बिहार में कृषि एवं पशुपालन
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  • डॉ० आर० के० सोहाने की पहल पर वर्मी कम्पोस्ट की पहली इकाई बेगूसराय जिले के खोदाबंदपुर में लगी थी । 
  • वर्ष 2006 में जब बिहार सरकार ने राज्य में वर्मी कम्पोस्ट प्रोत्साहन योजना शुरू करके इसे बढ़ावा देना आरंभ किया तो समस्तीपुर जिला का कोठिया राज्य का पहला जैविक ग्राम बन गया ।
  • राज्य में जैविक ग्रामों की संख्या 38 है । 

बिहार के कृषि प्रदेश 

प्रमुख फसल
उत्तरी-पूर्वी मैदान चावल एवं जूट
उत्तरी-पश्चिमी मैदान
उत्तरी-मध्यवर्ती मैदान
दक्षिण-पश्चिमी मैदान
दक्षिण-पूर्वी मैदान
  •  बिहार एक कृषि प्रधान राज्य है तथा यहाँ कृषि योग्य भूमि 80% से अधिक है, जिसमें शुद्ध बोया गया क्षेत्र 57% से अधिक है । 
  • राज्य की 86% जनसंख्या कृषि कार्य में लगी है। 
  • कृषि की प्रधानता सबसे अधिक गंगा के उत्तरी मैदानों में देखी जाती है, जहाँ 65% से 80% भू-भाग पर कृषि कार्य किया जाता है ।
  • बिहार में चावल प्रधान भोजन है, इसलिए गेहूँ धान की खेती राज्य के सभी जिलों में होती है, जबकि राज्य में उत्पादन की दृष्टि से चावल के बाद दूसरी फसल है गेहूँ । 

श्री विधि से अनाज उत्पादन में वृद्धि

  • उल्लेखनीय है कि राज्य की उत्पादकता 1.6 टन प्रति हेक्टेयर से बढ़कर 2.1 टन प्रति हेक्टेयर हो गई है । उत्पादन का यह रिकार्ड जोत का रकबा बढ़ाकर नहीं बल्कि ‘श्री विधि’ नामक नई तकनीक के इस्तेमाल से उत्पादकता बढ़ाकर कायम किया गया है । 
  • गेहूँ
    • गेहूँ बिहार की प्रमुख रबी फसल है जो नवम्बर-दिसम्बर में बोयी और मार्च-अप्रैल में काटी जाती है। इसकी खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी उत्तम रहती है । 
    • गेहूँ के उत्पादन में बिहार का देश में छठा स्थान है। राज्य में लगभग 26.5 लाख हेक्टेयर पर गेहूँ की खेती होती है । 
    • बिहार आर्थिक सर्वेक्षण 2015-16 के अनुसार गेहूँ उत्पादन में जहानाबाद, पटना, गया, रोहतास, कैमूर, सीवान आदि अग्रणी जिले हैं । 
  • धान / चावल 
    • बिहार में लोगों का मुख्य भोजन चावल है, जो धान की फसल से प्राप्त होता है। धान ऊँचे 
    • तापमान, उर्वर मिट्टी और 125 सेमी से अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में उगाया जाता है ।
    • पश्चिम में बूढ़ी गण्डक और पूर्व में कोसी नदी के मध्य विस्तृत उत्तरी मैदान धान की कृषि का आदर्श क्षेत्र माना जाता है । यहाँ 54 लाख हेक्टेयर भूमि में धान की खेती होती है। > जलवायु की विभिन्नताओं के फलस्वरूप बिहार में ग्रीष्मकालीन, शरदकालीन और शीतकालीन धान की फसलें उगायी जाती हैं। बिहार में इन्हें अगहनी, गरमा एवं भदई फसलों के रूप में जाना जाता है । बिहार में अगहनी धान की खेती सबसे अधिक भूमि पर होती है ।
    • बिहार आर्थिक सर्वेक्षण 2015-16 के अनुसार, चावल उत्पादन में अग्रणी जिले हैं— अरवल, रोहतास, औरंगाबाद, प. चम्पारण आदि । 
  • जौ 
    • जौ भारत की प्राचीनतम कृषि उपज है। बिहार में जौ की खेती अत्यंत प्राचीन काल से की जाती रही है। जौ की खेती कम वर्षा और उष्ण जलवायु में होती है । 
    • यह रबी की फसल है जो अक्टूबर-नवम्बर में बोयी जाती है । 
    • इसके उत्पादन में पूर्वी चंपारण एवं पश्चिमी चंपारण अग्रणी हैं। इसके अतिरिक्त गोपालगंज, सीवान, वैशाली, मुंगेर, मुजफ्फरपुर, गया तथा रोहतास में भी जौ की खेती होती है । 
  • मक्का 
    • धान और गेहूँ के बाद मक्का बिहार का तीसरा प्रमुख फसल है । यह राज्य के 8 प्रतिशत से भी अधिक भागों में बोया जाता है । यह आर्द्र जलवायु में पैदा होने वाली फसल है । इसके लिए भारी दोमट मिट्टी उपयुक्त है । 
    • मक्का खरीफ की फसल है जो जून – जुलाई महीनों में बोयी जाती है और सितम्बर-अक्टूबर में काट ली जाती है। मक्का की कृषि के लिए हल्की और चिकनी मिट्टी अच्छी रहती है। बिहार की बलसुन्दरी मिट्टी इसकी खेती के लिए उत्तम है । 
    • बिहार में मक्का कटिहार, सारण, गोपालगंज, चंपारण, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, बेगूसराय, खगड़िया, सहरसा, मुंगेर तथा भागलपुर में प्रमुख रूप से बोया जाता है । बेगूसराय को बिहार में ‘मक्का का घर’ कहा जाता है । 
    • मक्का उत्पादकता और उत्पादन की दृष्टि से वर्ष 2014-15 में कटिहार, मधेपुरा, खगड़िया और सहरसा जिले अग्रणी रहे हैं । 
  • मडुआ (रागी) 
    • मोटे अनाजों में यह काफी महत्वपूर्ण है । यह कम समय में तैयार होनेवाली फसल है। इसकी बुआई अप्रैल-मई में की जाती है एवं कटाई जून-जुलाई में होती है । 
    • देश में बिहार मडुआ का सबसे अधिक उत्पादन करता है। बिहार के दरभंगा जिले में मडुआ सर्वाधिक उत्पादित होता है । 
    • इसकी खेती मुख्यतः दरभंगा, सहरसा, सुपौल, मधेपुरा, समस्तीपुर और वैशाली में होती है। 
  • ज्वार-बाजरा 
    • ज्वार एवं बाजरा निर्धनों के लिए खाद्यान्न तथा पशुओं के लिए हरे चारे के रूप में प्रयोग किया जाता है । यह मई के प्रारम्भ में बोई जाती है और अगस्त में काट ली जाती है ।
    • इसकी खेती साधारण उपजाऊ मिट्टी एवं कम वर्षा वाले क्षेत्रों में भी की जा सकती है। 
    • इसकी खेती मई के आरंभ में की जाती है । 
    • बिहार में सर्वाधिक ज्वार शाहाबाद में होती है। ज्वार का उत्पादन रोहतास जिला में एवं बाजरा का उत्पादन मुख्यतः रोहतास, चंपारण, पटना, गया और मुंगेर जिले में होता है। 

दलहनी फसलें 

  • दाल भोजन का मुख्य अवयव है। इस फसल समूह में चना, अरहर, खेसारी, मूंग, मसूर, उड़द, मटर आदि आते हैं । 
  • बिहार में लगभग 12-13 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में दलहन की खेती होती है । 
  • इन फसलों में अधिकांश रबी व खरीफ की फसलों के साथ सम्मिलित कर मिश्रित फसलों के रूप में उत्पादित की जाती हैं । 
  • वर्ष 2014-15 में दलहनों के उत्पादन की दृष्टि से पटना, औरंगाबाद और नालंदा ; जबकि उत्पादकता की दृष्टि से कैमूर, पटना और दरभंगा अग्रणी जिले रहे । 
  • अरहर 
    • अरहर को खरीफ की फसल के साथ उगाया जाता है और रबी की फसल के साथ काटा जाता है । 
    • अरहर के पौधे कम उपजाऊ मिट्टी में अच्छी फसल देते हैं । इसी कारण बिहार के किसान 
    • सीमांत भूमि या बाँध आदि के निकट की ऊँची जमीन पर इसकी बुआई करते हैं । इसकी खेती के लिए सिंचाई और उर्वरक की आवश्यकता नहीं होती ।  
    • बिहार में इसकी खेती लगभग 83 हजार हेक्टेयर भूमि पर होती है। 
    • इसकी खेती सारण, सीवान, गोपालगंज, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, बेगूसराय, मुंगेर, भोजपुर एवं रोहतास आदि जिलों में विशेष रूप से की जाती है । 
  • चना 
    • चना बिहार में गेहूँ के बाद दूसरा प्रमुख रबी फसल है । चने का उपयोग दाल के अतिरिक्त सत्तू, बेसन आदि कई अन्य रूपों में भी किया जाता है । चने की फसल के लिए मटियार दोमट मिट्टी की आवश्यकता होती है। बालूयुक्त चिकनी मिट्टी में भी इसका उत्पादन अच्छा होता है। बिहार में प्रतिवर्ष 1.4 से 2 हेक्टेयर भूमि में इसकी उपज होती है । 
    • राज्य में चना को मिश्रित फसल के रूप में गेहूँ, जौ, तीसी एवं सरसों के साथ बोया जाता है।
  • खेसारी 
    • खेसारी (खंदसारी) एक निम्न कोटि का दलहन है । यह बिहार के दलहन उत्पादक क्षेत्र की 
    • दृष्टि से सबसे अधिक क्षेत्र में बोया जाता है । 
    • इसे गरीब आदमी दाल के रूप में और धनी व्यक्ति मवेशी के चारे के रूप में प्रयोग करते हैं । यह पटना, गया और शाहाबाद जिलों में मुख्य रूप से उगायी जाती है । 
    • खेसारी का दाल के रूप में सेवन करने से स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इसके सेवन से गठिया आदि हड्डी के रोग उत्पन्न हो जाते हैं । अतः सरकार ने इसके सेवन पर प्रतिबन्ध लगा दिया है । 
  • मूंग 
  • मसूर 
  • अन्य दलहनी फसलें 
    • अन्य दलहनी फसलों में उड़द और कुलथी प्रमुख हैं। ये दोनों ही भदई फसलें हैं ।
    • इनकी खेती भागलपुर एवं कटिहार जिलों में होती है। 
  • तिलहनी फसलें 
    • बिहार में तिलहन खाद्य फसल होते हुए भी व्यापारिक महत्व की फसल है । 
    • इसके अन्तर्गत तीसी, राई, सरसों, तिल और सरगुज्जा आदि फसलें आती हैं। 
    • इसके अतिरिक्त रेंडी (अरंडी) भी तिलहन समुदाय की फसल है, जो व्यापारिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। 
  • राई व सरसों 
    • बिहार में उत्पादित की जाने वाली तिलहन फसलों में राई और सरसों का स्थान प्रमुख है ।
    • बिहार में भोजन बनाने में इसके तेल का प्रयोग सर्वाधिक किया जाता है । 
    • यह फसल राज्य के लगभग सभी जिलों में थोड़ी-बहुत मात्रा में उगायी जाती है, लेकिन मैदानी भाग में इसकी उपज अधिक होती है । तिरहुत व पटना क्षेत्र में प्रमुखता से सरसों उगाई जाती है । 
    • प्रति हेक्टेयर उत्पादन की दृष्टि से पूर्णिया जिला राज्य का सबसे प्रमुख जिला है । 
  • तीसी (अलसी) 
    • अलसी गहरी नमीयुक्त भारी चिकनी मिट्टी में उत्पादित होती है। इसका प्रमुख उत्पादन क्षेत्र गंगा का मैदानी भाग है । 
    • बिहार में तीसी का उत्पादन पटना, तिरहुत, कोसी और भागलपुर मण्डलों में होता है ।
    • दरभंगा जिला में सर्वाधिक प्रति हेक्टेयर उत्पादन होता है । सर्वाधिक उत्पादक जिलों में शाहाबाद, गया प्रमुख हैं । 
  • तिल 
    • तिलहन के अन्तर्गत तिल एक प्रमुख फसल है, जिसका प्रयोग खाद्य पदार्थ के अतिरिक्त तेल एवं सौन्दर्य प्रसाधन सामग्री के रूप में होता है । 
    • तिल दो प्रकार का होता है— (1) काला और (2) सफेद । बिहार में काला व सफेद दोनों ही प्रकार का तिल उगाया जाता है । 
    • गया, चम्पारण और शाहाबाद जिलों में तिल प्रमुखता से उत्पादित होता है । 
  • रेंड़ी 
    • रेंड़ी अथवा अरंड भारत की प्रमुख तिलहन फसल है । 
    •  इसकी खेती कम उपजाऊ भूमि व ऊँची-नीची भूमि में भी होती है। रेंड़ी का प्रयोग जलाने, साबुन उद्योग व चिकनाहट के लिए होता है । 
    • बिहार में भागलपुर, मुंगेर, पटना, दरभंगा, मुजफ्फरपुर, पूर्णिया और सारण जिलों में इसकी खेती अधिक होती है । 

नगदी अथवा व्यावसायिक फसलें 

  • गन्ना 
    • गन्ने के लिए अधिक वर्षा, भुरभुरी दोमट मिट्टी यथा— मटियारी व चूनायुक्त मिट्टी तथा 26° सेंटीग्रेड तापमान की आवश्यकता होती है । 
    • बागमती तथा कोसी नदियों के पश्चिमी क्षेत्र में खनिज लवण युक्त मिट्टी में चूने के तत्व उपलब्ध हैं ।
    • बिहार में गन्ना का सर्वाधिक सघन क्षेत्र, जहाँ कुल गन्ना क्षेत्र का 60 प्रतिशत से अधिक भाग स्थित है, पूर्वी एवं पश्चिमी चंपारण, गोपालगंज, सारण एवं सीवान जिलों में सीमित है ।
    • बिहार में गन्ने की सामान्य खेती कोसी नदी के पश्चिमी भाग, गंगा के दक्षिण में भोजपुर, औरंगाबाद, पटना, नालंदा, मुंगेर एवं भागलपुर जिलों में की जाती है। 
    • उत्पादन में अग्रणी जिले थे पश्चिम चम्पारण और पूर्वी चम्पारण, जबकि उत्पादकता में अग्रणी जिले थे – पूर्व चम्पारण, नालंदा और जहानाबाद । 
  • जूट 
    • जूट उत्पादन के क्षेत्र में बिहार भारत का द्वितीय सर्वाधिक बड़ा राज्य है ।
    • बिहार में पूर्णिया में सर्वाधिक जूट पैदा की जाती है।  पूर्णिया जिला अकेला ही कुल जूट उत्पादन का 70 प्रतिशत जूट उत्पन्न करता है ।
    • गर्मी के मौसम की प्रथम भारी वर्षा के बाद अप्रैल-मई के महीनों में जूट की बुआई की जाती है, जबकि इसकी कटाई अक्टूबर माह में की जाती है ।  
  • तम्बाकू 
  • आलू  
    • सामान्यतः बिहार के हर जिले में आलू पैदा किया जाता है, लेकिन नालंदा, पटना और सारण जिले आलू उत्पादन में अग्रणी हैं । 
  • मेस्ता 
  • मखाना 
  • लीची और आम 
    • मुजफ्फरपुर इसका प्रमुख केन्द्र है। यहाँ का शाही लीची सर्वाधिक प्रसिद्ध है।
    • आम का माल्दह प्रभेद बिहार के फल समूह का एक प्रसिद्ध फल है।  

देश के कृषिगत फसलों के उत्पादन में बिहार का स्थान 

फसल देश में स्थान
धान ( या चावल) 5 वाँ 
मक्का 2
जूट
गेहूँ 6

 

  • गेहूँ  का सर्वाधिक उत्पादन — बागमती के कछार में 
  • मक्का का सर्वाधिक उत्पादन –  गंगा के उत्तरवर्ती भाग में 
  • ज्वार का सर्वाधिक उत्पादन – शाहाबाद क्षेत्र में 
  • गन्ना उत्पादन में अग्रणी – गण्डक एवं कोसी का मध्य मैदानी भाग 
  • सर्वाधिक जूट उत्पादन – पूर्णिया में 
  • सर्वाधिक मसूर उत्पादन – पटना में 
  • सरसों का सबसे अधिक प्रति हेक्टेयर उत्पादन – पूर्णिया में 
  • राज्य में प्रति 30 व्यक्तियों पर एक पशु मिलता है, जबकि देश में प्रति 20 व्यक्तियों पर एक पशु की उपलब्धता का औसत है । 
  • राज्य में ‘बिहार पशुधन विकास एजेन्सी‘ (BLDA) का गठन हुआ है ।  
  • राज्य सरकार ने पटना, मुंगेर, भागलपुर, सहरसा, पूर्णिया, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, छपरा और बाँका में कृत्रिम गर्भाधान हेतु तरल नाइट्रोजन के भंडारण के लिए भंडार स्थापित किये हैं ।