मौर्योत्तर बिहार
- मौर्य साम्राज्य के पतनोपरान्त पुष्यमित्र शुंग के अधीन केवल मध्य गांगेय घाटी और चंबल नदी से सम्बद्ध क्षेत्र रह गये थे ।
- वैक्ट्रिया के यूनानी शासकों ने साम्राज्य के पश्चिमोत्तर क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया। पंजाब और पाटलिपुत्र पर भी उनके आक्रमण हुए।
- कलिंग के शासक खारवेल ने (संभवतः पहली शताब्दी ई० पू० के अंत में) मगध पर दो बार आक्रमण किया।
- पुष्यमित्र ने परिस्थिति पर नियंत्रण किया। संभवतः उसने जालंधर और साकल (सियालकोट) तक अपनी सत्ता का विस्तार किया ।
- पुष्यमित्र शुंग के काल में ही डेमेट्रियस का आक्रमण पाटलिपुत्र पर हुआ ।
- 72 ई० पू० में शुंग वंश का अंत तब हुआ जब इस वंश के अंतिम शासक देवभूति की हत्या कर उसके मंत्री वसुमित्र ने कण्व वंश की नींव रखी।
- कण्व वंश के अंतिम शासक को आंध्र – सातवाहनों ने अपदस्थ कर दिया। इस बात की स्पष्ट जानकारी नहीं मिलती कि आंध्रों का मगध पर शासन रहा था या नहीं ।
- प्रथम शताब्दी ईस्वी में इस क्षेत्र में कुषाणों का अभियान हुआ ।
- कुषाण शासक कणिष्क द्वारा पाटलिपुत्र पर आक्रमण किये जाने और यहाँ के प्रसिद्ध बौद्ध विद्वान अश्वघोष को अपने दरबार में प्रश्रय देने की चर्चा मिलती है ।
- कुषाणकालीन अवशेष भी बिहार में अनेक स्थानों से प्राप्त हुए हैं।
- कुषाण साम्राज्य के पतन के बाद मगध पर संभवतः वैशाली के लिच्छवियों का नियंत्रण रहा ।
- कुछ इतिहासकार इसके विपरीत यह मानते हैं कि मगध पर शक – मुरुण्डों का नियंत्रण हो गया । F. शुंग वंश (लगभग 184 – 72 ई० पू० )
- मौर्य वंश के अंतिम शासक बृहद्रथ की हत्या करके 184 ई० पू० में पुष्यमित्र शुंग ने साम्राज्य के सिंहासन पर अधिकार कर लिया तथा शुंग राजवंश की स्थापना की ।
- शुंग ब्राह्मण (पुरोहित) थे । अशोक द्वारा यज्ञों पर रोक लगा दिये जाने के बाद उन्होंने पुरोहित का कर्म त्यागकर सैनिक वृत्ति को अपना लिया ।
- पुष्यमित्र अंतिम मौर्य शासक वृहद्रथ का प्रधान सेनापति था ।
- दिव्यावदान के अनुसार वह पुष्यधर्म का पुत्र था । एक दिन सेना का निरीक्षण करते समय वृहद्रथ की उसने धोखे से हत्या कर दी ।
- उसने ‘सेनानी’ उपाधि धारण की थी । राजा बन जाने के बाद भी उसने अपनी यह उपाधि बनाये रखा ।
- पुष्यमित्र शुंग ने मगध साम्राज्य पर अपना अधिकार जमाकर जहाँ एक ओर यवनों के आक्रमण से देश की रक्षा की, वहीं दूसरी ओर देश में शांति और व्यवस्था की स्थापना कर वैदिक धर्म एवं आदर्शों, जो अशोक के शासन काल में उपेक्षित हो गये थे, को पुनः प्रतिष्ठित किया ।
- इसी कारण उसका काल वैदिक प्रतिक्रिया अथवा वैदिक पुनर्जागरण का काल कहलाता है।
विदर्भ युद्ध
- मालविकाग्निमित्र के अनुसार पुष्यमित्र के काल में लगभग 184 ई० पू० में विदर्भ का युद्ध लड़ा गया, जिसमें पुष्यमित्र की विजय हुई और राज्य को दो भागों में बांट दिया गया ।
- वर्धा नदी दोनों राज्यों की सीमा बनी। इस राज्य का एक भाग माधवसेन को प्राप्त हुआ ।
- दोनों भागों के नरेश ने पुष्यमित्र को अपना सम्राट मान लिया तथा पुष्यमित्र का प्रभाव क्षेत्र
- नर्मदा नदी के दक्षिण तक विस्तृत हो गया ।
यवनों का आक्रमण
- वृहद्रथ के काल से पुष्यमित्र के काल तक यवनों के एक या दो आक्रमण हुए और पुष्यमित्र के हाथों (सेनापति एवं राजा के रूप में) उन्हें पराजित होना पड़ा। यह पुष्यमित्र के शासनकाल की सबसे महत्वपूर्ण घटना थी ।
शुंग साम्राज्य का शासन
- पुष्यमित्र का साम्राज्य उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में बरार तक तथा पश्चिम में पंजाब से लेकर पूर्व में मगध तक फैला हुआ था। साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र थी ।
- पुष्यमित्र शुंग के साम्राज्य में अयोध्या और विदिशा सम्मिलित थे तथा विदर्भ राज्य उसके अधीन था ।
- दिव्यावदान और तारानाथ के अनुसार जालंधर और स्यालकोट पर भी उसका अधिकार था । पुष्यमित्र दैवी उत्पत्ति के सिद्धान्त में विश्वास करता था ।
- उसका पुत्र अग्निमित्र विदिशा का उपराजा था । धनदेव कोशल का राज्यपाल था । राजकुमार सेना का संचालन भी करते थे ।
- शासन में सहायता के लिए एक मंत्रिपरिषद भी होती थी । इस समय भी ‘ग्राम’ शासन की सबसे छोटी इकाई होती थी । इस काल तक आते-आते मौर्यकालीन केंद्रीय नियंत्रण में शिथिलता आ गयी थी तथा सामंतीकरण की प्रवृत्तियाँ सक्रिय होने लगी थीं ।
- शुंग काल में राजधानी हालांकि पाटलिपुत्र थी, किंतु विदिशा का राजनैतिक एवं सांस्कृतिक महत्व बढ़ता गया और कालांतर में इस नगर ने पाटलिपुत्र का स्थान ले लिया ।
- पुष्यमित्र उत्तर भारत का एकछत्र सम्राट बन गया तथा उसने अपनी प्रभुसत्ता घोषित करने हेतु अश्वमेध यज्ञ का अनुष्ठान किया ।
- बौद्धों द्वारा यवनों की मदद करने के कारण पुष्यमित्र ने बौद्ध धर्मावलंबियों पर बहुत अत्याचार किये ।
- पुष्यमित्र ने अशोक द्वारा निर्माण करवाये गये 84 हजार स्तूपों को नष्ट करवाया ।
- बौद्ध ग्रंथ दिव्यावदान के अनुसार पुष्यमित्र ने कुछ बौद्धों को अपना मंत्री नियुक्त कर रखा था। अतः उसे बौद्ध विरोधी कहना पूरी तरह सच नहीं है ।
- पुराणों के मुताबिक पुष्यमित्र ने लगभग 36 वर्षों तक शासन किया । 15
अग्निमित्र (148-140 ई० पू० )
- पुष्यमित्र की मृत्यु (148 ई० पू० ) के पश्चात् उसका पुत्र अग्निमित्र शुंग वंश का राजा हुआ ।
- उसने कुल 8 वर्षों तक यानी लगभग 140 ई० पू० तक शासन किया ।
- वही कालिदास के नाटक ‘मालविकाग्निमित्रम्’ का नायक है ।
- अग्निमित्र के बाद वसुज्येष्ठ या सुज्येष्ठ राजा हुआ ।
वसुमित्र से देवभूति तक ( 140-72 ई० पू० )
- शुंग वंश का चौथा राजा वसुमित्र हुआ, जिसने यवनों को पराजित किया था ।
- पुष्यमित्र के शासनकाल में वह उत्तर पश्चिमी सीमा – प्रांत का राज्यपाल था ।
- उसने 10 वर्षों तक लगभग 130 ई० पू० तक राज्य किया । एक दिन नृत्य का आनंद लेते समय मूजदेव या मित्रदेव नामक व्यक्ति ने उसकी हत्या कर दी ।
- वसुमित्र के बाद क्रमशः आंध्रक, पुलिंदक या पुण्डलिक, घोषा तथा वज्रमित्र राजा हुए। इस वंश का नौवां शासक भागवत या मागभद्र हुआ। वह शक्तिशाली राजा हुआ ।
- इसके शासन के 14वें वर्ष में तक्षशिला के यवन नरेश एंटीयालकीड्स का राजदूत हेलियोडोरस उसके विदिशा स्थित दरबार में उपस्थित हुआ था ।
- उसने भागवत धर्म ग्रहण कर लिया तथा विदिशा (बेसनगर) में गरुड़ स्तम्भ की स्थापना कर भागवत विष्णु की पूजा की।
- पुराणों के अनुसार शुंग वंश का 10वां और अंतिम नरेश देवभूति था । उसने 10 वर्षों तक राज्य किया ।
- वह अत्यंत विलासी शासक था। उसके कण्व अमात्य वसुमित्र ने उसकी हत्या कर दी। इस प्रकार शुंग वंश का अंत हो गया।
- शुंग वंश के राजाओं ने मगध साम्राज्य के केंद्रीय भाग की विदेशियों से रक्षा की तथा मध्य भारत में शांति और सुव्यवस्था की स्थापना कर विकेंद्रीकरण की प्रवृत्ति को कुछ समय तक रोके रखा।
शुंगकालीन संस्कृति
- शुंग काल में समाज में बाल विवाह प्रचलित हो गया तथा कन्याओं का विवाह 8 से 12 वर्ष की आयु में किया जाने लगा ।
- इस काल में पाटलिपुत्र, कौशाम्बी, वैशाली, हस्तिनापुर, वाराणसी तथा तक्षशिला प्रमुख व्यापारिक नगर थे । भृगुकच्छ, सुर्पारक, ताम्रलिप्ति प्रमुख व्यापारिक बंदरगाह थे ।
- स्वर्ण मुद्रा को निष्क, दीनार, सुवर्ण, सुवर्णमासिक कहा जाता था। तांबे के सिक्कं ‘कार्षापण’ कहलाते थे । चांदी के सिक्के के लिए ‘पुराण’ अथवा ‘धारण’ शब्द का उल्लेख मिलता है ।
- शुंग राजाओं का काल वैदिक अथवा ‘ब्राह्मण धर्म के पुनर्जागरण का काल’ माना जाता है। इसी समय समाज में भागवत धर्म का उदय हुआ ।
- शुंग काल में संस्कृत भाषा का पुनरुत्थान हुआ । संस्कृत काव्य की भाषा न रहकर लोकभाषा के रूप में परिणत हो गयी ।
- संस्कृत के पुनरुत्थान में महर्षि पतंजलि का प्रमुख योगदान था । पतनजलि ने पाणिनि के सूत्रों पर आधारित एक महाभाष्य लिखा ।
- महाभाष्य के अलावा मनुस्मृति का मौजूदा स्वरूप संभवतः इसी युग में रचा गया था। कुछ विद्वानों के अनुसार शुंगकाल में ही महाभारत के शांतिपर्व तथा अश्वमेध का भी परिवर्द्धन हुआ ।
- शुंगकालीन वास्तुशिल्प के उत्कृष्ट नमूने बिहार के बोधगया से प्राप्त होते हैं।
- शुंगकाल के सर्वोत्तम स्मारक स्तूप हैं । भरहुत, सांची, बेसनगर की कला भी उत्कृष्ट है ।
- बोधगया के विशाल मंदिर के चारों ओर एक छोटी पाषाण वेदिका मिली है, जिसका निर्माण शुंगकाल में हुआ था । इस पर भी भरहुत के चित्रों के समान चित्र उत्कीर्ण मिलते हैं ।
- इन उत्कीर्ण चित्रों में कमल, राजा-रानी, पुरुष, पशु, बोधिवृक्ष, छत्र, त्रिरत्न, कल्पवृक्ष आदि प्रमुख हैं । एक चित्र में रथारूढ़ सूर्य तथा दूसरे में श्रीलक्ष्मी का अंकन अत्यंत कलापूर्ण है । G. कण्व वंश (72-27 ई० पू० )
- शुंग वंश के अंतिम राजा देवभूति की षड्यंत्रपूर्वक हत्या करके उसके अमात्य (मंत्री) वसुमित्र ने एक नये वंश ‘कण्व’ राजवंश की स्थापना की ।
- शुंगों के समान कण्व भी ब्राह्मण थे ।
- वसुमित्र ने कुल 9 वर्षों तक राज्य किया। उसके बाद तीन राजा भूमिमित्र, नारायण और सुशर्मा ने क्रमशः 14 वर्ष, 12 वर्ष और 10 वर्षों तक राज्य किया ।
- सुशर्मा इस राजवंश का आखिरी शासक था । वायुपुराण के अनुसार वह अपने आंध्रजातीय भृत्य शिमुख (सिंधुक) द्वारा मार डाला गया। सुशर्मा की मृत्यु के साथ ही कण्व राजवंश का अंत हो गया ।
- वसुमित्र से लेकर सुशर्मा तक इस वंश के चार राजाओं ने 72 से 27 ई० पू० (45 वर्ष) तक शासन किया।
कुषाण वंश ( पहली दूसरी सदी ईस्वी)
- प्रथम सदी ई० में इस क्षेत्र में कुषाणों का अभियान हुआ ।
- कुषाण शासक कनिष्क ( 78-125 ई०) द्वारा पाटलिपुत्र पर आक्रमण किये जाने और यहाँ के प्रसिद्ध बौद्ध विद्वान अश्वघोष को अपने साथ ले जाने की चर्चा मिलती है।
- कुषाण कालीन अवशेष भी बिहार में अनेक स्थानों से प्राप्त हुए हैं ।
- कुषाण साम्राज्य के पतन के बाद मगध पर लिच्छवियों का शासन रहा। अन्य विद्वान मगध पर शक मुरुंडों का नियंत्रण मानते हैं ।
- मगध पर आंध्रवंश के शासन का कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं मिलता है ।
- कुषाण साम्राज्य के पतन के बाद विकेंद्रीकरण के युग की शुरुआत हुई। यह काल चौथी सदी ईस्वी तक चलता रहा ।