- गंगा का उत्तरी मैदान
- बिहार में जलोढ़ या अपोढ़ मिट्टी की प्रधानता है, क्योंकि यहाँ का 90% क्षेत्र जलोढ़ मिट्टी का बना है। बिहार में पर्वतपदीय मिट्टी का निर्माण स्थानीय चट्टानों की तलछट से हुआ है।
- यह भाबर के मैदान का क्षेत्र है । यह मिट्टी पश्चिमी चम्पारण के उत्तर-पश्चिमी भाग में पायी जाती है।
- पर्वतपादीय मिट्टी
- पर्वतपादीय मिट्टी प० चम्पारण उत्तरी-पश्चिमी भाग में पायी जाती है। यहाँ आधारभूत चट्टानों के ऊपर अपरदित चट्टानों के छोटे-बड़े टुकडें मिलते हैं । भारी वर्षा और नमी की अधिकता के कारण कहीं-कहीं दलदली मिट्टी का भी विकास हो गया है ।
- वन क्षेत्र अधिक होने कारण यह भूरे रंग की अम्लीय मिट्टी है ।
- तराई मिट्टी
- पुरानी – जलोढ़ मिट्टी या बांगर मिट्टी
- इस मिट्टी का विस्तार पूर्णिया और सहरसा जिलों के कोसी क्षेत्र में अधिक है तथा दरभंगा और मुजफ्फरपुर के बाद चम्पारण के उत्तरी-पश्चिमी भाग में संकीर्ण होती हुई भांगर की पट्टी समाप्त होती है ।
- इस मिट्टी में चूना और क्षारीय तत्व नहीं हैं । यह मिट्टी हल्के भूरे रंग की होती है । कुछ क्षेत्रों में इसे करेल या कैवाल मिट्टी भी कहा जाता है। सिंचाई की पर्याप्त व्यवस्था होने पर इस मिट्टी में धान, जूट और गेहूं की अच्छी फसलें होती हैं ।
- करैल – कैवाल मिट्टी का क्षेत्र गंगा के दक्षिणी मैदानी भाग में शाहाबाद से लेकर गया, पटना, मुंगेर होता हुआ भागलपुर तक विस्तृत है ।
- बलसुन्दरी मिट्टी
- बिहार के उत्तरी मैदान में भांगर क्षेत्र के बाद बलसुन्दरी मिट्टी का क्षेत्र है। यह मिट्टी गहरे भूरे रंग की है तथा इसकी प्रकृति क्षारीय है ।
- पूर्णिया के दक्षिणी भाग से प्रारम्भ होकर सहरसा, दरभंगा और मुजफ्फरपुर के दक्षिणी भाग को घेरता हुआ सम्पूर्ण सारण जिले तथा चम्पारण के शेष दक्षिणी पश्चिमी भाग में विस्तृत इस मिट्टी को पुरानी जलोढ़ भी कहते हैं, जिसमें चुने के तत्वों की प्रधानता (10% से अधिक) है। यह क्षेत्र आम, लीची और केले के बागों के लिए प्रसिद्ध है।
- खादर मिट्टी
- यह नवीन जलोढ़ मिट्टी है, जिसका विकास बाद के मैदान में हुआ है। बाढ़ द्वारा छायी गयी मिट्टी के कारण इसमें उर्वरता बढ़ती जाती है।
- यह मिट्टी गंगा की घाटी, गंडक और बूढ़ी गंडक की निचली घाटी, कोसी और महानंदा की घाटी में पायी जाती है। यह गहरे भूरे रंग की होती है तथा इसमें कहीं बालू की मात्रा तो कहीं चीका की मात्रा अधिक मिलती है।
- गंगा का दक्षिणी मैदान
- गंगा के दक्षिण में ताल, पुरानी जलोढ़ और बलथर मिट्टी का क्षेत्र है।
- टाल की मिट्टी
- गंगा के दक्षिणी भाग में 8 से 10 किमी की चौड़ी पट्टी में मोटे कणों वाली धूसर रंग की मिट्टी पायी जाती है ।
- धूसर रंग की इस मिट्टी को टाल मिट्टी कहते हैं। इस मिट्टी का निर्माण वर्षा ऋतु के बाद आई बाढ़ के द्वारा बारीक व मोटे कणों वाली मिट्टी के निक्षेपण से होता है। यह अत्यधिक उर्वर मिट्टी है तथा जल सूखने के बाद इस भूमि पर रबी की अच्छी फसल होती है। अभ्रक मिट्टी
- अभ्रक मिट्टी
- बलथर मिट्टी
- बिहार के मैदानी भाग में गंगा के मैदान की दक्षिणी सीमा पर जहाँ छोटानागपुर का पहाड़ी भाग प्रारम्भ होता है, बलथर मिट्टी का संकीर्ण क्षेत्र स्थित है ।
- इसमें रेत और कंकड़ की बहुलता रहती है। इस मिट्टी का रंग पीला और लाल है।
- इस मिट्टी में होने वाली प्रधान फसलें मक्का, अरहर, कुल्थी, चना तथा ज्वार -बाजरा हैं। यह मिट्टी कैमूर पठार और गंगा-सोन दोआव के संधि-स्थल पर भी पायी जाती है।
- पश्चिम में कैमूर पठार से पूर्व में राजमहल की पहाड़ियों तक इस बलथर मिट्टी का संकीर्ण क्षेत्र स्थित है। इसमें लोहा का अंश अधिक होने के कारण इसका रंग लाल होता है तथा इसमें जल संग्रह करने की क्षमता कम होती है।
- लाल बलुई मिट्टी