बिहार में वन व वनस्पति
- बिहार में प्राकृतिक वनस्पति में पर्णपाती यानी पतझड़ किस्म के वन अधिक पाये जाते हैं ।
- इस प्रकार के वनों के वृक्ष ग्रीष्म काल के आरंभ होते ही अपनी पत्तियाँ गिरा देते हैं, जिससे वे गर्मी की शुष्कता को झेलने में समर्थ हो जाते हैं ।
- वर्तमान बिहार के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल के मात्र 6.65% भाग पर (भारत, 2013 के अनुसार ) अधिसूचित वन पाये जाते हैं, जबकि झारखंड राज्य के निर्माण के पूर्व यहाँ (अविभाजित बिहार में) 16.87% भाग पर वन पाये जाते थे ।
- बिहार में सामान्यतया मानसूनी वन मिलते हैं । परन्तु इसके तराई क्षेत्र में उपोष्ण पर्णपाती ( पतझड़ ) वन भी मिलते हैं ।
- भारतीय वन सर्वेक्षण (FSI) द्वारा फरवरी, 2012 में जारी भारत में वन स्थित रिपोर्ट – 2011 के अनुसार बिहार में 41 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र बढ़ा है ।
- बिहार में वर्ष 2009 में जहाँ 6804 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र था, वहीं वर्ष 2011 में वन क्षेत्र बढ़कर 6845 वर्ग किमी. हो गया।
- राज्य में 12 आरक्षित वन है।
- प्रदेश में मानूसनी पर्णपाती वन पाये जाते हैं, जिन्हें वर्षा की अधिकता एवं न्यूनता के आधार पर दो भागों में विभाजित किया जा सकता है.
- आर्द्र पर्णपाती वन
- शुष्क पर्णपाती वन
आर्द्र पर्णपाती वन
- ये वन विशेष रूप से किशनगंज जिले के उत्तर-पूर्वी भाग में, हिमालय की तराई के दलदली भाग और सोमेश्वर की पहाड़ियों पर मिलते हैं। इस क्षेत्र में 120 सेमी से अधिक वर्षा होती है ।
- अत्यंत घनी वनस्पति वाले ऐसे वनों में मुख्यतः साल के वृक्ष उगते हैं, जो गर्मी के मौसम से पूर्व अपने पत्ते गिरा देते हैं, परंतु वर्षा के पूर्व इनमें नयी पत्तियाँ आ जाती हैं और ये वन पुनः हरे-भरे हो जाते हैं ।
- ऐसे वनों में साल वृक्षों के अतिरिक्त सेमल, चंपा, अशोक, केन, घउरा, आम, जामुन, करंज आदि के वृक्ष भी मिलते हैं ।
शुष्क पर्णपाती वन
- इस प्रकार के वन / वनस्पति 120 सेमी से कम वर्षा वाले क्षेत्रों में पाये जाते हैं।
- ये वन घने नहीं होते, अतः इनमें वृक्षों के बीच फासला अधिक होने के कारण धूप जमीन पर आसानी से पहुँचती है। ऐसे वन में वृक्षों की ऊँचाई कम होती है तथा पतझड़ की अवधि लंबी होती है ।
- ऐसे वनस्पति प्रदेश कैमूर की पहाड़ी तथा छोटानागपुर की उत्तरी ढलानों और छिटपुट पहाड़ियों पर मिलते हैं। साथ ही, रक्सौल, अररिया और पूर्णिया जिले में कुछ विरल वन पाये जाते हैं ।
- इन वनों में मध्य कोटि के साल, बांस, खैर, पलाश, अमलतास, शीशम, महुआ तथा केन के साथ-साथ आम व जामुन के वृक्ष और बेर की झाड़ियाँ भी मिलती हैं।
उत्तरी उप-हिमालय के तराई वन
- उत्तरी उपहिमालयी प्रदेश में तराई वनों का बाहुल्य है । नेपाल की सीमा से लगे बिहार के तराई क्षेत्र में आर्द्र पर्णपाती (उपोष्ण पर्णपाती) वन पाये जाते हैं ।
- उच्च भूमि और पहाड़ी ढालों पर, जहाँ वर्षा का औसत 160 सेमी० से अधिक रहता है
- साल, शीशम, सेमल, तून और खैर के सघन वन पाये जाते हैं ।
- पश्चिमी चंपारण जिले में सोमेश्वर तथा दून की पर्वत श्रेणियों की ढालों पर तथा पूर्णिया और अररिया जिले के उत्तरी तराई क्षेत्र में यह वन पाया जाता है।
- अधिक नमी वाली दलदली और निम्न भूमि वाले क्षेत्रों में ऊँची घासों की बहुलता है ।
- तराई क्षेत्रों में सवाई घास तथा नरकट और झाउ की घनी झाड़ियाँ पायी जाती हैं।
- सहरसा और पूर्णिया के उत्तरी सीमान्त क्षेत्रों में साल-वनों की पट्टी विस्तृत है। बिहार में वनों का वितरण
- राज्य में वनों का वितरण समरूप नहीं है। रोहतास जिला में सर्वाधिक वन क्षेत्र हैं, जबकि
- कई क्षेत्रों में वनों का पूर्ण अभाव है।
वन क्षेत्र वाले विभिन्न जिलों का ब्यौरा
जिला | क्षेत्र | वन क्षेत्र | वन क्षेत्र % |
बिहार के वन और वनोत्पाद
- तेल युक्त बीज (जैसे- कपास, साल, हार्रा, महुआ इत्यादि)
- साल एवं केन्दु पन्ता, गोद, तानिन, जड़ी-बूटी लाया (यह एवं वृक्षों पर लाख के कीड़ों का पालन करके इसका उत्पादन किया जाता है।
- बांस, तसर (यह भागलपुर के वन-उपवन में पाये जानेवाले अर्जुन के पतों पर पलने वाले रेशम के कीड़ों से मिलता है)
- सवाई वास (जी साहेबगंज भागलपुर में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है) आदि ।
बिहार के वन आधारित उद्योग
- राज्य में वन पर आधारित अनेक उद्योग स्थापित है जिनमें आरा मिलों की संख्या 1000 से अधिक है।
- इसके अतिरिक्त सिजनिंग प्लान्ट एवं गत्ता उद्योग (समस्तीपुर, दरभंगा) पलाईवुड निर्माण (बेतिया, पटना, मुजफ्फरपुर), कत्था (बलिया) तथा साचिस एवं बीड़ी उद्योग प्रमुख है।
बिहार राज्य की वन नीति
- राष्ट्रीय वन नीति के अनुरूप ही बिहार राज्य वन नीति वन क्षेत्रों के विस्तार पर बल देती है। इस नीति का मुख्य उद्देश्य राज्य में वन क्षेत्र को बढ़ाकर 33% करना है।
- राज्य में वन क्षेत्र का प्रतिशत घटकर केवल 6.65 प्रतिशत ही रह गया है।
सामाजिक वानिकी
- सामाजिक वानिकी का उद्देश्य वनों का विस्तार करना है, ताकि पर्यावरणीय संतुलन बना रहे।
- इसके अलावा इसका उद्देश्य जलावन के लिए लकड़ी की आपूर्ति करना भी है।
- सामाजिक वानिकी के कार्यक्रम में तीन मुख्य उपाय शामिल हैं-
- (i) ऊसर भूमि पर मिश्रित वृक्षारोपण
- (ii) जिन क्षेत्रों में वनों का ह्रास हुआ है वहाँ पुनः वन लगाना; तथा
- (iii) आश्रय पट्टी का विकास ।
- सामाजिक वानिकी के साथ कृषि वानिकी के कार्यक्रम को भी बढ़ावा दिया जा रहा है।
बिहार में भूमि संसाधन एवं कृषि संसाधन
- बिहार आर्थिक सर्वेक्षण 2015-16 के अनुसार, वर्ष 2012-13 में बिहार की कुल कृषि योग्य भूमि 77.78 लाख हेक्टेयर थी, जिसमें
- निवल बुआई क्षेत्र 5402.39 हजार हेक्टेयर (57.7% के लगभग) है ।
- बिहार में कुल क्षेत्रफल के केवल 6.65% क्षेत्र में वनों का विस्तार है तथा 86% से अधिक लोग कृषि क्षेत्र से जुड़े हुए हैं। बिहार में औसत जोतों का आकार 0.4 हेक्टेयर से कम है।
- बिहार आर्थिक सर्वेक्षण 2015-16 के अनुसार बिहार में फसल सघनता 2010-11 के 1.37 की तुलना में 2012-13 में 1.44 हो गई।
बिहार में भूमि – उपयोग का पैटर्न ( 2012-13)
भूमि उपयोग | क्षेत्रफल (हजार हे. में) | बिहार के कुल क्षेत्र का % |
निवल बुआई क्षेत्र | ||
वर्तमान परती भूमि | ||
कृष्य ऊसर भूमि | ||
वन | ||
स्थायी चारागाह | ||
बागानी भूमि | ||
अन्य परती ( वर्तमान परती भूमि को छोड़कर) | ||
गैर कृषि कार्य में लगी भूमि | ||
बंजर एवं अकृष्य भूमि |
बिहार में जैविक कृषि
- बिहार में जैविक कृषि (organic farming) प्रगति पर है। ‘बिहारी ब्रांड’ केंचुए (earth worm) की मांग देश भर में जोर पकड़ने लगी है।
- वर्मी कम्पोस्ट के व्यावसायिक उत्पादन पर अनुदान देनेवाला बिहार देश का पहला राज्य है।
- बिहार में बेगूसराय को वर्मी कम्पोस्ट का जनक माना जाता है। वर्ष 2002 में कृषि वैज्ञानिक