श्रीभगवानुवाच: लोकेऽस्मिन्द्विविधा निष्ठा पुरा प्रोक्ता मयानघ।
ज्ञानयोगेन साङ्ख्यानां कर्मयोगेन योगिनाम्॥ 3.3॥
अर्थ:
भगवान ने कहा: हे निष्पाप! इस संसार में पहले से ही दो प्रकार की निष्ठाएँ (मार्ग) बताई गई हैं – ज्ञानयोग, जिसे सांख्य योगी अपनाते हैं, और कर्मयोग, जिसे कर्मयोगी अपनाते हैं।