम-जानकी मंदिर (सीतामढ़ी) : सीतामढ़ी रेलवे स्टेशन से प्रायः डेढ़ किमी की दूरी पर शहर में अवस्थित यह स्थान भगवती सीता का जन्म-स्थल माना जाता है । यहाँ राम-जानकी का मंदिर हिन्दू आस्था का केंद्र है ।
- विष्णुपद मंदिर (गया) : गया शहर में विष्णुपद मंदिर जहाँ अवस्थित है, उसके संबंध में पौराणिक गाथा है कि यहाँ पर भगवान विष्णु ने गयासुर नामक दैत्य का नाश यहाँ पर किया था । एक शिला पर दो पद चिह्न अंकित हैं, जिन्हें भगवान विष्णु का पदचिह्न माना जाता है और उसकी पूजा की जाती है । वर्तमान मंदिर का निर्माण 18वीं शताब्दी के अंत में इन्दौर की महारानी अहिल्या बाई होल्कर ने करवाया था ।
- शिव मंदिर ( बराबर, जहानाबाद ) : गया से प्रायः 24 किमी उत्तर में स्थित बराबर पहाड़ी के शिखर पर सिद्धेश्वर महादेव का एक प्राचीन मंदिर है । इतिहासज्ञों के अनुसार यह मंदिर 14. सातवीं शताब्दी में निर्मित हुआ था । शिवरात्रि के अवसर पर दूर-दूर से कांवर में जल लाकर श्रद्धालु इस मंदिर में स्थित शिवलिंग का अभिषेक करते हैं ।
- शिव मंदिर ( बैकटपुर) : ऐतिहासिक तथ्य है कि मुगल सम्राट अकबर के सेनापति राजा मान सिंह की माता ने इस स्थान पर शरीर त्याग किया था । राष्ट्रीय राजपथ सं० 30 पर स्थित बैकटपुर ग्राम में गंगा तट पर भगवान शिव का एक प्राचीन मंदिर है जो राजा मान सिंह द्वारा बनवाया गया था । यह स्थान फतुहा से 8 किमी पूरब में अवस्थित है। शिवरात्रि में यहाँ मेला लगता है ।
- सिंहेश्वर स्थान (मधेपुरा) : कहा जाता है कि यह शिव मंदिर शृंगी ऋषि के द्वारा स्थापित किया गया था। इसमें स्थापित शिवलिंग अति प्राचीन है। वर्तमान मंदिर प्रायः 200 वर्ष पुराना है । यह मधेपुरा से प्रायः 8 किमी उत्तर-दिशा में अवस्थित है।
- सीताकुंड (मुंगेर) : रामायण की पौराणिक गाथाओं से जुड़ा यह स्थान मुंगेर से प्रायः 6 किमी पूरब दिशा में अवस्थित है, जहाँ गर्म जल के कई कुंड और हिंदू मंदिर हैं ।
- सूर्य मंदिर (दव, औरंगाबाद) : औरंगाबाद से लगभग 10 किमी की दूरी पर स्थित यह प्रसिद्ध सूर्य मंदिर प्रायः 600 वर्ष से भी अधिक पुराना और 100 फीट ऊँचा है । सामान्य सूर्य मंदिरों से विलग पश्चिमाभिमुख होना इसकी विशेषता है। इस मंदिर का निर्माण उमगा के चन्द्रवंशी राजा भैरवेन्द्र सिंह द्वारा 15वीं शताब्दी में कराया गया था । छठ पर्व के अवसर पर दूर-दराज के लोग भगवान सूर्य को अर्घ्य देने यहाँ आते हैं।
- सोमनाथ मंदिर (सौराठ, मधुबनी) : सौराठ का महत्व मिथिलावासियों के लिए अनन्य है । यहाँ मैथिल ब्राह्मणों के ‘विवाह’ निर्धारित होते हैं । इस हेतु प्रतिवर्ष एक बड़ा मेला लगता है जिसे ‘सौराठ – मेला’ के नाम से जाना जाता है। गुजरात के सोमनाथ मंदिर के सदृश ही यहाँ भगवान शिव का एक मंदिर है जो बहुत प्राचीन है ।
- हरिहर नाथ मंदिर ( सोनपुर ) : गज (हाथी) और ग्राह ( घड़ियाल ) की लड़ाई के पौराणिक आख्यानों का स्मरण कराने वाला हरि (विष्णु) और हर (शिव) का यह प्राचीन मंदिर पटना शहर से उत्तर दिशा में प्रायः 36 किमी दूर गंडक नदी के तट पर अवस्थित है । प्रत्येक वर्ष कार्तिक महीने में इसके आस-पास सोनपुर का विश्वं विख्यात हरिहरक्षेत्र मेला लगा करता है । बिहार में मुसलमानों के मुख्य इबादतखाने व पवित्र स्थल > इमामबाड़ा ( पटना सिटी ) : पश्चिम दरवाजा क्षेत्र में 17वीं शताब्दी में बनी मिर्जा मासूम की मस्जिद अवस्थित है। बुलन्दी बाग (कुम्हरार ) के पास गुनसर तालाब (झील) के निकट 19वीं शताब्दी में बना शाह अरजानी का मकबरा, इमामबाड़ा और ईदगाह दर्शनीय पवित्र स्थान हैं ।
- खानकाह ( फुलवारीशरीफ, पटना ) : प्रायः 13वीं शताब्दी से यह स्थान इस्लाम धर्म के प्रमुख केंद्र के रूप में स्थापित है । यहाँ हजरत मख्दुम शाह द्वारा स्थापित ‘खानकाह’ है । पैगम्बर मुहम्मद की स्मृति में यहाँ उर्स शरीफ – रवि- उल – औवल (10, 11 एवं 12वीं तिथियों को) मनाया जाता है ।
- पत्थर की मस्जिद (पटना) : पटना शहर में सुलतानगंज क्षेत्र में मुख्य मार्ग पर 1621-26 जहाँगीर के पुत्र परवेज का बनवाया हुआ एक मस्जिद अवस्थित है। जिसे ‘संगी’ या ‘पत्थर की मस्जिद’ के नाम से जाना जाता है ।
- बड़ी दरगाह ( बिहारशरीफ, नालंदा): पीर पहाड़ी पर स्थित हजरत मलिक बया तथा मख्दुम शाह शर्फद्दीन की बड़ी दरगाह और हजरत बदरूद्दीन-ए-आलम की छोटी दरगाह, जामा मस्जिद इत्यादि मुसलमानों के अत्यन्त पवित्र तीर्थ स्थान हैं । यहाँ देश-विदेश से लोग आते और इबादत करते हैं ।
- मनेर शरीफ (पटना) : हजरत शाह दौलत या मख्दुम दौलत का मकबरा (छोटी दरगाह) और हजरत शेख याहिया मनेरी या मख्दुम याहिया का मकबरा ( बड़ी दरगाह ) अत्यन्त प्राचीन एवं मुसलमानों के लिए पवित्रतम तीर्थस्थान हैं ।
- राजगीर (नालंदा) : राजगीर में मख्दुम कुंड मुसलमानों का अत्यन्त पवित्र तीर्थस्थान है । यहाँ मुसलमान संत चिल्ला साहब की मजार है। संत मख्दुम शाह शेख शर्फुद्दीन का यह निवास स्थान था। यह चौदहवीं शताब्दी में बना प्रतीत होता है । यहाँ मख्दुम कुंड के नाम से विख्यात गर्म जल का प्राकृतिक झरना भी है ।
राज्य में स्थित अन्य विख्यात इस्लामी धर्म-स्थल
- शाही मस्जिद (हाजीपुर), पत्थर की मस्जिद (वैशाली), जामा मस्जिद ( सासाराम ) और अमझरशरीफ (औरंगाबाद) भी मुसलमानों के प्राचीन स्मारक, तीर्थस्थान तथा इबादतगाह के रूप में प्रसिद्ध हैं।
- पटना सिटी में ही हाजीगंज क्षेत्र में शेरशाह के शासन काल में निर्मित एक प्राचीन मस्जिद है, जिसके अंदर हजरत मुहम्मद मुराद शहंशाह सूफी की कब्र है । यह कब्र 1543 ई० की है ।
- इनके अलावा शाह काले का मकबरा ( 18वीं शताब्दी), मालसलामी मस्जिद (1738 ई०) शीश महल मस्जिद (1776 ई०) इत्यादि अनेक प्राचीन इबादतगाह पटना सिटी क्षेत्र में अवस्थित हैं ।
बिहार में सिक्ख धर्मावलंबियों के धर्म-स्थल
- तख्त श्री हरमंदिर साहिब (पटना) : पटना जंक्शन से प्रायः 12 किमी एवं पटना साहिब रेलवे स्टेशन से प्रायः 3 किमी. की दूरी पर पटना सिटी में स्थित यह स्थान सिक्ख धर्म के दसवें एवं अंतिम गुरु गोविंद सिंह जी का जन्म स्थल है । उनकी अनेक वस्तुएं अभी भी यहाँ संरक्षित हैं । यहाँ सिक्खों का परम पवित्र स्थान है ।
- गुरुद्वारा गाय घाट (पटना): गुरु नानक देव जी यहाँ पहली बार 1509 ई० में ठहरे थे । बाद में 1666 ई० में गुरु तेग बहादुर भी अपने परिवार के साथ यहाँ रुके थे । यह स्थान गायघाट के पास आलमगंज मुहल्ले में अवस्थित है ।
- गुरुद्वारा गोविंद घाट ( पटना सिटी ) : इस स्थान का संबंध गुरु गोविंद सिंह जी से रहा है और यह हरमंदिर साहिब से लगभग 200 मीटर हटकर गंगा नदी के किनारे स्थित है ।
- गुरुद्वारा गुरु का बाग (पटना) : पटना – फतुहा मार्ग पर हरमंदिर साहब से प्रायः 3 किमी पूर्व की दिशा में यह स्थान अवस्थित है । गुरु तेग बहादुर बंगाल से लौटने के बाद अपने चार वर्षीय पुत्र ‘गोविंद राय’ से पहली बार यहीं मिले थे ।
- गुरुद्वारा हांडी साहब ( दानापुर) : पटना से पंजाब के लिए प्रस्थान करते समय गुरु गोविंद सिंह ने यहाँ पर पहला ठहराव किया था । यह पवित्र स्थल तख्त श्री हरमंदिर से प्रायः 20 किमी दूर पश्चिम दिशा में स्थित है ।
- राज्य के अन्य प्रमुख सिक्ख धर्म-स्थल : राज्य के गुरुद्वारा गुरु सिंह सभा (पूर्णिया), मुंगेर गुरुद्वारा (मुंगेर), गुरु सिंह सभा गुरुद्वारा (गया), गुरुद्वारा ( सासाराम ) आदि ।
बिहार में ईसाइयों के प्रमुख धर्म-स्थल
- पादरी की हवेली (पटना) : पटना में अशोक राजपथ पर स्थित हुआ सन् 1772 में निर्मित ‘ब्लेस्ड वर्जिन मेरी’ चर्च पटना और राज्य का उल्लेखनीय चर्च है । मदर टेरेसा ने यहाँ पर ‘नर्सिंग’ का प्रशिक्षण प्राप्त किया था ।
- राज्य के अन्य विख्यात ईसाई धर्म-स्थल : सेंट जोसेफ चर्च (बांकीपुर, पटना); सेंट टामस दि एपार्सल चर्च (गया); सेंट फ्रांसिस ऑसिसी चर्च (मुजफ्फरपुर); सेंट जोसेफ चर्च ( जमालपुर ); सेंट स्टीफन चर्च (दानापुर); ऑवर लेडी ऑफ सॉरोज चर्च (आरा) और ब्लेस्ड वर्जिन चर्च (बक्सर) आदि ।
बिहार में बौद्ध धर्म के प्रमुख तीर्थ स्थल
- बोधगया स्थित महाबोधि मंदिर : बोधगया स्थित इस मंदिर की भव्यता सुविख्यात है। इस स्थान पर सर्वप्रथम सम्राट अशोक ने तीसरी शताब्दी में एक स्तूप बनवाया था, जिसे बाद में कुषाण काल में मंदिर का स्वरूप दिया गया । कुख्यात आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने 1205 ई० में इस मंदिर को प्रायः नष्ट कर दिया था । सन् 1876 में पुरातत्ववेत्ताओं ने इस मंदिर के अवशेषों को उत्खनन से अनावृत्त किया ।
- बोधिवृक्ष (बोध गया ) : महाबोधि मंदिर के पश्चिम में पवित्र पीपल का यह वृक्ष है, जिसके नीचे समाधि लगाकर सिद्धार्थ ने ज्ञान प्राप्त किया तथा वह ‘बुद्ध’ बन गये । इतिहासकारों के अनुसार वर्त्तमान वृक्ष अपने वंश की चौथी पीढ़ी का है । कहा जाता है कि इस वृक्ष की पहले की पीढ़ियों को सम्राट अशोक की रानी तिस्यरक्षिता, बंगाल के हिंदू शासक शशांक वर्मन और प्राकृतिक आंधी-तूफान ने गिरा दिया था। चौथी टहनी जो निकलीं वही वर्तमान वृक्ष है जिसके पत्ते बौद्ध धर्मावलंबियों के लिए अत्यंत श्रद्धेय हैं ।
- वज्रासन ( बोध गया ) : यह चबूतरे के आकार का है। मान्यता है कि इसी प्रस्तर – चबूतरे पर बैठकर बुद्ध ने ध्यान लगाया था ।
- राजगीर : बौद्ध धर्म की दृष्टि से राजगीर काफी महत्वपूर्ण है। यहाँ बौद्धों के कई स्मारक हैं जिन्हें देखने देश-विदेश से भारी संख्या में पर्यटक आते हैं ।
- विश्व शांति स्तूप (राजगीर): जापान-भारत सर्वोदय मैत्री संघ द्वारा रत्नागिरि पर्वत के शिखर पर 1969 में विश्व शांति के प्रतीक के रूप में यह विशाल स्तूप निर्मित हुआ । प्रत्येक वर्ष वार्षिकोत्सव के अवसर पर देश-विदेश से अनेक श्रद्धालु यहाँ आकर भगवान बुद्ध को अपने श्रद्धा-सुमन अर्पित करते हैं।
- गृद्ध-कूट पर्वत (राजगीर) : भगवान बुद्ध ने इस स्थान पर वर्षा वास किया था ।
- सप्तपर्णि गुफाएँ (राजगीर) : भगवान बुद्ध के निर्वाण प्राप्त करने के उपरान्त इसी स्थान पर प्रथम बौद्ध संगीति का आयोजन हुआ था और बुद्ध के संदेशों को पहली बार लिपिबद्ध किया गया था ।
- जीवक – आम्रवन (राजगीर) : विख्यात आयुर्वेदाचार्य जीवक द्वारा इस स्थान पर एक चिकित्सालय स्थापित किया गया था। मान्यता है कि चचेरे भाई देवदत्त ने जब ईर्ष्यावश बुद्ध को घायल कर दिया था, तब इसी स्थान पर उनकी चिकित्सा – सुश्रुषा हुई थी ।
- वेणुवन बिहार (राजगीर) : मगध सम्राट बिम्बिसार द्वारा यह वेणुवन भगवान बुद्ध को निवास के लिए उपहार में दिया गया था । यह स्थान भगवान बुद्ध को बहुत प्रिय था ।
- वैशाली : भगवान बुद्ध के निर्वाण प्राप्ति के बाद उनकी पवित्र अस्थियों को मुख्य श्रद्धालुओं द्वारा जिन स्तूपों के नीचे सुरक्षित किया गया था उन्हीं स्तूपों में से एक स्तूप वैशाली में है । की खुदाई से प्रस्तर मंजूषा में संरक्षित भगवान बुद्ध की पवित्र अस्थियाँ और अन्य सामग्रियाँ प्राप्त हुई हैं, जिन्हें अस्थायी रूप से पटना संग्रहालय में रखा गया ।
बिहार में जैन धर्म के प्रमुख तीर्थस्थल
- कमलदह (पटना) गुलजारबाग रेलवे स्टेशन के निकट ही कमलदह नामक क्षेत्र में जैनियों का प्राचीन मंदिर है ।
- कुंडग्राम (वैशाली) : कुंडग्राम ( बासोकुंड) में भगवान महावीर का जन्म हुआ माना जाता है यह स्थान पटना से प्रायः 54 किमी उत्तर में वैशाली के निकट है।
- गुनावा जी (नवादा) पटना-रांची सड़क मार्ग पर नवादा के निकट यह स्थान अवस्थित है जहाँ जैनियों का प्राचीन मंदिर है ।
- लछुआर (जमुई) सिमरिया से 8 किमी और सिकंदरा से 7 किमी की दूरी पर स्थित इस स्थान पर जैनियों का प्राचीन मंदिर है ।
- चम्पा, नाथनगर (भागलपुर) : भागलपुर से प्रायः 6 किमी की दूरी पर चम्पा ( नाथनगर) में दिगम्बर जैनियों का प्राचीन मंदिर अवस्थित है ।
- पावापुरी (नालंदा) : पटना से प्रायः 92 किमी दूर पटना – रांची राष्ट्रीय उच्च पथ पर स्थित पावापुरी भगवान महावीर का यह निर्वाण स्थल है । जल मंदिर और समोशरण मंदिर यहाँ के प्रमुख तीर्थ स्थान हैं ।
- आरा (भोजपुर) (भोजपुर) : आरा शहर में जैनियों के प्रायः 45 मंदिर स्थित हैं । इसके निकट मसार में भी एक प्राचीन जैन मंदिर है ।
- राजगीर (नालंदा) : पटना से 102 किमी की दूरी पर स्थित राजगीर में मनियारमठ, सोन भंडार तथा पहाड़ों के शिखर पर जैनियों के कई पवित्र मंदिर स्थित हैं ।
बिहार के प्रमुख पर्यटन परिपथ
- बिहार में रामायण, भगवान बुद्ध व बौद्ध धर्म, सूफी संत व सूफी सिलसिला तथा कोसी क्षेत्र से सम्बन्धित चार प्रमुख परिपथ (सर्किट) हैं ।
- रामायण परिपथ ( रामायण सर्किट) : रामायण परिपथ के अंतर्गत बिहार के वे स्थान आते हैं जिनका बिहार में सीता (जानकी), राम अथवा रामायण कालीन कथा या प्रसंगों से कोई सम्बन्ध रहा है । रामायण परिपथ के प्रमुख स्थलों में भोजपुर स्थित ‘थाड़’ (जहाँ राक्षसी ‘ताड़का’ का वध हुआ), बक्सर स्थित ‘अहिरौली’ (गौतम ऋषि की पत्नी देवी अहिल्या को जहाँ राम ने श्राप मुक्त कर उनका उद्धार किया था) तथा ‘रामरेखा घाट’ (सीता स्वयंवर में शामिल होने के लिए जनकपुर जाते समय गुरु विश्वामित्र के साथ राम और लक्ष्मण ने यहीं से गंगा नदी पार किया), गया स्थित ‘प्रेतशिला पहाड़’ (जहाँ के एक कुंड में राम ने स्नान किया था ), जहानाबाद स्थित ‘काको’ (जहाँ राम की सौतेली माता कैकेयी ने कुछ दिन प्रवास किया), जमुई स्थित ‘गिद्धेश्वर’ (सीता का अपहरण करके ले जाते समय यहाँ पर जटायु नामक गिद्ध के साथ लंकापति रावण की लड़ाई हुई थी), मधेपुरा स्थित ‘सिंहेश्वर स्थान’ (यह उसी ऋषि श्रृंग की तपोभूमि है जिसे अयोध्या नरेश दशरथ के प्रथम अश्वमेध यज्ञ तथा पुत्रेष्टि यज्ञ सम्पन्न कराने का श्रेय दिया जाता है तथा जिनकी दिव्य औषधि से राजा दशरथ को चार पुत्र प्राप्त हुए), मधुबनी स्थित ‘फुलहर’ (जहाँ स्थित गिरिजा मंदिर में राजा जनक की पुत्री सीता देवी – आराधना हेतु आती थीं तथा पुष्पवाटिका से फूल तोड़कर भगवती की पूजा करती थीं), वैशाली स्थित ‘रामचौरा’ (जनकपुर जाते समय जहाँ भगवान राम स्नान आदि के लिए रुके थे), सीतामढ़ी स्थित ‘जानकी मंदिर’ और ‘जानकी मंदिर’, पुनौरा (जिसे राजा जनक की पुत्री सीता का जन्म स्थल माना जाता है); ‘हलेश्वर स्थान’ (जहाँ पर विदेह राज जनक ने हल चलाया था ) तथा पंथ पाकड़’ (जहाँ पर विवाहोपरान्त अयोध्या जाते समय सीता की डोली को बरगद वृक्ष के नीचे विश्राम हेतु रखा गया था), पूर्वी चंपारण स्थित ‘सीता कुंड’ (जहाँ पर भगवान राम की पत्नी सीता ने स्नान किया था), पश्चिम चंपारण स्थित ‘चनकीगढ़’ (जिसे जानकी गढ़ भी कहा जाता है तथा जहाँ राजा जनक के किला का अवशेष देखा जा सकता है), मुंगेर स्थित ‘सीता कुंड’ ( अग्नि परीक्षा के पश्चात् शरीर की तपन को शांत करने के लिए सीता ने यहाँ पर स्नान किया था), नवादा स्थित ‘सीतामढ़ी’ (जहाँ पर भगवान राम द्वारा निर्वासित किये जाने के बाद वाल्मीकि मुनि के आश्रम के निकट गुफा में सीता ने वास किया था तथा यहीं पर उनके दोनों पुत्रों लव और कुश ने भगवान राम की सेना से युद्ध किया था ) ।
- इनके अतिरिक्त सारण स्थित ‘रीविलगंज गोदना’, दरभंगा स्थित ‘ अहियारी’ अथवा ‘अहिल्या स्थान’, पश्चिम चंपारण स्थित ‘वाल्मीकि नगर’ आदि भी रामायण परिपथ के अंतर्गत आते हैं । रामायण परिपथ के अंतर्गत आने वाले उपर्युक्त स्थानों से सम्बन्धित विवरण पौराणिक उल्लेखों व आख्यानों, स्थानीय अवधारणाओं तथा किंवदन्तियों पर आधारित है ।
बुद्ध परिपथ ( बुद्धिस्ट सर्किट)
- गौतम बुद्ध से जुड़े अनेक स्थल बिहार की धरती पर आज दुनिया भर के श्रद्धालुओं और सैलानियों के लिए उपासना और पर्यटन के प्रमुख केंद्र के रूप में प्रसिद्ध हैं ।
- केंद्र और राज्य सरकारों ने इन बौद्ध स्थलों के महत्व को देखते हुए इसे पर्यटन के बौद्ध परिपथ या बौद्ध परिक्रमा के रूप में विकसित करने की योजना बनायी है । जापान सरकार की मदद से भी बौद्ध स्थलों का काफी विकास व उद्धार कार्य किया गया है । बौद्ध परिपथ के तहत मुख्य रूप से बोध गया, राजगीर, नालंदा, वैशाली, लौरिया नंदनगढ़, केसरिया, विक्रमशिला और औरंगाबाद के स्थल आते हैं ।
- बुद्ध परिपथ (Buddhist Circuit) के विकास की दिशा में एक और कदम बढ़ाते हुए केंद्र सरकार ने 148 किलोमीटर लंबी हाजीपुर-सुगौली नयी रेल लाइन का निर्माण कार्य आरंभ किया, जिसका उद्घाटन तत्कालीन प्रधानमंत्री वाजपेयी ने 10 फरवरी, 2004 को किया ।
सूफी परिपथ / सूफी सर्किट
- इनमें कुछ प्रमुख स्थल हैं – पटना स्थित मनेर शरीफ, खानकाह मुजीबिया, मंगल तालाब; वैशाली स्थित हजरत जन्दाहा, हाजीपुर कर्बला, मामू-भगिना का मजार; मुजफ्फरपुर स्थित दाता कमालशाह का मजार; मुंगेर स्थित पीर पहाड़, बिहारशरीफ स्थित बड़ी और छोटी दरगाह; रोहतास स्थित चंदन शाहिद की दरगाह, शेरशाह का मकबरा आदि ।
कोसी परिपथ
- कोसी परिपथ के अंतर्गत आने वाले राज्य के प्रमुख स्थलों में सहरसा स्थित उग्रतारा स्थान (महिषी), मंडन – भारती स्थान (महिषी), सूर्य मंदिर (कन्दाहा), कारू स्थान ( महपूरा ), परमहंस लक्ष्मीनाथ गोसाईं स्थान बाबाजी कुटी (बनगाँव), चंडी स्थान (विराटपुर, सोनवर्षा ), देवनबन ( शाहपुर, नवहट्टा), औकाही (दौरमा, सत्तर कटैया,) मत्स्यगंधा – जलाशय ( सहरसा सदर ); मधेपुरा स्थित सिंहेश्वर स्थान, श्रीनगर, नया नगर, वसंतपुर, सुरसंड, रामनगर, सुपौल स्थित हरदु, परिगंज, देवी पट्टी, परसरमा; पूर्णिया स्थित जलालगढ़, पूरणदेवी, गुलाब बाग, छोटी पहाड़ी, धरहरा, संपदाहर, किशनगंज स्थित बहादुरगंज, दिघल बैंक, बड़ीजान; कटिहार स्थित मनिहारी, कुरसेला, बेलंदास; अररिया स्थित पलासी, मदनपुर, खगड़िया स्थित कात्यायनी स्थान, पीर नगर आदि का नाम उल्लेखनीय है ।