- विहार में तीन प्रमुख नदी घाटी परियोजनाएँ हैं ।
- कोसी परियोजना एवं विद्युत्गृह,
- सोन वैराज योजना
- गंडक परियोजना शामिल हैं ।
- इन तीनों परियोजनाओं को कमांड एरिया डेवलपमेंट प्रोग्राम (CADP) में 1974 में लाया गया था ।
- ये तीनों परियोजनाएँ राज्य सरकार की है |
कोसी परियोजना एवं विद्युत्गृह
- कोसी परियोजना उत्तरी बिहार की प्रमुख बहुउद्देश्यी परियोजना है, जो 86 करोड़ रुपए की लागत से पूरी हुई है । इस परियोजना के निर्माण से पूर्व इस प्रदेश की लगभग 3200 हेक्टेयर कृषि भूमि कोसी नदी के अनिश्चित प्रवाह पथ तथा भयंकर बाढ़ों से प्रभावित थी ।
- कोसी परियोजना की स्थापना 1953 में की गयी थी। इस परियोजना के लिए नेपाल और भारत के बीच अप्रैल में 1954 में आपसी सहमति हुई थी ।
- 1965 में यह परियोजना बनकर तैयार हुई। 1966 में इसमें कुछ संशोधन किया गया। इस परियोजना के अन्तर्गत हनुमान नगर अवरोधक बाँध, पुश्ते बाँध बनाये गये हैं ।
- कोसी परियोजना से पूर्वी कोसी नहर, पश्चिमी कोसी नहर और राजपुर नहर बनायी गई हैं ।
- इस योजना से 3.14 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई संभव है। इस परियोजना के अन्तर्गत कटैया (वीरपुर के पास ) नामक स्थान पर एक जल-विद्युत् गृह स्थापित किया गया है ।
- हनुमान नगर अवरोधक बाँध ( कोसी बराज )
- नेपाल में हिमालय की तराई में चतरा गॉर्ज से लगभग 45 किलोमीटर दक्षिण कोसी नदी पर 1149 मीटर लंबा तथा 72 मीटर ऊँचा अवरोधक बाँध भीमनगर के समीप बनाया गया है, जो हनुमान नगर कोसी बराज के नाम से प्रसिद्ध है ।
- इसके समीप दायीं ओर भारदा तक 2458 मीटर एवं बायीं ओर भीमनगर तक 1895 मीटर दो लंबे तटबंधों का निर्माण किया गया है ।
- हनुमान नगर अवरोधक बाँध के दोनों किनारों पर जल निःसरण हेतु ऐसे यंत्रों की व्यवस्था है जिससे दायें किनारे पर जल का अधिकतम प्रवाह 11.9 हजार किलोलीटर तथा बायें किनारे पर 28.9 हजार किलोलीटर प्रति मिनट होता है ।
- बाढ़ तटबंध
- हनुमान नगर अवरोधक बाँध से दोनों ओर बिहार के मैदानी क्षेत्र में नदी के समानांतर मिट्टी का तटबंध कोसी के निरंतर परिवर्तित मार्ग को स्थिर रखने के लिए निर्मित किया गया है। दायें किनारे पर भारदा से घोंघेपुर तक तटबंध की लंबाई लगभग 124 किलोमीटर है।
- निर्मली को बाढ़ से सुरक्षित रखने के लिए एक वृत्ताकार बाँध भी निर्मित किया गया है तथा इस अवरोधक बाँध से उत्तर की ओर 13 किलोमीटर लंबी एक नियंत्रणात्मक बाँध का निर्माण भारदा से भिकुंडी तक किया गया है ।
- बायें किनारे पर भीमनगर से कोपरिया तक तटबंध की लंबाई 146 किलोमीटर है। साथ ही भीमनगर से बाँधजोरा तक 32 किलोमीटर लंबा एक अभिवाह बाँध बनाया गया है, जिसके फलस्वरूप अवरोधक बाँध के पार्श्व में 41 किलोमीटर का एक जलमग्न क्षेत्र निर्मित हो गया है । > इन बाँधों के अतिरिक्त महादेव, मरु, डलवा तथा निर्मली तटबंध बनाये गये हैं, जो नदी तट के क्षय एवं अपरदन के अतिरिक्त लगभग 2.65 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को बाढ़ से सुरक्षा प्रदान करते हैं । परन्तु, दोनों मुख्य तटबंधों के मध्य में स्थित लगभग 300 गाँवों की लगभग एक लाख हेक्टेयर कृषि भूमि प्रतिवर्ष बाढ़ से प्रभावित रहती है ।
- नहर व्यवस्था
- कोसी नदी के पूर्व तथा पश्चिमी किनारों पर नहरों का निर्माण कर बिहार के सहरसा, सुपौल, पूर्णिया, अररिया, कटिहार, दरभंगा, मधुबनी तथा खगड़िया की एवं नेपाल के सप्तरी जिले की लगभग 26 लाख हेक्टेयर भूमि को सिंचाई की सुविधा प्रदान की जा रही है ।
- कोसी परियोजना की नहरों को तीन प्रधान वर्गों में विभाजित किया जा सकता है—
- (क) पूर्वी कोसी नहर क्रम,
- (ख) पश्चिमी कोसी नहर क्रम और
- (ग) राजपुर नहर क्रम ।
(क) पूर्वी कोसी नहर-क्रम-
- हनुमान नगर अवरोधक बाँध को बायें किनारे से निकाली जानेवाली पूर्वी कोसी नहर क्रम के नाम से जानी जाती है, जो पूर्णिया, अररिया, सुपौल तथा सहरसा जिले की 5.69 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि को प्रतिवर्ष सिंचित करती है ।
- प्रमुख पूर्वी कोसी नहर की कुल लंबाई यद्यपि 43.5 किलोमीटर ही है, पर अपनी शाखाओं जैसे- मुरलीगंज, जानकीनगर, पूर्णिया, अररिया तथा अन्य दूसरी जल वितरक प्रशाखाओं सहित इसकी कुल लंबाई 3,038 किलोमीटर हो जाती है ।
- पूर्वी कोसी नहर क्रम के अंतर्गत फुलकाहा वितरक शाखा शामिल है, जो मुख्य पूर्वी नहर तथा बिहार- नेपाल सीमा के बीच फैली लगभग 12000 हेक्टेयर भूमि को सिंचित करती है ।
(ख) पश्चिमी कोसी नहर
- पश्चिमी कोसी नहर क्रम का मुख्य उद्देश्य बिहार के दरभंगा एवं बेगूसराय जिले की लगभग 3 लाख 10 हजार हेक्टेयर तथा नेपाल के सप्तरी जिले की 28 हजार हेक्टेयर भूमि को सिंचाई की सुविधा प्रदान करना है । इस काम के लिए 113 किलोमीटर लंबी नहरों का विकास किया गया है ।
- इस क्रम की मुख्य शाखा हनुमान नगर अवरोधक बाँध के दायीं ओर से निकाली गयी है ।
- इन नहरों के अतिरिक्त नेपाल के बाघजोरा के समीप चतरा नामक नहर निकालकर बेगूसराय जिले की 85,890 हेक्टेयर भूमि तथा दाहिने किनारे पर पश्चिमी कोसी नहर द्वारा सप्तरी जिले के 28,300 हेक्टेयर भूमि की सिंचाई की जाती है ।
(ग) राजपुर नहर क्रम
- हनुमान नगर के बायें किनारे से निकाली जाने वाली इस नहर क्रम का विस्तार पूर्वी कोसी नहर क्रम और पूर्वी बाढ़ तटबंध के मध्यवर्ती क्षेत्र में विस्तृत है ।
- राजपुर नहर व्यवस्था के अंतर्गत एक शाखा नहर राजपुर तथा चार उपशाखा नहर मधेपुरा, गम्हरिया, सहरसा तथा सुपौल सहित इसकी कुल लंबाई 366 किलोमीटर है । इस नहर व्यवस्था से तटबंध निर्माण के फलस्वरूप सहरसा तथा बेगूसराय जिले की बाढ़ से मुक्त लगभग 4 लाख हेक्टेयर भूमि को सिंचाई की सुविधा प्राप्त होती है ।
- सिंचाई तथा बाढ़ नियंत्रण की सुविधाओं के अतिरिक्त बाँध के समीप कटैया नामक स्थान पर 20 हजार किलोवाट क्षमता वाले जल विद्युत् गृह का निर्माण किया गया है । इस विद्युत् गृह में पाँच-पाँच हजार किलोवाट बिजली उत्पादन करने वाली चार इकाइयाँ हैं ।
सोन परियोजना
- सोन नदी विंध्याचल की पहाड़ियों की उत्तर-पूर्वी ढाल से गुजरती हुई बिहार में प्रवेश करती है। बिहार में डेहरी के समीप इसका जलसंग्रहण क्षेत्र लगभग 26,608 वर्गमील है ।
- इस नदी पर 1968-74 ई० के बीच पहला एनीकट निर्मित किया गया था, जो नहरों को (खासकर रबी फसलों की सिंचाई के लिए भोजपुर, रोहतास, गया, औरंगाबाद तथा पटना जिलों को ) जल उपलब्ध कराता था । बाद में डिहरी के समीप बने पहले एनीकट से लगभग 12 किलोमीटर दक्षिण इंद्रपुरी नामक स्थान पर एक नया तथा अत्यंत मजबूत बाँध बनवाया गया। यद्यपि इस स्थान पर नदी की कुल चौड़ाई 3,81,000 मीटर है परंतु बराज की कुल चौड़ाई मात्र 1412 मीटर ही रखी गयी ।
- सोन बराज के बायीं ओर 59 स्लिपवे तथा 8 भूमिगत स्लूइजवे तथा दायीं ओर 4 भूमिगत स्लूइज वे हैं । इसके अतिरिक्त बराज पर 6.7 मीटर चौड़ी एक सड़क भी निर्मित की गयी है ।
- बराज के दोनों किनारों को निर्मित कर न केवल पश्चिमी तथा पूर्वी सोन नहरों को पर्याप्त जल की सुविधा दी गयी है बल्कि सोन की नहरों में आंतरिक परिवहन व्यवस्था भी सुलभ करायी गयी है ।
गंडक परियोजना
- गंडक परियोजना भारत तथा नेपाल सरकार की संयुक्त योजना है।
- गंडक योजना के लिए भारत तथा नेपाल के बीच दिसम्बर 1959 में समझौता हुआ। परंतु इस संदर्भ में 1960 में कार्य प्रारंभ किया गया। गंडक योजना यद्यपि बिहार में स्थापित है, परंतु इससे बिहार के अतिरिक्त उत्तर प्रदेश तथा नेपाल भी लाभान्वित होते हैं ।
- इस योजना के अंतर्गत बिहार के भैंसालोटन नामक स्थान में गंडक नदी पर भारत-नेपाल सीमा के समीप सड़क पुल के साथ 837.8 मीटर लंबा बराज (1969-70 में ) निर्मित किया गया है ।
- इसका लगभग आधा भाग बिहार में तथा आधा भाग नेपाल में पड़ता है।
- बराज के दोनों किनारों से दो मुख्य नहरें अर्थात् पश्चिमी तथा पूर्वी नहरें 1972-73 में खोदी गयीं । इन दोनों नहरों द्वारा सम्मिलित रूप से भारत तथा नेपाल की कुल 14.8 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई की जा सकती है ।
- पश्चिमी नहर वस्तुतः नेपाल में प्रारंभ होती है जबकि पूर्वी नहर बिहार में प्रारंभ होती है ।
- पश्चिमी नहर का निर्माण बिहार में सिवान जिले की 5.6 लाख हेक्टेयर तथा उत्तर प्रदेश के गोरखपुर एवं देवरिया जिलों में 3.2 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई के उद्देश्य से किया गया है। पश्चिमी तट से ही एक और नहर निकाली गयी है जो नेपाल के भैरवा जिला में सिंचाई की सुविधा प्रदान करती है ।
- पश्चिमी मुख्य नहर की कुल लंबाई 192 किमी० है जिसका कुछ नेपाल में तथा बड़ा हिस्सा उत्तर प्रदेश और बिहार के सिवान तथा गोपालगंज जिले में पड़ता है ।
- पूर्वी तथा पश्चिमी चंपारण, मुजफ्फरपुर एवं दरभंगा जिले के लगभग 6.8 लाख हेक्टेयर तथा नेपाल के लगभग 40 हजार हेक्टेयर से अधिक क्षेत्रों में सिंचाई की सुविधा प्रदान कराने वाली प्रमुख नहर की कुल लंबाई 238 किलोमीटर है।
- इसके अतिरिक्त इस योजना के अंतर्गत दो विद्युत् उत्पादन गृहों को भी निर्मित किया गया है । एक विद्युत् गृह बिहार में तथा दूसरा नेपाल क्षेत्र में प्रमुख पश्चिमी नहर के 12वें किमी. पर स्थित है ।
- फिलहाल राज्य के अंतर्गत 18 वृहत् परियोजनाएँ अपने निर्माण के विभिन्न चरणों में हैं, जिनमें —
- (i) पश्चिमी कोसी नहर
- (ii) अपर किउल जलाशय
- (iii) अजय बराज
- (iv) बटेश्वर स्थान फेज I
- इसके अतिरिक्त अंतर्राज्यीय योजनाएँ भी चल रही हैं :
- (i) छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, बिहार के अंतर्गत बाणसागर परियोजना (सोन नदी पर )
- (ii) कदवन जलाशय योजना,
- (iii) कनहर जलाशय योजना,
- (iv) जमनिया पंप नहर योजना,
- (v) ऊपरी महानंदा सिंचाई योजना आदि ।
- राज्य की सिंचाई कार्यों को दो वर्गों में विभक्त किया गया है— बड़े सिंचाई कार्य और छोटे सिंचाई कार्य ।
- 1978-79 से योजना आयोग ने सिंचाई परियोजनाओं का यह नया वर्गीकरण आरंभ किया है ।
- बड़ी सिंचाई योजनाएँ: इनमें वे परियोजनाएँ शामिल की जाती हैं, जिनके नियंत्रण में 10,000 हेक्टेयर से अधिक कृषि योग्य क्षेत्रफल हों ।
- मध्यम सिंचाई योजनाएँ: इनमें वे परियोजनाएँ शामिल की जाती हैं, जिनके नियंत्रण में 2,000 से 10,000 हेक्टेयर कृषि योग्य क्षेत्रफल हो ।
- छोटी सिंचाई योजनाएँ : इनमें वे परियोजनाएँ शामिल की जाती हैं, जिनके नियंत्रण में 2,000 हेक्टेयर तक क्षेत्रफल हो ।