- भारत पर तैमूर के आक्रमण 1398-99 ई० में हुए, जिसके परिणामस्वरूप तुगलक साम्राज्य विघटित होने लगा। इस समय बिहार का क्षेत्र अपने निकटवर्ती जौनपुर के संगठित राज्य के प्रभाव में आ गया।
- जौनपुर राज्य का विस्तार उत्तर में दरभंगा तक और दक्षिण में बक्सर तक हुआ। शेष भागों पर बंगाल के शासकों का प्रभाव था ।
- बिहार के क्षेत्रों पर अधिकार के लिए जौनपुर के शर्की और बंगाल के हुसैनशाही शासकों के बीच लंबा संघर्ष चला। यह लड़ाई जौनपुर पर दिल्ली की विजय के बाद दिल्ली और बंगाल के शासकों के मध्य लड़ी गयी ।
- बिहारशरीफ स्थित लोदी के अभिलेख के मुताबिक सिकंदर लोदी ने 1495-96 ई० में बंगाल
- के हुसैन शाह शर्की को हराकर बिहार में दरिया खां नूहानी को गवर्नर नियुक्त किया।
- 1504 ई0 में सिकंदर लोदी ने बंगाल के नवाब अलाउद्दीन को बाढ़ नामक स्थान पर पराजित कर उसके साथ एक संधि करके बिहार और बंगाल के बीच मुंगेर को सीमा रेखा निश्चित कर दिया ।
- लोदी शासकों के काल में बिहार में नूहानी अफगानों की स्थिति काफी मजबूत हुई ।
- बिहार का गवर्नर दरिया खां नूहानी एक स्वतंत्र राज्य कायम करना चाहता था । उसके संबंध
- इब्राहिम लोदी के साथ अच्छे नहीं थे । परंतु 1523 ई० में दरिया खां नूहानी का निधन हो गया ।
- मध्यकालीन बिहार के कुछ प्रमुख अभिलेख
- दूसरी ओर 1526 ई0 में बाबर से इब्राहिम लोदी की हार हो गयी और दिल्ली की गद्दी पर मुगलों का अधिकार हो गया। इसी बीच अवसर पाकर बिहार में दरिया खां नूहानी के पुत्र बहार खाँ ने सुल्तान मोहम्मद शाह नूहानी के नाम से अपनी स्वतंत्र सत्ता की घोषणा कर दी ।
- बहार खाँ को नूहानी और फर्मूली कबीलों के सरदारों ने साथ दिया। बाद में इन अफगानों को दबाने के बाबर के आदेश पर हुमायूं ने जौनपुर से अफगानों को खदेड़ दिया और उस पर नियंत्रण कायम कर लिया ।
- उत्तर और दक्षिण बिहार में इस समय दो अलग-अलग अफगान शासकों का नियंत्रण था। उत्तर बिहार में बलिया और सारण तक बंगाल के शासक सुल्तान नुसरत शाह का नियंत्रण था, जबकि दक्षिण बिहार में मुंगेर तक मोहम्मद शाह नूहानी का नियंत्रण था। दोनों शासक मिलकर मुगलों का विरोध कर रहे थे ।
- इसी दौरान महमूद लोदी ने बिहार में शरण ली और मुगलों के खिलाफ तैयारी आरंभ कर दी। लेकिन 6 मई, 1529 ई० को हुए घाघरा के युद्ध में बाबर ने इन अफगानों को बुरी तरह पराजित किया।
- बाबर ने मोहम्मद शाह नूहानी के पुत्र जलाल खान को बिहार का प्रशासक नियुक्त किया। बाबर के निधन के बाद हुमायूँ की आरंभिक कठिनाइयों के समय पूर्वी भारत के इन अफगानी ने फिर से मुगलों के विरुद्ध संघर्ष प्रारंभ कर दिया।
घाघरा का युद्ध (1532 ई०)
- 1531 ई० में आजम हुमायूं सरवानी, ईसा खां, विब्वन लोदी और बायजीद ने बिहार में अपने समर्थकों को एकत्रित किया और महमूद लोदी को फिर बुलावा भेजा ।
- इस बार उन्होंने पटना में उसका राज्याभिषेक कराया और सभी अफगानों ने, जिनमें शर खां भी सम्मिलित था, उसका वैधानिक अधिकार स्वीकार कर दिया।
- हुमायूं ने 1532 ई० में दौहरिया में अफगानों को पराजित कर दिया। इस लड़ाई के साथ ही बिहार में नूहानियों की सत्ता का अंत होने लगा।
- नूहानी शासकों के पतन के साथ-साथ बिहार में अफगानों के बीच नये नेता के रूप में शेरशाह का उदय होने लगा ।
शेरशाह (1472-1545 ई०)
- उसका जन्म एक साधारण परिवार में 1472 ई० में हुआ ।
- शेरशाह के बचपन का नाम फरीद खां था। उसके पिता हसन खाँ जौनपुर राज्य के अंतर्गत सासाराम के जागीरदार थे।
- फरीद खां ने तलवार से एक शेर को मार डाला था, उसकी बहादुरी से प्रसन्न होकर बिहार के अफगान शासक सुल्तान मुहम्मद बहार खाँ लोहानी ने उसे शेर खां की उपाधि प्रदान की।
- जौनपुर में अपनी शिक्षा-दीक्षा समाप्त करने के बाद वह (फरीद) सासाराम में अपने पिता की जागीर का प्रबन्ध करने में लगभग 21 वर्षों ( 1497-1518 ई०) तक लगा रहा। हसन खाँ की मृत्यु के बाद 1520-21 ई० के आसपास सुल्तान इब्राहीम लोदी ने उसे टाँडा, खवासपुर, सहसराम (वर्तमान सासाराम ) की जागीर सौंप दी ।
- शेर खां के पूर्वज आरंभ में अफगानिस्तान के राहरी ग्राम में रहते थे। उनकी आर्थिक और सामाजिक स्थिति साधारण कोटि की थी ।
- वे सुल्तान शहाबुद्दीन मुहम्मद गोरी (मूल नाम – मुइजुद्दीन बिन साम) के वंशज मोहम्मद सूर, जो एक अफगान महिला से विवाह करके उसी के गाँव में बस गया था, की संतान थे ।
- शेर खां का पितामह इब्राहिम खाँ, बहलोल लोदी के काल में भारत आया था। इब्राहिम खां के तीन पुत्र थे, जिनमें बड़े पुत्र का नाम हसन खां (शेरशाह का पिता ) था ।
- सुल्तान मुहम्मदशाह ने शेरशाह को अपने पुत्र जलाल का शिक्षक व संरक्षक नियुक्त किया था ।
- 1534 ई0 में सूरजगढ़ा की लड़ाई में शेरशाह ने बंगाल की सेना को पराजित कर पूर्वी भारत में अपनी स्थिति सर्वोपरि कर ली ।
- 1537-38 ई० में उसने बंगाल पर अधिकार कर लिया और 1539 ई० में उसने हुमायूँ को बक्सर के समीप चौसा की निर्णायक लड़ाई में (25-26 जून को ) पराजित कर दिया। हुमायूँ ईरान में शरणार्थी हुआ ।
- चौसा की लड़ाई में विजयी होने के बाद शेर खाँ ‘शेरशाह’ की उपाधि धारण कर सिहासन पर विराजमान हो गया ।
- बिलग्राम का युद्ध (1540 ई०)
- चौसा में पराजित होने के 1 वर्ष बाद ही हुमायूँ की सेना 1540 ई० में कन्नौज या बिलग्राम के निकट शेरशाह से युद्ध के लिए आमने-सामने खड़ी थी ।
- बिलग्राम के युद्ध (17 मई, 1540 ई०) में विजय के पश्चात् शेरशाह ने कन्नौज में डेरा डाला और सुजात खाँ को विजय हेतु ग्वालियर भेजा ।
- 10 जून, 1540 को आगरा में शेरशाह का विधिवत् राज्याभिषेक हुआ।
- नवम्बर 1540 में शेरशाह ने लाहौर पर भी अधिकार कर लिया। फलत: शेरशाह की स्थिति काफी हो गई।
- शेरशाह ने सूरवंश की स्थापना की तथा देश में डाक प्रथा का प्रचलन आरंभ किया।
- शेरशाह ने अपने शासनकाल में पटना का दुर्ग बनाया और इस नगर को पुनः बिहार की राजधानी बनाया (1541 ई०) |
- इस दुर्ग के निर्माण और पटना को राजधानी बनाने की चर्चा अब्दुल्लाह की रचना तारीखे सऊदी में मिलती है।
- अबुल फजल के अनुसार, अकबर के समय में बिहार की सीमाएँ रोहतास से तेलियागढी और तिरहुत से पर्वतीय क्षेत्रों तक विस्तृत थी। इसके अधीन सात सरकारें और 199 परगने थे, जिनसे 55 लाख वार्षिक लगान प्राप्त होता था ।
- औरंगजेब के समय तक तैबनये के अनुसार, इसमें आठ सरकारें और 245 परगने थे, जिनसे 96 लाख वार्षिक लगान प्राप्त होता था ।
- एक बार शेरशाह हुमायूँ का पीछा करते हुए मुल्तान तक चला गया था, जहाँ बलूची सरदारों ने उससे भेंट की और उसकी अधीनता भी स्वीकार कर ली ।
- मालवा पर अधिकार
- शेरशाह ने 1542 ई० में मालवा पर आक्रमण किया तथा 1543 में उस पर विजय प्राप्त कर लिया।
- मालवा के साथ-साथ मांडू और सतवास पर भी शेरशाह का अधिकार हो गया।
- रणगंभीर पर अधिकार
- मालवा से लौटने के क्रम में शेरशाह ने 1542 ई० में रणथंभौर पर भी अधिकार कर लिया तथा अपने बड़े पुत्र आदिल को वहाँ का हाकिम नियुक्त किया ।
- रायसीन पर अधिकार
- 1543 तक रायसीन, भिलसा तथा चंदेरी पर भी शेरशाह का अधिकार हो गया।
- राजपुताना विजय ( 1544 ई०)
- हुमायूं के प्रति सहानुभूति रखने वाले मारवाड़ के शासक राव मालदेव से शेरशाह असंतुष्ट था और वह उसकी शक्ति का नाश करना अफगान साम्राज्य की रक्षा हेतु आवश्यक समझता था ।
- ऐसी स्थिति में उसके पास वीरमदेव और नगराज आये, जिनके समर्थन से शेरशाह मालदेव पर आक्रमण के लिए तैयार हो गया ।
- मालदेव ने लड़ाई के लिए आगरा से काफी दूर युद्ध की योजना बनायी।
- मालदेव को पराजित करने में शेरशाह को अत्यंत कठिनाई हुई और उसने कहा “अरे मैंने एक मुट्टी बाजरे के पीछे हिदुस्तान का राज्य ही गँवा दिया था।”
- शेरशाह ने मालदेव का पीछा करते हुए अजमेर, जोधपुर, नागौर, मेड़ता आदि पर अधिकार कर लिया। अंततः मालदेव का संपूर्ण राज्य शेरशाह के अधीन हो गया।
- वीरमदेव और कल्याणमल को क्रमशः मेड़ता और बीकानेर का शासन दे दिया गया और जोधपुर से मेवात का समस्त प्रदेश खवास खां के हवाले कर दिया गया।
- शेरशाह का अंतिम युद्ध चंदेलों से हुआ। उस समय भाटा के राजा वीरभानु द्वारा हुमायूँ की मदद किये जाने के कारण शेरशाह उससे नाराज हो गया। वीरभानु ने भयभीत होकर कालिंजर के राजा कीरत सिंह के पास शरण लिया ।
- 80,000 घुड़सवार 2000 हाथी तथा अनेक बड़ी तोपें लेकर शेरशाह ने कालिंजर पर तीन महीने तक घेरा डाले रखा।
- एक दिन अपने सैनिकों के कार्य का निरीक्षण करते वक्त एक हथगोला फट जाने से शेरशाह घायल हो गया और 22 मई, 1545 ई० को उसकी मृत्यु हो गई। परन्तु उसकी मृत्यु के पूर्व उसकी इच्छानुसार कालिंजर दुर्ग पर उसका अधिकार हो गया ।
- सिंहासन पर बैठते समय (1540 ई०) शेरशाह की आयु 68 वर्ष थी। हालांकि वह केवल 5 वर्ष तक राजगद्दी पर रहा, किन्तु इस अल्पकाल में उसने ऐसा कार्य किया कि भारतीय इतिहास में अमर हो गया।
- शेरशाह ने 1541 ई० में पाटलिपुत्र को पटना नाम से पुनर्स्थापित किया। रोहतासगढ़ का किला तथा दिल्ली का ‘किला-ए-कुहना’ नामक मस्जिद उसी ने बनवाया था ।
- शेरशाह ऐसा प्रथम मुस्लिम शासक था जिसने हिन्दू-मुसलमान में भेद नहीं किया और जनसाधारण को सुख और शांतिपूर्ण जीवन जीने का अवसर दिया ।
- शेरशाह ने अफगानों को संगठित करने की भरपूर कोशिश की ।
- उसने किसानों की दशा सुधारने और राज्य की आय निश्चित करने के उद्देश्य से भूमि व्यवस्था में महत्वपूर्ण सुधार किये। भूमि की माप के लिए उसने 32 अंक वाला सिकन्दरी गज एवं सन की डंडी का प्रयोग किया। कबूलियत एवं पट्टा प्रथा की शुरुआत की। उसके समय पैदावार का लगभग एक तिहाई (1 / 3 ) भाग लगान के रूप में वसूला जाता था ।
- शेरशाह ने 178 ग्रेन चाँदी का रुपया और 380 ग्रेन ताँबे का दाम का प्रचलन शुरू किया ।
- शेरशाह की मृत्यु के पश्चात् उसका योग्य पुत्र जलाल खां, इस्लामशाह के नाम से गद्दी पर बैठा (27 मई, 1545 ई०) ।
- गले की बीमारी की वजह से वह काफी मात्रा में अफीम खाने लगा । 30 अक्टूबर, 1553 ई० को उसकी मृत्यु हो गई ।
- इस्लाम शाह की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र फिरोजशाह गद्दी पर बैठा (1553 ई०) ।
- फिरोजशाह के गद्दी पर बैठने के दो दिन बाद ही उसके मामा मुबारिज खां ने उसकी हत्या कर दी और खुद मुहम्मद आदिल शाह के नाम से गद्दी पर बैठ गया । इस प्रकार सूरवंश का शासन 15 वर्षों ( 1540-1555 ई०) तक रहा ।
- 1555 ई० में हुमायूँ ने पुनः दिल्ली की गद्दी पर अधिकार कर लिया ।
मुगल शासनकाल में बिहार
- शेरशाह के पश्चात् बिहार जिन अफगानों के नियंत्रण में रहा उसमें ताज खां करारानी, सुलेमान खां करारानी एवं दाऊद खां करारानी के नाम शामिल हैं। इन शासकों ने 1580 तक बिहार पर अपना अधिकार बनाये रखा ।
- सुलेमान खां करारानी ने अपने शासनकाल (1565 से 1572 ई०) में राज्य का विस्तार किया और उड़ीसा के कुछ भागों पर भी अधिकार कर लिया ।
- उसने अकबर के साथ सम्मानपूर्ण रवैया अपनाया । परन्तु उसके पुत्र दाऊद खां करारानी ने अकबर के प्रति अहंकारी आचरण का प्रदर्शन किया। परिणामतः मुगल बादशाह अकबर ने स्वयं बिहार आकर उसके राज्य पर आक्रमण किया और 1574 ई० में पटना पर अधिकार कर लिया तथा मिथिला के नरेश को भी पराजित कर दिया ।
- लगभग 1580 ई० में बिहार को मुगल साम्राज्य का एक प्रांत घोषित कर दिया गया। दाऊद खां करारानी नगर से पलायन कर गया।
- अकबर ने राजा मान सिंह को बिहार में प्रांतपति नियुक्त किया, जिसने 1587 से 1594 ई० के दौरान यहाँ पर मुगल सत्ता को सुदृढ़ किया। उसने खड़गपुर, गिद्धौर और भोजपुर में स्थानीय सरदारों को पराजित किया ।
- मानसिंह ने रोहतास को अपनी राजधानी बनाया ।
- जहांगीर के शासनकाल में खोखरा देश छोटानागपुर क्षेत्र ( अब झारखण्ड में) पर मुगलों का अधिकार हो गया ।
- जहांगीर ने 1621 ई० में राजकुमार परवेज को बिहार का प्रांतपति नियुक्त किया। तब से सिर्फ राजकुमारों को ही प्रांतपति नियुक्त किया जाने लगा ।
- 1702 ई० में औरंगजेब के शासनकाल में उसके पौत्र राजकुमार अजीम को बिहार का सूबेदार नियुक्त किया गया ।
- बाद में राजकुमार अजीम को ‘अजीमुश्शान’ की उपाधि दी गयी। उसने पटना का नाम बदलकर अजीमाबाद कर दिया ।
- बंगाल में 1704 ई० में मुर्शिद कुली खां ने एक स्वतंत्र राज्य का गठन किया तो बिहार भी उसके नियंत्रण में आ गया ।
- औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात् बहादुर शाह 1707 से 1712 ई० तक मुगल शासक रहा।
- उसने अजीमुशान को पुनः बिहार का सूबेदार नियुक्त किया ।
- 1711 ई० में फर्रुखशियर बंगाल से बिहार आ गया। फर्रुखशियर पहला मुगल सम्राट था जिसका राज्याभिषेक पटना, बिहार में ( 1713 ई० में) हुआ ।
- तत्पश्चात् आगरा की लड़ाई में उसने जहांदारशाह को पराजित कर मुगल सिंहासन पर अधिकार कर लिया ।
- फर्रुखशियर का शासन काल 1712 से 1719 ई० तक रहा।
- बंगाल के नवाब ने 1733 ई० तक बिहार, बंगाल और उड़ीसा का प्रत्यक्ष शासन ग्रहण कर लिया । अंग्रेजों की सत्ता स्थापित होने तक यह स्थिति कायम रही ।
- इसके बावजूद बिहार के क्षेत्र में प्रशासन चलाने के लिए एक उप-नवाब अथवा नायब नाजिम को नियुक्त किया गया ।
- इस श्रृंखला का आखिरी नवाब अलीवर्दी खां अजीमाबाद (पटना) में 1734 से 1740 ई० तक नवाब रहा ।
- उसने 1740 ई० में मुर्शिदकुली खां के वंशज सरफराज खां को हटाकर बंगाल की गद्दी पर भी अधिकार कर लिया। उसने अपनी मृत्यु (1756 ई०) तक बिहार, बंगाल और उड़ीसा पर अपना नियंत्रण कायम रखा ।
- मुगल साम्राज्य के पतन के बाद बिहार के क्षेत्र में अफगानों के विद्रोह होने शुरू हो गये ।
- अलीवर्दी खां ने स्थिति संभालने हेतु जैनुद्दीन हैबतजंग को बिहार में उपनवाब बनाया ।
- अफगानों ने 1748 ई० में हैबतजंग की हत्या कर दी। इससे कुपित होकर अलीवर्दी खां ने स्वयं रानीसराय एवं पटना के युद्ध में अफगानों को कुचलकर विद्रोह शांत किया ।
- अलीवर्दी खां ने मराठों को भी 1751 में फतुहा के पास पराजित किया, किंतु मराठों ने उड़ीसा के अधिकांश क्षेत्र अपने अधिकार में कर लिया ।
- अलीवर्दी खां के निधन के बाद 1756 में उसका नाती सिराजुद्दौला बंगाल का नवाब बना ।
- व्यापारिक सुविधाओं के दुरुपयोग के मुद्दे पर उसका अंग्रेजों से मतभेद हो गया । परिणामस्वरूप सिराजुद्दौला और अंग्रेजों के बीच जून, 1757 में प्लासी की लड़ाई हुई, जिसमें सिराजुद्दौला पराजित हुआ और बाद में मारा गया ।
- इसके बाद मीरजाफर बंगाल का नया नवाब बना। इस समय इस क्षेत्र में अंग्रेजों का शासन प्रारंभ हो गया।