- झारखंड –झार/झाड़ (वन)+ खण्ड (प्रदेश) ,झारखंड का अर्थ है- वन प्रदेश
- इस क्षेत्र का प्रथम साहित्यिक उल्लेख ‘ऐतरेय ब्राह्मण’ में पुण्ड/ पुण्ड्र नाम से मिलता है।
- इस क्षेत्र का प्रथम पुरातात्विक उल्लेख 13वीं सदी ई. के एक ताम्रपत्र में झारखंड नाम से मिलता है।
- जनजातियों की अधिकता के कारण झारखण्ड को ‘कर्कखण्ड’ भी कहा जाता है।
छोटानागपुर
- छोटानागपुर, झारखंड का सबसे बड़ा भाग है।
- चीनी यात्री फाहियान ने अपने यात्रा-वृतांत ‘फो-को-क्वी’ में छोटानागपुर पठार को कुक्कुटलाड कहा है।
- एक दूसरे चीनी यात्री ह्वेनसांग ने अपने यात्रा-वृतान्त ‘सी-यू-की’ में छोटानागपुर पठार को किलो-ना-सु -का-ला-ना (अथात ‘कर्ण सुवर्ण’ ) कहा है।
- मध्यकाल में राँची क्षेत्र कोकरा/खोखरा के नाम से जाना जाता था।
- क्षेत्र धीरे-धीरे चुटियानागपुर, चुटानागपुर या सामान्यतः छोटानागपुर के नाम से जाना जाने लगा
- ब्रिटिश शासन काल के दौरान 1765 ई. से 1833 ई. तक इस क्षेत्र के लिए छोटानागपुर नाम प्रयुक्त होता रहा।
- 1834 (1833)ई. में अंग्रेजों ने इसे दक्षिण-पश्चिमी सीमांत एजेंसी (South-Western Frontier Agency-SWFA) के रूप में गठित किया जिसका मुख्यालय विलिकिंसनगंज या विशुनपुर (बाद का राँची) को बनाया।
संथाल परगना
- संथाल परगना, झारखंड का दूसरा सबसे बड़ा भाग है।
- इस क्षेत्र का प्राचीनतम नाम नरीखंड है।
- बाद में इसे कांकजोल कहा जाने लगा।
- ह्वेनसांग ने संथाल परगना के मुख्य क्षेत्र राजमहल का उल्लेख कि-चिंग-कोई-लो के नाम से किया है।
- राजमहल नामकरण मध्य काल में हुआ।
- संथाल परगना के एक भाग को दामिन-ए-कोह (अर्थात पहाड़ी अंचल) कहा जाता था।
- कैप्टन टैनर के सर्वेक्षण के आधार पर 1824(1832) ई. में दामिन-ए-कोह की स्थापना हुयी थी।
- वैदिक साहित्य में झारखण्ड की जनजातियों के लिए असुर शब्द का प्रयोग किया गया है।
- ऋग्वेद में असुरों को ‘लिंग पूजक’ या ‘शिशनों का देव‘ कहा गया है।
- बुकानन ने बनारस से लेकर बीरभूम तक के पठारी क्षेत्र को झारखण्ड के रूप में वर्णित किया है।
- महाभारत काल में झारखण्ड सम्राट जरासंध के अधिकार क्षेत्र में था।
पाषाण काल
पाषाण काल (प्रारम्भ से – 1,000 ई.पू.) को तीन युगों में बांटा जाता है
पुरापाषाण युग (Paleolithic Age)-प्रारम्भ से – 10 हजार ई.पू
मध्यपाषाण युग (Mesolithic Age)- 10,000 ई.पू. से 5500 ई.पू
नवपाषाण युग (Neolithic Age)- 55 00 ई.पू. से 3000 ई.पू.
नवपाषाण युग के बाद
- ताम्रपाषाण काल
- कांस्य युग
- लौह युग
झारखंड में तीनों युगों के साक्ष्य मिलते हैं।
1. पुरापाषाण काल
- इस काल के लोग आखेटक (शिकारी) एवं खाद्य संग्राहक थे।
- हजारीबाग से पाषाण कालीन मानव द्वारा निर्मित पत्थर के औजार मिले हैं।
2. मध्यपाषाण काल
- इस काल में पशुपालन की शुरूआत हो चुकी थी।
3. नवपाषाण काल
- इस काल में कृषि की शुरूआत हो चुकी थी।
- इस काल में आग के उपयोग तथा कुम्भकारी का प्रारंभ हो चुका था।
- छोटानागपुर से इस काल के 12 हस्त कुठार मिले हैं।
नवपाषाण युग के बाद
झारखंड में पाषाण युग के बाद धातु युग आया। इन दोनों के बीच के संक्रमण काल को ताम्र-पाषाण युग (Chalcolithic Age) कहा जाता है जिसमें पाषाण (पत्थर) के साथ-साथ ताम्र/तांबा (धातु) के उपकरणों का उपयोग हुआ।
- झारखंड में ताम्रपाषाणयुगीन संस्कृति का केन्द्र-बिन्दु सिंहभूम था।
- ताम्रपाषाण युग के बाद ताम्र/तांबा युग आया जिसमें सभी उपकरण, औजार ताम्र/तांबा से बनने लगे।
- असुर, बिरजिया, बिरहोर जनजातियाँ तांबे से उपकरण बनाते थे।
- हजारीबाग के बाहरगंडा से 49 तांबे की खानों के अवशेष मिले है।
- झारखण्ड में ताम्र युग के बाद कांस्य युग आया।
- कांस्य/कांसा का निर्माण तांबा में टीन मिलाकर किया जाता था।
- झारखंड में कांस्य युग के बाद लौह युग आया।
- असुर व बिरजिया जनजातियों को कांस्य एवं लोहे से निर्मित औजारों का प्रारंभकर्ता माना जाता है
- असुर, बिरजिया, बिरहोर एवं खड़िया झारखंड की प्राचीनतम जनजातियाँ हैं और इनमें भी असुर सबसे प्राचीन जनजाति है।
झारखण्ड में धार्मिक आंदोलन
- 6ठी सदी ई.पू. में जैन एवं बौद्ध धर्म आंदोलन हुए
- जैन सभ्यता व संस्कृति का केन्द्र छोटानागपुर का मानभूम ( धनबाद) था। इस क्षेत्र के प्रमुख जैन स्थल थे : पकबीरा, तुइसामा, देवली, पवनपुर, पलमा, अरशा, चर्रा, गोलमारा, बड़म, बलरामपुर, कर्रा, परा, कतरास आदि ।
- जैन ग्रंथों में महावीर के यात्रा ‘लोरे-ए-यदगा‘ का उल्लेख है जिसका अर्थ मुंडारी में ‘आंसुओं की नदी’ होता है।
- जैन धर्म के अवशेष कंसाई और दामोदर नदियों की घाटी से मिले हैं।
- जैन धर्म के अवशेष पलामू के हनुमांड गाँव (सतबरवा के निकट) से मिले हैं।
- सिंहभूम के आरंभिक निवासी जैन मतावलंबी थे, जिन्हें ‘सरक‘ कहा जाता था। सरक गृहस्थ जैन मतावलंबी को कहा जाता था। बाद में हो जनजाति के लोगों ने इन्हें सिंहभूम से निकाल बाहर किया।
पारसनाथ पहाड़ी
- झारखंड की सबसे ऊंची चोटी (1365 मी / 4478 फीट)
- जिला- गिरिडीह
- जैन धर्म के 24 तीर्थंकरों में से 20 तीर्थंकरों ने इसी पहाड़ी पर निर्वाण प्राप्त किया।
- जैनियों के 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ का निर्वाण 717 ई.पू. में हुआ था। ये पारसनाथ की पहाड़ी पर निर्वाण प्राप्त करने वाले अंतिम तीर्थंकर थे। उन्हीं के नाम पर पहाड़ का का नाम पार्श्वनाथ/पारसनाथ पड़ा।
- इसे ‘जैन धर्म का मक्का ‘ कहा जाता है।
- नोट – झारखंड की दूसरी सबसे ऊंची चोटी Gulgulpath/गुलपुलनाथ(3819 फीट) ,गढ़वा में स्थित है (source- https://garhwa.nic.in/history/)
बौद्ध धर्म
झारखंड के विभिन्न स्थलों से बौद्ध धर्म संबंधी अवशेष मिले हैं।
- जोन्हा जलप्रपात के पास से एक बुद्ध प्रतिमा मिली है।
- बंगाल में पाल शासकों के शासन के दौरान झारखण्ड में बौद्ध धर्म की वज्रयान शाखा विकसित हुयी।
मौर्य काल
- मगध से दक्षिण भारत की ओर जाने वाला व्यापारिक मार्ग झारखण्ड से होकर जाता था।
कौटिल्य का अर्थशास्त्र
- कौटिल्य के अर्थशास्त्र में इस क्षेत्र को कुकुट/कुकुटदेश नाम से इंगित किया गया है।
- कुकुटदेश में गणतंत्रात्मक शासन प्रणाली स्थापित थी।
- चंद्रगुप्त मौर्य ने आटविक नामक पदाधिकारी की नियुक्ति की थी, जिसका उद्देश्य
- जनजातियों का नियंत्रण।
- इन्द्रनावक नदि – हीरे प्राप्त किये जाते थे।
- ईब और शंख नदियों का इलाका था।
- चंद्रगुप्त मौर्य के शासनकाल में सेना के प्रयोग हेतु झारखण्ड से हाथी मंगवाया जाता था।
अशोक
- अशोक के 13वें शिलालेख में समीपवर्ती राज्यों की सूची मिलती है
- आटविक/आटव/आटवी प्रदेश (बघेलखंड से उड़ीसा के समुद्र तट तक विस्तृत) – झारखण्ड शामिल
- अशोक का झारखण्ड की जनजातियों पर अप्रत्यक्ष नियंत्रण था।
- अशोक के पृथक कलिंग शिलालेख-II
- ‘इस क्षेत्र की अविजित जनजातियों को मेरे धम्म का आचरण करना चाहिए, ताकि वे लोक व परलोक प्राप्त कर सकें।
- अशोक ने झारखण्ड में बौद्ध धर्म के प्रचार हेतु रक्षित को भेजा था।
- झारखण्ड में अशोक कालीन कला का विवरण प्राप्त नहीं हुआ है
मौर्योत्तर काल
- मौर्योत्तर काल में विदेशी आक्रमणकारियों ने भारत में अपने-अपने राज्य स्थापित किये। इसके अलावा भारत का विदेशों से व्यापारिक संबंध भी स्थापित हुआ जिसके प्रभाव झारखण्ड में भी दिखाई देते हैं।
- सिंहभूम
- सिंहभूम से रोमन साम्राज्य के सिक्के
- चाईबासा
- चाईबासा से इंडो-सीथियन सिक्के प्राप्त
- राँची
- राँची से कुषाणकालीन सिक्के प्राप्त – क्षेत्र कनिष्क के प्रभाव में था।
गुप्त काल
- गुप्त काल – भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग
- हजारीबाग के मदुही पहाड़ – गुप्तकालीन पत्थरों को काटकर निर्मित मंदिर प्राप्त हुए हैं।
- झारखण्ड में गुप्तकाल की देन – मुण्डा, पाहन, महतो तथा भंडारी प्रथा
समुद्रगुप्त
- गुप्त वंश का शासक समुद्रगुप्त – भारत का नेपोलियन
- समुद्रगुप्त ने पुण्डवर्धन को अपने राज्य में मिला लिया, जिसमें झारखण्ड का विस्तृत क्षेत्र शामिल था।
- समुद्रगुप्त के शासनकाल में छोटानागपुर को मुरुण्ड देश कहा गया है।
- समुद्रगुप्त के प्रवेश के पश्चात झारखण्ड क्षेत्र में बौद्ध धर्म का पतन प्रारंभ हो गया।
चन्द्रगुप्त द्वितीय “विक्रमादित्य’
- चन्द्रगुप्त द्वितीय का काल में चीनी यात्री फाह्यान 405 ई. में भारत आया था जिसने झारखण्ड क्षेत्र को कुक्कुटलाड कहा है।
गुप्तोत्तर काल
शशांक