बिहार में स्वतंत्रता आंदोलन (1857-1947 )

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  • 20 जुलाई, 1937 को बिहार में श्रीकृष्ण सिंह के नेतृत्व में कॉंग्रेस मंत्रिमंडल का गठन हुआ, जिसमें अनुग्रह नारायण सिंह, डॉ० सैयद महमूद, जगलाल चौधरी आदि शामिल हुए ।
  • रामदयालु सिंह विधान सभा के अध्यक्ष तथा अब्दुल बारी उपाध्यक्ष निर्वाचित हुए ।
  • सितम्बर 1939 में जब द्वितीय विश्व युद्ध प्रारंभ हुआ और ब्रिटेन की सरकार ने भारत को युद्ध में शामिल करने का निर्णय लिया, तो विरोधस्वरूप काँग्रेस ने सरकार से सहयोग समाप्त कर दिया । फलतः सभी प्रांतों में सरकारों का विघटन हो गया । 
  • बिहार में भी श्रीकृष्ण सिंह ने 31 अक्टूबर, 1939 को त्याग पत्र देकर मंत्रिमंडल को भंग कर दिया । 
  • मार्च 1946 में बिहार में एक बार फिर चुनाव संपन्न हुए । इस बार विधान सभा की 152 सीटों में कॉंग्रेस को 98, मुस्लिम लीग को 34, मोमीन को 5, आदिवासियों को 3 तथा निर्दलीय को 12 सीटें मिलीं । 
  •  30 मार्च, 1946 को श्रीकृष्ण सिंह के नेतृत्व में बिहार में सरकार का गठन हुआ। किंतु, काँग्रेस द्वारा अंतरिम सरकार के गठन का मुस्लिम लीग ने प्रतिक्रियात्मक जवाब दिया तथा देश भर में दंगे भड़क उठे । बिहार में भी दंगों का प्रभाव पड़ा। छपरा, बांका, जहानाबाद, मुंगेर आदि इलाकों में दंगों का ज्यादा प्रभाव रहा । 
  • डॉ० राजेन्द्र प्रसाद तथा आचार्य कृपलानी ने लोगों से शांति बनाये रखने की अपील की । 
  • 6 नवंबर, 1946 को गाँधीजी ने बिहार के नाम एक पत्र जारी किया, जिसमें उन्होंने बिहार में फैले दंगे पर काफी दुःख व्यक्त किया । पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भी बिहार आकर दंगाग्रस्त इलाकों का दौरा किया । 
  • दिसंबर, 1946 ई० में जब संविधान सभा के अस्थायी अध्यक्ष डॉ० सच्चिदानंद सिन्हा की अध्यक्षता में भारतीय संविधान सभा का अधिवेशन शुरू हुआ तो मुस्लिम लीग के सदस्य इसमें सम्मिलित नहीं हुए । 
  • 20 फरवरी, 1947 ई० को ब्रिटिश प्रधानमंत्री एटली ने जून 1948 तक भारत को स्वाधीनता प्रदान करने की घोषणा की। 
  • इस बीच 5 मार्च, 1947 को गाँधीजी बिहार की यात्रा पर आये और वह जब तक बिहार में रहे प्रार्थना, शांति और एकता का संदेश देते रहे । 
  • 14 मार्च, 1947 ई० को लॉर्ड माउण्टबेटन भारत के वायसराय बने । 
  • जुलाई 1947 में ‘इंडियन इंडिपेंडेंस बिल’ संसद में प्रस्तुत किया गया तथा आखिरकार 15 अगस्त, 1947 को भारत और पाकिस्तान दो स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में स्थापित हो गये । देश की स्वतंत्रता की इस यादगार घड़ी में बिहार में भी खुशियां मनायी गयीं । 
  • स्वतंत्र भारत में बिहार के प्रथम राज्यपाल के रूप में श्री जयरामदास दौलतराम तथा मुख्यमंत्री के रूप में श्रीकृष्ण सिंह ने पदभार ग्रहण किया । 

स्वतंत्रता पूर्व बिहार में आयोजित कांग्रेस अधिवेशन 

वर्ष  अधिवेशन स्थान  अध्यक्ष 
1912  (27वां )  बांकीपुर, पटना  रंगनाथ सिंह मधोलकर 
1922 38वां गया  देशबंधु चित्तरंजन दास
1940 53वां रामगढ़, झारखंड मौलाना अबुल कलाम आजाद

 

स्वतंत्रता आंदोलन में बिहार के क्रांतिकारियों का योगदान 

  • >> बिहार में क्रांतिकारी गतिविधियों को आगे बढ़ाने में श्री सियाराम सिंह के नेतृत्व में 
  • ‘सियाराम दल’ ने उल्लेखनीय योगदान दिया । 
  • इस दल के कार्यक्रम में चार बातें मुख्य थीं— धन संचय, शस्त्र संचय, शस्त्र चलाने का प्रशिक्षण तथा सरकार का प्रतिरोध करने के लिए जन संगठन । 
  • बिहार के प्रारंभिक क्रांतिकारियों में डॉ० ज्ञानेन्द्र नाथ, केदार नाथ बनर्जी तथा बाला ठाकुर 
  • दास प्रमुख थे । इन्होंने 1906-1907 में रामकृष्ण सोसाइटी की स्थापना की । 
  • → 1908 में खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चन्द्र चाकी ने मुजफ्फरपुर के जिला जज डी० एच० किंग्सफोर्ड की हत्या का प्रयास किया, किन्तु धोखे से वकील प्रिंगले कैनेडी की पत्नी और बेटी की हत्या हो गयी । 
  • > पुलिस से बचने के लिए प्रफुल्ल चाकी ने आत्महत्या कर ली, जबकि खुदीराम बोस को 
  • गिरफ्तार कर 11 अगस्त, 1908 को फांसी पर लटका दिया गया । 
  • 1913 ई० में सचिन्द्र नाथ सान्याल ने पटना में अनुशीलन समिति की स्थापना की। इसके संचालन का भार अप्रत्यक्ष रूप से बी० एन० कॉलेज के एक छात्र बंकिमचंद्र मित्र के ऊपर था । 
  • > बंकिमचंद्र ने हिन्दू ब्यॉयज एसोसिएशन नामक एक संस्था भी गठित की। 
  • > ढाका अनुशीलन समाज के बिहार में प्रमुख नेता थे – सचिन्द्र नाथ सान्याल, रासबिहारी बोस, 
  • हिरण्यमय बनर्जी, वासुदेव भट्टाचार्य, बंकिमचन्द्र मित्र आदि । 
  • > 1915 में बंकिमचंद्र मित्र को सचिन्द्र नाथ सान्याल के साथ बनारस षड्यंत्र कांड में गिरफ्तार 
  • कर लिया गया और इन्हें तीन साल के सश्रम कारावास की सजा हुई । 
  • > इसी प्रकार से भागलपुर में ढाका अनुशीलन समिति के सदस्य रेवती नाग, फणिभूषण भट्टाचार्य, नलिनी बागची आदि ने क्रांतिकारी गतिविधियों को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। 
  • > क्रांतिकारी गतिविधियों को गति देने के क्रम में 1927 में पटना युवक संघ की स्थापना हुई । इस संघ में शामिल लोगों में मणिन्द्र नारायण राय, फूलन प्रसाद वर्मा, कृष्णवल्लभ सहाय, बृजनंदन प्रसाद इत्यादि प्रमुख थे । । 
  • > 1929 ई० में रामवृक्ष बेनीपुरी एवं अम्बिका कांत सिंह के नेतृत्व में पटना में राय महेन्द्र प्रताप के घर ‘पाटलिपुत्र युवक संघ’ तथा 1918 में मोतिहारी में ‘बिहारी युवक संघ’ की स्थापना की गयी । 
  • > पटना से अम्बिका कांत सिंह तथा जगदीश नारायण के सहयोग से ‘युवक’ नामक एक 
  • मासिक पत्रिका का भी प्रकाशन शुरू हुआ । 
  • > बिहार की महिला क्रान्तिकारियों में कुसुम कुमारी देवी एवं सुश्री गौरी दास का नाम महत्वपूर्ण है । > 28 जून, 1931 को पटना में भिखना पहाड़ी के पास पुलिस ने सूरज नाथ चौबे एवं दिल्ली 
  • षड्यंत्र केस के अभियुक्त हजारी लाल को गिरफ्तार कर लिया । 
  • > 9 नवंबर, 1932 को चंद्रमा सिंह ने लाहौर एवं पटना षड्यंत्र कांड के मुखबिर फनेन्द्र नाथ की हत्या कर दी । 

नंगी हड़ताल ( 1930 ई०) 

  • > 4 मई, 1930 को गाँधीजी की गिरफ्तारी के पश्चात् स्वदेशी के प्रचार और विदेशी वस्त्रों 
  • के बहिष्कार की भावना इतनी प्रबल हुई कि छपरा जेल में कैदियों ने विदेशी वस्त्र पहनने से इंकार कर दिया और स्वदेशी वस्त्र उपलब्ध न कराये जाने पर नंगे बदन रहने का निश्चय किया । 
  • > कई दिनों तक यह ‘नंगी हड़ताल’ जारी रही, तब जाकर कैदियों को स्वदेशी वस्त्र दिये गये । 

चौकीदारी कर बंदी आंदोलन (1930 ई०) 

  • > 1930 के सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान चौकीदारी कर न अदा करने के अभियान का मुख्य स्थल पूर्वी भारत था, जिसमें बिहार की मुख्य भूमिका थी । 
  • >> यह आंदोलन मई, 1930 ई० में आरंभ हुआ 
  • > सबसे पहले मुंगेर, भागलपुर, सारण जिले में कर नहीं देने के लिए प्रेरित किया गया। मानने 
  • से इंकार या प्रतिरोध करने वालों का बहिष्कार किया गया । 

बेगूसराय गोलीकांड ( 1931 ई० ) 

  • > 26 जनवरी, 1931 ई० को प्रथम स्वाधीनता दिवस पूरे जोश व उत्साह से मनाने का निर्णय किया गया। इसके लिए श्री रघुनाथ ब्रह्मचारी के नेतृत्व में बेगूसराय जिले के परहास ( वर्तमान सुहृदनगर) से एक बहुत बड़ा जुलूस रवाना हुआ । 
  • । 
  • > यह जुलूस जब पुराने पोस्ट ऑफिस के पास पहुंचा तो डी. एस. पी. बशीर अहमद ने गोली 
  • चलाने का हुक्म दे दिया । इस गोली कांड में छह व्यक्ति घटना स्थल पर ही शहीद हो गये । > इन शहीदों में भैरवार के चंद्रशेखर सिंह, वनद्वार के रामचंद्र सिंह, रतनपुर के छट्टू सिंह और पहसारा के बनारसी सिंह शामिल थे। दो अन्य शहीदों के नाम अज्ञात हैं। टेढीनाथ मंदिर के सामने यह गोलीकांड हुआ था । 

बड़हिया ताल / बकाश्त आन्दोलन 

  • > ‘बकाश्त भूमि’ की वापसी के लिए कार्यानंद शर्मा के नेतृत्व में 1935 में मुंगेर जिलान्तर्गत 
  • ‘बड़हिया ताल’ में आन्दोलन चलाया गया । 
  • > यह आंदोलन शोषित और पीड़ित किसानों द्वारा जमींदारों से बकाश्त भूमि के रूप में परिवर्तित 
  • अपनी रैयत भूमि वापस लेने का सामूहिक प्रयास था । 
  • ‘बकाश्त भूमि’ उसे कहते थे जिसे मंदी के कारण लगान न दे पाने के कारण किसानों ने जमींदारों को दे दी थी । 

स्वतंत्रता आंदोलन में बिहार के किसानों का योगदान 

  • 1917 में बिहार के नील उगाने वाले कृषकों की समस्याओं को लेकर महात्मा गाँधी ने चम्पारण में सत्याग्रह किया । 
  • बिहार में 1918 ई० के अन्त तक लगभग 97 प्रतिशत लोग अपने जीविकोपार्जन के लिए कृषि कार्य में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से संलग्न थे । उद्योगों अथवा व्यवसाय में लोगों का नियोजन अत्यंत कम था । कृषि की पद्धति भी पुरानी व्यवस्था पर आधारित थी और भू- राजस्व व्यवस्था अत्यन्त शोषणमूलक थी । 
  • ब्रिटिश शासकों द्वारा खाद्यान्न उत्पादन के स्थान पर नील आदि व्यावसायिक फसलों के उत्पादन के लिए किसानों को बाध्य किया जाता था । 
  • नील की खेती कृषकों के लिए अत्यंत हानिकारक थी । आरंभ में नील की खेती बिहार के चावल उपजाने वाले क्षेत्रों में ही सीमित रही । किन्तु, बाद में नील की खेती बिहार के अन्य क्षेत्रों में भी होने लगी । फलतः नील बगान मालिकों का प्रभाव बढ़ता जा रहा था । कतिपय कारणों से कृषि अर्थव्यवस्था अत्यंत हानिकारक हो गई और कृषक वर्ग निर्धन होता चला गया। अधिकांश किसान जमीन से बेदखल होने पर बटाईदार और भूमिहीन मजदूर बन गये तथा उनकी भूमि आदि साहूकारों एवं जमींदारों के पास चली गई । इन्हीं परिस्थितियों ने ब्रिटिश शासन एवं उनके सहयोगियों के विरुद्ध विद्रोह की पृष्ठभूमि तैयार की ।
  • गांधीजी के सत्याग्रह व अहिंसापूर्ण आंदोलन के कारण ब्रिटिश सरकार को चंपारण कृषक अधिनियम-1918 पारित करना पड़ा। हालांकि इस अधिनियम से कृषकों को विशेष राहत नहीं मिली, परंतु कृषक एकता का प्रदर्शन अवश्य हुआ तथा कृषकों के समर्थक नेता के रूप में गाँधीजी को प्रसिद्धि मिली । 
  • > भूमि संबंधी मौलिक मुद्दों को उठाने में स्वामी विद्यानन्द का योगदान महत्वपूर्ण है । उन्होंने 
  • जमींदारी प्रथा की बुराइयों को उजागर किया तथा कृषकों को जागृत किया । 
  • भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 1920 के नागपुर अधिवेशन के ‘कर नहीं दो’ का नारा के आलोक में बिहार के कुछ स्थानों पर जमींदारों को लगान नहीं दिया गया। 
  • उत्तर बिहार में अनेक देशी रियासतों तथा बागान मालिकों को लगान का भुगतान नहीं किया गया। सारण जिले की स्थिति ज्यादा गंभीर थी । 
  • सविनय अवज्ञा आंदोलन में बिहार के किसानों ने बड़े उत्साह से भाग लिया। 
  • 1930 में समस्त बिहार में ‘चौकीदारी कर नहीं दो’ अभियान चला, जो काफी सफल रहा। > 1930 के दशक के आर्थिक मंदी ने बिहार के किसानों को भी प्रभावित किया। उनकी 
  • स्थिति और भी गंभीर हो गयी थी । 
  • गोपालगंज के भोरे और कटैया में स्थिति बड़ी गंभीर हो गई। यहाँ के किसानों ने पुलिस थानों पर आक्रमण भी किया । देवरिया अनुमंडल किसान सभा के अध्यक्ष सचिदानन्द के नेतृत्व में इन स्थानों में आन्दोलन हो रहा था । 
  • मई 1931 में जहानाबाद में हुए किसान सम्मेलन में जिले के जमींदारों द्वारा किसानों के दमन की निन्दा की गई तथा किसानों की शिकायतों की जाँच के लिए एक समिति नियुक्ति की गई। 
  • उस समय शाहाबाद में स्वामी भवानी दयाल संन्यासी बहुत सक्रिय थे । 
  • बिहार में कांग्रेस ने राजेन्द्र प्रसाद की अध्यक्षता में एक कृषक जाँच समिति भी नियुक्त की, जिसके अन्य सदस्य अब्दुल बारी, बलदेव सहाय तथा राजेन्द्र मिश्र थे । 
  • इस जाँच समिति के गहन प्रचार से कुछ जमींदारों ने डरकर लगान में काफी छूट भी दी । 1932 में दुबारा शुरू हुए सविनय अवज्ञा आंदोलन में किसान आंदोलन अधिक हिंसक हो गया और शिवहर, बेलसंड, बैरगनिया, तारापुर, मुंगेर आदि स्थानों में थानों पर आक्रमण भी हुआ । 
  • बिहार में कृषकों के सबसे प्रभावशाली एवं महत्वपूर्ण नेता स्वामी सहजानंद सरस्वती थे ।
  • सहजानंद सरस्वती एवं उनके सहयोगियों ने किसानों में राष्ट्रीयता की भावना को जीवित रखा और किसान आंदोलन को एक नई दिशा प्रदान की । अब यह किसान आंदोलन वामपंथ की ओर मुड़ गया । 
  • सहजानंद सरस्वती ने किसानों को एकजुट करने के लिए अनेक सभाएँ आयोजित कीं। केवल सन् 1933 में ही ऐसी 117 सभाएँ आयोजित की गईं, जिनमें वह स्वयं उपस्थित हुए ।
  • 1933 के आरंभ में किसान सभा के विरोध के बावजूद परिषद् में विधेयक पेश किया गया । इससे किसानों के मध्य रोष की लहर दौड़ गई और मुंगेर में किसानों ने एक सभा कर निश्चय किया कि वे आधे से अधिक लगान नहीं देंगे । 
  • पटना की सभा में सहजानन्द सरस्वती ने यह घोषणा भी कर दी कि काँग्रेस को अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए किसान सभा का उपयोग करने नहीं दिया जायेगा । 
  • मधुबनी में मार्च 1933 के प्रान्तीय किसान सभा में किसान सभा को एक औपचारिक स्वरूप देने का प्रयास किया गया। हालांकि दरभंगा के महाराजा ने ऐसा नहीं होने दिया; लेकिन इसके बावजूद बिहटा में एक महीने के अन्दर दूसरा प्रान्तीय किसान सभा का आयोजन हुआ और इसके बाद सहजानन्द सरस्वती किसानों के निर्विवाद नेता बन गये । 
  • 1935 ई० तक किसान सभा के सदस्यों की संख्या अस्सी हजार हो गई । 
  • किसान सभा ने धीरे-धीरे अपने को काँग्रेस से अलग कर लिया और इस प्रकार 1935 ई० तक किसान सभा बिहार का एक शक्तिशाली एवं वामपंथी संगठन बन चुकी थी । 
  • 1937 में अन्ततः बकाश्त जमीन को लेकर वामपंथियों एवं कॉंग्रेस के मध्य संघर्ष उत्पन्न हो गया। यह सामाजिक वर्गों के मध्य स्पष्ट संघर्ष था, जिससे किसानों एवं ब्रिटिश सरकार के बीच भी संघर्ष उत्पन्न हो गया । 
  • 1938-39 तक कांग्रेस सरकार को किसान सभा से काफी संघर्ष करना पड़ा । परंतु द्वितीय विश्व युद्ध के आरंभ के समय कांग्रेसी सरकार के त्याग पत्र दे देने के कारण संघर्ष और तनाव कम हो गया । 
  • 1940 ई० के निर्वाचन में कांग्रेस ने अपनी चुनाव उद्घोषणा पत्र में भूमि स्थायी प्रबन्ध या जमीन्दारी पद्धति के उन्मूलन की बात कही । इससे एक ओर जमींदारों को अपने काश्तकारी अधिकार से वंचित होने का भय हो गया तो दूसरी ओर ब्रिटिश शासकों को यह भय हो गया कि ब्रिटिश राज का उन्मूलन हो जायेगा । 
  • 1946 के पश्चात् कांग्रेस पार्टी सरकार में आई । इससे किसानों को आशा हो गई कि जमीन्दारी प्रथा का उन्मूलन हो जाएगा । 
  • 1946 में बिहार के किसान बकाश्त, मालगुजारी की दर की कमी के पुराने मुद्दों पर पुनः संगठित हो गये। बकाश्त के प्रश्न पर बिहार के विभिन्न भागों में वृहत पैमाने पर कृषक विद्रोह आरम्भ हो गया । 
  • इस समय किसानों का नेतृत्व स्वामी सहजानन्द सरस्वती कर रहे थे और आंदोलन में वामपंथी दल सक्रिय भूमिका निभा रहे थे । 
  • किसान उत्साहित होकर जबर्दस्ती फसल काटने लगे और जमीन जोतने लगे, जिससे आंदोलन का स्वरूप हिंसक हो गया । 
  • किसानों एवं जमींदारों के बीच संघर्ष का एक अन्य मुद्दा था – भोली (जिन्स में लगान भुगतान), भूमि का नगदी (नगद लगान भुगतान) तथा भूमि में परिवर्तन । किसानों ने इन जमीनों पर अवैध ढंग से कब्जा करना शुरू किया। इसके परिणामस्वरूप पूरे बिहार में अनेक हिंसात्मक संघर्ष हुए । 
  • काँग्रेसी सरकार ने 1947 में किसान आंदोलन पर काबू पाने के लिए बिहार सार्वजनिक 
  • व्यवस्था अनुरक्षण अधिनियम पारित किया । इस अधिनियम के उपबन्ध अत्यंत कठोर थे । एक उपबन्ध के अनुसार एक गाँव का किसान दूसरे गाँव में नहीं जा सकता था, जहाँ बकाश्त संघर्ष चल रहा हो । 
  • दरभंगा और बेगूसराय में सबसे ज्यादा संख्या में किसान गिरफ्तार किये गये। इसके बावजूद किसानों ने हार नहीं मानी और संघर्षरत रहे । 
  • स्वतंत्रता आंदोलन में बिहार के विद्यार्थियों का योगदान 
  • भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दिनों में बिहार के शैक्षिक संस्थाओं ने भी स्वतंत्रता के विचारों 
  • के प्रचार-प्रसार के लिए युवा शक्ति को संगठित किया । 
  • शिक्षकों के सहयोग से बिहार के छात्रों ने आंदोलन के रास्ते पर कदम बढ़ाया। अंग्रेजों ने हालांकि शिक्षण संस्थाओं और छात्रों पर नये-नये कठोर नियम बनाकर आंदोलन और विद्रोह को दबाने का प्रयास किया । 
  • दरभंगा में 1901 ई० में एक फूस के घर में सरस्वती अकादमी की स्थापना हुई । यह अकादमी (स्कूल) देश-प्रेम की शिक्षा का केंद्र था । कमलेश्वरी चरण सिन्हा, ब्रजकिशोर प्रसाद, हरनन्दन दास, सतीश चन्द्र चक्रवर्ती आदि इस अकादमी से जुड़े थे । 
  • 1906 में श्रीकृष्ण सिंह और श्री तेजेश्वर प्रसाद ने ‘बिहार स्टूडेन्ट्स कांफ्रेंस’ की स्थापना की। ये दोनों सुरेन्द्र नाथ बनर्जी से प्रभावित थे । 
  • राजेन्द्र प्रसाद कलकत्ता में अपने अध्ययन काल में ही स्वतंत्रता प्रेमियों के संपर्क में आये । 
  • इसी उद्देश्य से कलकत्ता में ‘सर्वेण्ट्स ऑफ इंडिया सोसायटी’ की स्थापना हुई थी । 
  • मुजफ्फरपुर में बाबू रामदयालु सिंह और मुंगेर का कृष्णा प्रसाद, जो 1910 में कानून का छात्र था, इस सोसाइटी से प्रभावित थे । 
  • सन् 1916 में तत्कालीन शिक्षा सदस्य सर शंकरन नायर ने केंद्रीय विधायिका परिषद् में पटना विश्वविद्यालय विधेयक’ प्रस्तुत किया । 
  • इस विधेयक की आपत्तिजनक धाराओं पर विरोध प्रकट करने के लिए नवंबर 1916 में पटना के बांकीपुर में बिहार प्रांतीय सम्मेलन का एक विशेष अधिवेशन हुआ । राजेन्द्र प्रसाद उन दिनों बिहार प्रांतीय संघ के संयुक्त सचिव थे । 
  • चंपारण दौरे के समय गाँधीजी द्वारा 1917 में चंपारण के ‘बड़हरवा लखनसेन’ नामक गाँव में एक स्कूल स्थापित किया गया। गाँव के शिवगुलाम लाल नामक एक उदार व्यक्ति ने स्कूल के लिए अपना घर दान कर दिया था । 
  • 1919 में चंपारण में गाँधी स्कूल के प्रधानाध्यापक के नेतृत्व में हडतालें हुईं । 
  • अंग्रेजों की दमन नीति के विरुद्ध 6 अप्रैल, 1919 को पटना सिटी के किला मैदान में राजेन्द्र प्रसाद, मजहरूल हक आदि के नेतृत्व में एक विशाल सभा हुई, जिसमें पटना के अधिकांश छात्र उपस्थित थे । 
  • पटना लॉ कॉलेज के छात्र सैयद मुहम्मद शेर और बी. एन. कॉलेज के छात्र अब्दुल बारी ने अक्टूबर 1920 में कॉलेज छोड़ दिया और घूम-घूमकर जनता को जागृत करने लगे । 
  • 1920 ई० के अंत तक पटना में विभिन्न कॉलेजों एवं स्कूलों के छात्र अपनी पढ़ाई छोड़ चुके थे । कुछ छात्रों के लिए पटना के सदाकत आश्रम में रहने की व्यवस्था की गई । 
  • मुजफ्फरपुर के ‘भूमिहार ब्राह्मण कॉलेजिएट स्कूल’ के छात्र भी काफी उद्वेलित थे ।
  • गाँधीजी ने छात्रों से स्कूलों एवं कॉलेजों के छोड़ने और आजादी की लड़ाई में भाग लेने की अपील की । 
  • टी. एन. जे. कॉलेज, भागलपुर के 40 छात्रों ने असहयोग आंदोलन में भाग लिया ।
  • दरभंगा के नॉर्थ ब्रुक जिला स्कूल, मधुबनी के वाटसन स्कूल, हाजीपुर हाईस्कूल तथा बगहा मिडिल स्कूल आदि शैक्षणिक संस्थाओं पर असहयोग आंदोलन का प्रबल प्रभाव था ।
  • राजेन्द्र बाबू ने पटना विश्वविद्यालय के सिनेट एवं सिंडिकेट की सदस्यता से त्याग पत्र दे दिया ।
  • मुजफ्फरपुर के बी. बी. कॉलेजिएट स्कूल, दरभंगा के सरस्वती एकेडमी, छपरा के कॉलेजिएट स्कूल तथा गया के एक स्कूल को राष्ट्रीय विद्यालय के रूप में परिवर्तित कर दिया गया और इनका संचालन विशुद्ध रूप से राष्ट्रीय ढंग से किया गया । 
  • गाँधीजी के आह्वान पर बिहारशरीफ में रामबिगहा के स्वर्गीय राय बहादुर एदल सिंह ने एक 
  • न्यास की स्थापना की। उसके अंतर्गत कुछ ही दिन पूर्व नालंदा कॉलेज की स्थापना हुई थी । > 1921 में पटना कॉलेज के हॉल में श्री शर्फुद्दीन बार ऐट लॉ की अध्यक्षता में ‘बिहारी स्टूडेंट्स कांफ्रेंस’ की प्रथम बैठक हुई। इस संगठन ने स्वदेशी वस्त्रों को धारण करने की प्रतिज्ञा की । इस बैठक का उद्देश्य छात्रों के मध्य सहयोग की भावना विकसित करना था । 
  • देश-प्रेम की भावना से मार्च 1921 तक अनेक प्राध्यापकों एवं छात्रों ने क्रमशः अपने पदों एवं पढ़ाई का त्याग कर दिया और राष्ट्रीय कार्यों में लग गये । 
  • बिहार स्टूडेंट्स कांफ्रेंस’ का सोलहवां अधिवेशन अक्टूबर 1921 को हजारीबाग में हुआ । 
  • इस अधिवेशन की अध्यक्षता श्रीमती सरला देवी ने की । 
  • 1928 में मोतिहारी में बिहारी छात्र सम्मेलन का आयोजन बिहार युवक संघ के प्रो० ज्ञान साहा के नेतृत्व में हुई । ब्रिटिश सरकार प्रो० ज्ञान साहा को ‘अतिवादी विचारधारा’ का क्रांतिकारी समझती थी । 
  • छात्रों के निमंत्रण पर 1929 में सरदार पटेल भागलपुर आये । 
  •  1930 में नालंदा कॉलेज के छात्रों के प्रयास से बिहारशरीफ में युवक संघ की एक शाखा की स्थापना हुई । 
  •  सन् 1931 में आरा में बिहारी छात्रों का 24वां सम्मेलन हुआ, जिसमें ग्रामीणों का सहयोग प्राप्त करने के लिए कार्य करने का निश्चय किया गया । 
  • 1940 में बिहार के कई स्थानों पर विद्यार्थियों ने स्वतंत्रता दिवस समारोहों में भाग लिया । स्वतंत्रता दिवस मनाने के कारण कई कॉलेजों के छात्र कठोर रूप से दंडित किये गये । > मुंगेर के अली अशरफ तथा सुनील मुखर्जी जैसे कम्युनिस्ट छात्र नेता कैद कर लिये गये । > जय प्रकाश नारायण की गिरफ्तारी के विरोध में 14 मार्च, 1940 को सारे प्रांत में जयप्रकाश दिवस मनाया गया । लगातार जारी विरोध, प्रदर्शन, आन्दोलन के कारण 22 अप्रैल 1946 को उन्हें जेल से रिहा कर दिया गया। देखें – Yusuf Meharally द्वारा संपादित जयप्रकाश नारायण की पुस्तक ‘INDIA Struggle for Freedom Political, Social and Economic अप्रैल 1940 में दरभंगा में बिहारी छात्र सम्मेलन का आयोजन हुआ । 
  • 16 नवंबर, 1940 को छात्र संघ के तत्वावधान में पटना, मुजफ्फरपुर और दरभंगा में छात्रों 
  • द्वारा दमन विरोधी दिवस मनाया गया । 
  • अप्रैल 1941 में मधुबनी में छात्र सम्मेलन हुआ, जिसकी अध्यक्षता रामवृक्ष बेनीपुरी ने की ।
  • अगस्त 1941 में बिहार प्रांतीय छात्र सम्मेलन में सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने उद्घाटन भाषण दिया । 
  • 1942 के अगस्त क्रांति के समय राजेन्द्र प्रसाद की गिरफ्तारी की सूचना मिलते ही बी. एन. कॉलेज के छात्रों ने वृहद जुलूस निकाला तथा इंजीनियरिंग कॉलेज, पटना ट्रेनिंग कॉलेज, साइंस कॉलेज आदि संस्थानों के भवनों एवं छात्रावासों पर झंडे फहराये गये । 
  • छात्रों ने बिहार केंद्रीय छात्र परिषद् नामक एक गुप्त संगठन भी बनाया। सरकार के अनेक कठोर कार्रवाइयों के पश्चात् भी छात्रों का आंदोलन समाप्त नहीं हुआ । 
  • 1942-43 के पश्चात् बिहार के कई छात्र राष्ट्रीय स्तर के नेता के रूप में संपूर्ण भारतवर्ष में लोकप्रिय हो गये । 

स्वतंत्रता आंदोलन में बिहार की महिलाओं का योगदान 

  • सन् 1917 ई० में बिहार में महात्मा गाँधी के पदार्पण के साथ ही आंदोलन में महिलाओं का झुकाव बढ़ गया । 
  • 1919 तक कस्तूरबा गाँधी, श्रीमती सरला देवी, प्रभावती जी, राजवंशी देवी, सुनीति देवी, राधिका देवी और वीरांगना महिलाओं की प्रेरणा से संपूर्ण बिहार की महिलाओं में आजादी के प्रति रुझान बढ़ गया । 
  • सरला देवी ने 1921 में बिहार आह्वान किया । श्रीमती सावित्री देवी ने प्रिंस ऑफ वेल्स के भारत आगमन के दौरान होनेवाले समारोहों के बहिष्कार आन्दोलन को नेतृत्व प्रदान किया । > पटना के श्रीमती सी. सी. दास, कुमारी गौरी दास और श्रीमती उर्मिला देवी ने स्वतंत्रता 
  • आंदोलन के दिनों में चर्खा एवं अन्य स्वदेशी वस्तुओं वस्तुओं के प्रचार में भाग लिया । 
  • 1921 ई० में देशबंधु कोष के लिए जब गाँधीजी ने बिहार का भ्रमण किया तो यहाँ की महिलाओं ने अपने आभूषण तक को दान में दिया । 
  • इस कार्य में महात्मा गाँधी के साथ श्रीमती प्रभावती देवी (जयप्रकाश नारायण की पत्नी) ने महत्वपूर्ण योगदान दिया । 
  • सन् 1930 ई० के नमक आंदोलन में भी बिहार की महिलाओं ने बड़े जोश-खरोश के साथ भाग लिया । श्रीमती शैलबाला राय के उत्तेजक भाषण से प्रभावित होकर संथाल परगना की महिलाओं ने नमक कानून को भंग किया । 
  • शाहाबाद जिले के श्री रामबहादुर