बिहार में महत्वपूर्ण ऑपरेशन/अभियान
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बिहार में वर्ग संघर्ष 

  • बिहार में साठ के दशक के बाद से दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा वर्ग संघर्ष की चिंगारी खेती से जुड़े किसानों, श्रमिकों और उनका शोषण करने वालों के बीच अरसे से शोषण, विद्रोह और दमन की बुनियाद रही है । 
  • राज्य की ग्रामीण संरचना में एक वर्ग कृषि कार्य करता है तो दूसरी ओर उच्च तबके या रुतबे वाला वह सामंती वर्ग है जो श्रमिकों तथा छोटे किसानों की मेहनत का सारा मुनाफा न केवल खुद खा जाता है बल्कि सदैव इस प्रयास में रहता है कि कैसे उनका अधिकाधिक शोषण कर अपना मुनाफा बढ़ाया जाय । 
  • इस शोषण का सीधा शिकार बनता है खेतों में पसीना बहाने वाला श्रमिक और छोटे किसानों का वर्ग । इस प्रकार इन दोनों वर्गों के अपने-अपने हित हैं, जो एक-दूसरे के खिलाफ जाते हैं और आपसी कटुता तथा संघर्ष का वातावरण तैयार करते हैं । 
  • बिहार में ग्रामीण परिवारों का लगभग 39 प्रतिशत जमीन बटाई पर लगता है तथा कृषि उपज का आधा भाग बदले में प्राप्त करता है । 
  • बिहार के कृषि क्षेत्र में व्याप्त बटाईदारी वस्तुतः पारंपरिक अर्द्ध-सामंतवादी व्यवस्था का क्रियाशील स्वरूप है, जिसमें भूमि का मालिक बटाईदारों को भूमि के अलावा कृषि के अन्य खर्चों में कोई हिस्सा नहीं बटाता है । 
  • बिहार के ग्रामीण परिवेश में पारंपरिक स्रोत से बाँटा गया कर्ज (यानी गाँव के महाजनों, जमींदारों आदि के माध्यम से दिया गया कर्ज) ग्राम्य जीवन की आर्थिक व्यवस्था पर सशक्त अंकुश लगाने का कार्य करता है । बिहार में आंशिक रूप से बंधुआ मजदूरी भी विद्यमान है ।
  • ग्रामीण बिहार में कृषि मजदूरों तथा अन्य सेवा प्रदान करने वाले वर्गों की मजदूरी की व्यवस्था पारंपरिक रूप से निर्धारित जजमानी व्यवस्था के तहत ही है । 
  • बटाईदारी के तहत भू-स्वामी का निर्धारित हिस्सा, महाजन के सूद की दर, कृषि श्रमिकों की मजदूरी दर तथा मजदूरों को बांधने वाले बंधन इनमें से कोई वर्तमान कानूनी कसौटी पर वैध नहीं है । किन्तु इसके बावजूद ये सारी व्यवस्थाएं इस ग्रामीण समाज में खुलेआम प्रचलित हैं । 
  • महाजनों के कर्ज में बंधे हुए किसान जो पारंपरिक तकनीक से कृषि करते हैं, खेत के बड़े हिस्से से भी अच्छी पैदावार निकालने में असमर्थ रहते हैं । यहाँ तक कि सिंचाई सुविधा के बाद भी ऐसे किसानों को अपेक्षित सफलता नहीं मिल पाती । 
  • साठ (1960) के दशक के बाद से ग्रामीण क्षेत्रों की प्रति व्यक्ति आय में आयी गिरावट बरकरार रही। इस समय अभिजात्य वर्ग अपना पुराना वैभव कायम रखने के लिए शोषण के नये तरीके अख्तियार करने लगे, जिसमें पुराने रैयतों की जबर्दस्ती जमीन से हटाकर नये लोगों को ‘सलामी’ के एवज में वह जमीन दी जाने लगी। इतना ही नहीं परंपरागत रूप से विभिन्न सेवाओं को दी जाने वाली जमीन भी छीनी जाने लगी। 
  • परन्तु अब श्रमिक तथा छोटे किसानों का भी भरपूर राजनीतिकरण हो चुका था तथा वे और शोषण को बर्दाश्त करने के हक में नहीं थे। अतः साठ के दशक के अंतिम वर्षों में ‘भूमि हड़पी’ अभियान की शुरुआत हुई तथा फसलों की जबर्दस्ती कटाई एवं शोषण के खिलाफ सभा, बैठक आदि के नियमित दृश्य बनने लगे । 
  • ग्रामीण अभिजात्य वर्ग ने भी लठैतों व पुलिस के माध्यम से जवाबी कार्रवाई शुरू की जिससे रक्तपात और हिंसा का सिलसिला चला। 
  • 1971 ई० में पूर्णिया जिले के रूपसपुर चंदवा में एक ऐसा ही (नरसंहार) हुआ जिसने सभ्य समाज को दहला कर रख दिया । 
  • हालांकि इन संघर्षों में ऊपर से जातीय दंगों की बू आती थी, लेकिन मूल रूप से यह जमीन तथा उससे जुड़े शोषण की रक्त रंजित गाथा थी । 
  • गरीब तबकों ने भी संगठित होकर आंदोलन शुरू किया, जिसका स्वरूप भोजपुर के सहार तथा संदेश प्रखंडों और मुजफ्फरपुर के मुशहरी प्रखंड में देखा गया । 
  • मार्क्सवादी-लेनिनवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने 1970 में रोहतास जिले के नाथपुर में पहली राज्य- स्तरीय बैठक का आयोजन किया । 
  • वर्ग संघर्ष की चिंगारी जो रूपसपुर में शुरू हुई थी अब विकराल रूप लेकर धर्मपुरा, बेलछी, पिपरा, विश्रामपुर, पारसबीघा और फिर दियारा आदि में ज्वाला बन कर भड़कने लगी । 
  • 1977 ई० के बाद गरीब तबके की प्रतिहिंसा और बढ़ी तथा मई, 1982 तक राज्य के 14 जिलों, 87 प्रखंडों में यह आग पूरी तौर पर फैल चुकी थी । 
  • भूपतियों ने इसके जवावस्वरूप भूमि- सेना, लोरिक सेना, ब्रह्मर्षि सेना, कुंअर सेना आदि का गठन किया और दोनों पक्षों में क्रिया-प्रतिक्रिया हुई । 

बिहार में उग्रवाद 

  • वर्तमान में बिहार के अनेक जिलों में उग्रवाद की समस्या मौजूद है । 
  • उग्रवाद की यह समस्या मुख्यतः गया, जहानाबाद, भोजपुर, नवादा, औरंगाबाद, रोहतास
  • पूर्णिया, पटना आदि जिलों में फैली हुई है। इसके अलावा कमोबेश राज्य के दूसरे जिलों में भी उग्रवाद की घटनाएँ घटती रहती हैं । 
  • बिहार में सांप्रदायिक दंगों को छोड़कर दूसरे कारणों से उग्रवादियों द्वारा अनेक बार सामूहिक नरसंहार की घटनाएँ घटी हैं। 
  • राज्य में सबसे पहले अप्रैल, 1968 में मुजफ्फरपुर जिले में नरसंहार की घटना हुई जिसमें छह लोग मारे गये और 16 घायल हुये । उसके बाद 1971 में पूर्णिया जिले के रूपसपुर गांव में भूपतियों ने 14 आदिवासियों को जिंदा जला दिया। पटना में 1979 में बेलछी हत्याकांड में 11 दलित मारे गये । 

बिहार में उग्रवाद के कारण 

  • बिहार में उग्रवाद और नरसंहार के सर्वाधिक प्रमुख कारण भूमि संबंधित समस्याएँ हैं। इसके 
  • अलावा गरीबी, सामंती प्रथा व जाति प्रथा तथा बेरोजगारी भी इसके महत्वपूर्ण कारण हैं ।
  • बिहार में उग्रवाद को समाप्त करने हेतु पुलिस व्यवस्था को दुरुस्त करने के साथ ही गरीबी, बेरोजगारी, भूमिहीनता और सामाजिक असमानता को दूर करने के अलावा मजदूरी और भूमि सुधार जैसे कार्यों पर ध्यान देना सबसे जरूरी है। 

बिहार में नक्सलवाद / माओवाद 

बिहार में नक्सलवाद की शुरुआत साठ के दशक में तब हुई जब बंगाल के नक्सलबाड़ी ने चारू मजुमदार के नेतृत्व में आंदोलन आरंभ हुआ । इस आंदोलन का सबसे महत्वपूर्ण केंद्र बिहार का भोजपुर बना । 

  • मई, 1967 में नक्सलबाड़ी में सामंतवाद के खिलाफ संघर्ष शुरू हुआ था और इस खूनी संघर्ष ने 1969 में चारू मजुमदार के नेतृत्व में भूमिगत कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (माओवादी लेनिनवादी अथवा CPI (ML) को जन्म दिया, जो आगे चलकर माओ त्से तुंग क्रांति की तर्ज पर एक शक्तिशाली अति उग्र कम्युनिस्ट आंदोलन (नक्सलबाड़ी आंदोलन) बना | यह 1925 में गठित कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (CPI) और इससे टूटकर 1964 में बनी (CPI) (एम या मार्क्सवादी), जो इससे विचारधारा के तौर पर बिल्कुल अलग थी । > इसी बीच भोजपुर के इकवारी गांव के शिक्षक मास्टर जगदीश और रामनरेश राम सामंतवादी जुल्म के खिलाफ उठे, चारू मजुमदार को वहां बुलाया और फिर क्रूर सामंतवाद के खिलाफ नक्सलवाद की बुनियाद रखी। बिहार एक अहम पड़ाव बन गया । 
  • इसी बीच एक समकक्ष और अति उग्र ग्रुप माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर (MCC), जो ‘दक्षिण- देश ग्रुप’ का अंग था, ने मध्य बिहार में अपने पाँव जमाने शुरू कर दिये, जब एक और CPI (ML) ग्रुप इसी क्षेत्र में उभरा तो मूल CPI (ML) ने अपनी पार्टी पत्रिका ‘लिबरेशन’ के नाम से पहचान बनाई और समकक्ष CPI (ML) ने अपनी पत्रिका ‘पार्टी यूनिटी’ को अपने नाम से जोड़ा । 
  • अप्रैल, 1980 में CPI (ML) पीपुल्स वार ग्रुप (PWG) का उदय हुआ । 
  • विनोद मिश्र के नेतृत्व में CPI (ML) लिबरेशन ने अपनी नई पहचान बनाई। आपातकाल (इमरजेंसी) के बाद 1977 में इसने धीरे-धीरे ‘वर्ग शत्रु की हत्या की राजनीति’ से हटकर भूमिहीन खेतिहर मजदूरों और गरीब किसानों की ओर से आवाज उठाने के लिए किसान सभा के माध्यम से संघर्ष तेज किया तथा सामंतवाद को कुचलने के लिए इसने कहीं-कहीं ‘आर्थिक नाकेबंदी’ भी लगाई। 
  • 1982 में CPI (ML) लिबरेशन ने अपने राजनैतिक मंच ‘इंडियन पीपुल्स फ्रंट’ (IPF) और इसके माध्यम से लोकसभा और बिहार विधानसभा में भी अच्छी-खासी जगह बना ली ।
  • पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा और छत्तीसगढ़ के अलावा बिहार और अब झारखंड नक्सलियों और माओवादियों के गढ़ बन गये हैं। 
  • बिहार के 38 में से 25 जिले और झारखंड के 22 जिलों में से 18 जिले माओवाद से ग्रस्त हैं ।
  • दिसंबर 1992 में CPI (ML) लिबरेशन मुख्यधारा में आकर एक मजबूत राजनैतिक दल के तौर पर उभरा और आइपीएफ की जगह CPI (ML) ने ले ली । 
  • जब झारखंड सरकार ने नक्सलियों के विरुद्ध मुहिम तेज की तो PWG और MCC ने आपस में विलय करके PWG के आंध्र प्रदेश स्टेट सेक्रेटरी मुप्पला लक्ष्मण राव उर्फ गणपति के नेतृत्व में सितंबर, 2004 में CPI (माओवादी) का गठन कर दिया । 
  • इसके पहले कन्हाई चटर्जी के नेतृत्व वाली CPI (ML) पार्टी यूनिटी का विलय अगस्त, 1998 में PWG में हो चुका था । 
  • इस तरह तीन शक्तिशाली ग्रुप, जिनके निशाने पर बिहार-झारखंड हमेशा से है, एक होकर नई खूनी क्रांति में जुटे हैं। इन दोनों के छापामार संगठन पीपुल्स गोरिल्ला आर्मी (PGA) और पीपुल्स लिबरेशन गोरिल्ला आर्मी (PLGA) ने भी आपस में विलय करके एक खतरनाक छापामार सेना बना ली। इनके पास अत्याधुनिक हथियारों का अपना जखीरा है ।
  • नक्सली घटनाओं में बिहार में 2001 से अगस्त, 2013 के बीच 1,064 सामान्य लोग, 201 पुलिसकर्मी और पुलिस मुठभेड़ में अनेक माओवादी मारे गये ।  

बिहार में निजी सेनाएँ 

सेना गठन वर्ष
लाल सेना 1974
लाल स्क्वायड 1974
कुंवर सेना 1978-79
भूमि सेना 1979
लोरिक सेना 1983
ब्रह्मर्षि सेना 1984
सनलाइट सेना 1989
रणवीर सेना 1994

 

बिहार में महत्वपूर्ण ऑपरेशन/अभियान 

  • ऑपरेशन सिद्धार्थ  : बिहार सरकार की ओर से माओवादी उग्रवाद से निपटने के लिए ऑपरेशन सिद्धार्थ अभियान को नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में चलाया गया । सन् 1989 से चलाये गये इस अभियान के तहत क्षेत्र में सड़क, स्कूल और अस्पताल जैसी  बुनियादी सुविधाएँ मुहैया करवाने पर जोर दिया गया । 
  • ऑपरेशन मुदगल : वनों से पत्थरों की तस्करी करने वाले तस्कर माफियाओं के विरुद्ध यह अभियान ‘ऑपरेशन 
  • मुदगल’ चलाया गया । करोड़ों रुपये के पत्थर की अवैध तस्करी को रोकने के लिए मुंगेर जिले में वन विभाग द्वारा इस ऑपरेशन की शुरुआत 15 फरवरी, 2002 को की गई थी । 
  • ऑपरेशन मानसून : वर्षा ऋतु में संरक्षित वनों में हो रहे अवैध शिकार को रोकने के लिए बिहार सरकार की 
  • ओर से यह ऑपरेशन शुरू किया गया । 
  • ऑपरेशन चारा  : केन्द्रीय जाँच ब्यूरो (CBI) ने बिहार में इस ऑपरेशन को चलाया था। इसके तहत बिहार में हुए चारा घोटाले की जाँच करके दोषियों की धरपकड़ की गई थी । 
  • ऑपरेशन चाणक्य : बाजार में दैनिक उपभोग की वस्तुओं में हो रही मिलावट को समाप्त करने के उद्देश्य से  राज्य में ऑपरेशन चाणक्य चलाया गया । 
  • ऑपरेशन कोवरा : बिहार के माफिया गिरोहों के सफाये के लिए ऑपरेशन कोबरा चलाया गया । 
  • ऑपरेशन दशक : आर्थिक एवं सामाजिक रूप से दुर्बल वर्ग की दशा सुधारने और उन्हें सामाजिक न्याय प्रदान करने के लिए बिहार में इस अभियान का संचालन राज्य सरकार की ओर से किया गया। 
  • ऑपरेशन जगुआर – अंग प्रदेश और कोशी अंचल क्षेत्र के दियारा से सक्रिय अपराधियों के खात्मे के लिए ऑपरेशन जगुआर चलाया गया । 
  • ऑपरेशन उजालाबिहार के मुजफ्फरपुर जिले की तत्कालीन कलक्टर व जिला मजिस्ट्रेट राजबाला वर्मा ने नगर के कुख्यात रेड लाइट एरिया चतुर्भुज स्थान की वेश्याओं के जीवन और जीवन-शैली में क्रांतिकारी परिवर्तन के लिए इस ऑपरेशन को संचालित किया था ।
  • ऑपरेशन टोडरमलइस ऑपरेशन का संचालन राज्य सरकार द्वारा भूमि सुधार कार्यक्रमों में तीव्रता लाने तथा भूमिहीनों को समुचित भूमि-वितरण के लिए किया गया । 
  • ऑपरेशन कॉम्बिंगदमरिया में हुए भीषण नरसंहार के आरोपियों को पकड़ने के लिए बिहार सरकार ने ‘ऑपरेशन कॉम्बिंग’ 
  • चलाया था । 
  • ऑपरेशन धन्वंतरिअवैध तथा नकली औषधियों पर नियंत्रण एवं उनकी समाप्ति के लिए इस ऑपरेशन को शुरू किया गया था । 
  • ऑपरेशन ब्लैक पैंथरबिहार के पश्चिमी चंपारण में फैली दस्यु डाकू समस्या को समाप्त करने के लिए यह विशेष अभियान चलाया गया । 

बिहार में शराबबंदी पर कड़े कानून लागू – (2 अक्टूबर 2016 से) 

  •  बिहार में नया बिहार मद्य निषेध और उत्पाद अधिनियम, 2016 ( Bihar Prohibition and Excise Act, 2016 ) 2 अक्टूबर, 2016 से लागू किया गया है । मानसून सत्र में विधानमण्डल द्वारा पारित इस विधेयक पर राज्यपाल के हस्ताक्षर सितम्बर, 2016 में ही हो गए थे। इस नए अधिनियम ने अप्रैल 2016 में लागू किए गए बिहार उत्पाद (संशोधन) अधिनियम 2016 का स्थान लिया है। (इस अधिनियम को पटना उच्च न्यायालय ने 30 सितम्बर, 2016 को निरस्त कर दिया था किन्तु उच्च न्यायालय के इस फैसले पर सर्वोच्च न्यायालय ने 7 अक्टूबर को रोक लगा दी थी ।) 
  • प्रदेश में 2 अक्टूबर, 2016 से लागू किए गए नये अधिनियम में शराब पीने के मामलों में कम-से-कम 5 वर्ष और अधिकतम 7 वर्ष की सजा का प्रावधान है। न्यूनतम ₹ 1 लाख और अधिकतम ₹ 10 लाख तक के जुर्माने का प्रावधान भी अधिनियम में किया गया है। शराब के नशे में उपद्रव अथवा हिंसा के मामलों में न्यूनतम 10 वर्ष की सजा का प्रावधान नए अधिनियम में किया गया है। इस सजा को बढ़ाकर आजीवन कारावास में भी बदला जा सकता है। घर में बरामद शराब की जानकारी नहीं देने पर सम्बन्धित परिसर के मालिक को कम-से-कम 8 वर्ष की सजा होगी, जिसे बढ़ाकर 10 वर्ष तक किया जा सकेगा। 
  • बिहार पंचायत राज अधिनियम 2006 में महिलाओं के लिए सम्पूर्ण सीटों में से 50% सीट के आरक्षण का प्रावधान महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक सशक्त कदम है। 
  • महिला विकास निगम (बिहार), समाज कल्याण विभाग के अधीन बिहार सरकार का एक उपक्रम है। इसका गठन राज्य स्तर पर महिलाओं के सर्वांगीण विकास हेतु राज्य मंत्रिमंडल की दि० 21 जून, 1990 को हुई बैठक में लिये गये निर्णय के आलोक में हुआ है । यह निगम सोसाइटी रजिस्ट्रेशन 1860 की धारा 21 के अन्तर्गत दि० 28.11.1991 को निबंधित हुआ है ।
  • राज्य महिला सशक्तीकरण नीति, 2015 का क्रियान्वयन किया जा रहा है। 
  • महिलाओं के लिए बजट में प्रावधानवर्ष 2008-09 में शुरू हुए जेंडर बजट में जहाँ 10 विभागों को शामिल किया गया था, वर्ष 2009-10 में दो अन्य विभागों को जोड़ा गया और वर्ष 2010-11 में एक और विभाग वहीं को शामिल किया गया। वर्ष 2015-16 के जेंडर बजट में कुल 18 विभाग शामिल थे । 

बिहार में महिला सशक्तिकरण के बढ़ते कदम 

  • श्रीमती मंजू झा बिहार पुलिस सेवा की पहली डी. एस. पी. बनी (1983 ई० ) । 
  • सुप्रसिद्ध कत्थक नृत्यांगना नीलम चौधरी ने बिहार प्रशासनिक सेवा की संयुक्त प्रतियोगिता परीक्षा में सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया ( 1989 बैच में ) । 
  • राज्य महिला विकास निगम का निबंधन हुआ (28.11.1991) । 
  • श्रीमती राबड़ी देवी बिहार की पहली महिला मुख्यमंत्री बनी ( 25 जुलाई, 1997)। 
  • राज्य में 23 वर्ष बाद पंचायती राज चुनाव कराये गये (11 से 30 अप्रैल, 2001) । इस चुनाव परिणाम के आधार पर बड़ी संख्या में महिलाओं के चुने जाने के बाद महिलाओं की सामाजिक सक्रियता एवं भूमिका में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है । 
  • राज्य महिला आयोग का गठन हुआ (8 अगस्त, 2001 ) तथा मंजू प्रकाश इसकी पहली अध्यक्ष बनीं । 
  • जयपुर (राजस्थान) के बाद देश के दूसरे महिला नियोजनालय की स्थापना पटना (बिहार) में हुई ( 18.08.2001 ) । 
  • राज्य में 18 वर्ष के बाद नगर निगम, नगर पालिका और नगर पंचायतों का चुनाव आयोजित हुआ (28 अप्रैल, 2002 ) । इस चुनाव परिणाम ने भी राज्य में महिलाओं को सामाजिक व राजनीतिक रूप से सशक्त बनाने में योगदान किया । 
  • 16वाँ राज्य महिला खेल महोत्सव का आयोजन हुआ मुंगेर में (20-30 सितम्बर, 2004 ) ।
  • पंचायती राज में महिलाओं के लिए 50% आरक्षण प्रदान करने वाला देश का पहला राज्य बना (बिहार ) ( 2006 ई०) ।